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2 min read | अपडेटेड April 09, 2025, 02:12 IST
सारांश
Repo Rate Cut Impact: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) जिस दर पर बैंकों को लोन देता है, उसका असर बैंकों द्वारा ग्राहकों को दिए जाने वाले कर्ज की ब्याज दर पर पड़ता है। ऐसे में रेपो रेट, यानी वह ब्याज दर जिस पर सेंट्रल बैंक ओवरनाइट कर्ज देता है, उसे घटाए जाने पर ग्राहकों को भी इसका फायदा मिल सकता है और उनके लोन सस्ते हो सकते हैं।
रेपो रेट को मुद्रास्फीति कंट्रोल करने के लिए इस्तेमाल करती है रिजर्व बैंक।
भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India, RBI) की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee, MPC) की तीन दिन की बैठक के बाद मुद्रास्फीति में नरमी और वृद्धि को तेज करने की जरूरत को देखते हुए रेपो रेट में 0.25% की कटौती किए जाने की उम्मीद है। MPC रिपोर्ट का ऐलान बुधवार 9 अप्रैल को गवर्नर संजय मल्होत्रा करेंगे।
सोमवार को शुरू हुई इस बैठक में अमेरिकी सरकार के भारत समेत करीब 60 देशों पर आयात शुल्क बढ़ाने के फैसले से पैदा होने वाली चुनौतियों पर भी गौर किए जाने की संभावना है।
इसके पहले फरवरी में MPC ने अपनी पिछली बैठक में प्रमुख ब्याज दर रेपो में 0.25% की कटौती कर इसे 6.25 प्रतिशत कर दिया था। यह मई, 2020 के बाद रेपो दर में पहली कटौती और ढाई साल के बाद पहला संशोधन था।
रिजर्व बैंक रेपो रेट का इस्तेमाल पैसे की सप्लाई को रेग्युलेट करने के लिए करता है ताकि अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति दर को नियंत्रित किया जा सके। रेपो रेट या रीपर्चेज अग्रीमेंट वह ब्याज दर है जिस पर कमर्शल बैंकों को फंड्स की कमी पड़ने पर सेंट्रल बैंक (भारत में रिजर्व बैंक) ओवरनाइट कर्ज देता है।
इसके लिए वह बैंक से कुछ सिक्यॉरिटीज भी लेता है। रिजर्व बैंक जिस दर पर बैंकों को लोन देता है, उसका असर बैंकों द्वारा ग्राहकों को दिए जाने वाले कर्ज की ब्याज दर पर पड़ता है।
जब इंटरेस्ट रेट फ्लोटिंग होता है तो यह RBI के रेपो रेट जैसे बाहरी बेंचमार्क से जुड़ा होता है। यानी RBI के रेपो रेट को कम-ज्यादा करने से ब्याज दर पर सीधा असर पड़ता है। रेपो रेट बढ़ने से EMI भी बढ़ता है और घटाने से कम होता है।
SBI की रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यापार से संबंधित शुल्क बाधाओं, मुद्रा में तेज उतार-चढ़ाव और खंडित पूंजी प्रवाह के परस्पर संबद्ध प्रभावों के कारण वैश्विक वृद्धि को महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल 2025 की नीतिगत समीक्षा बैठक में 0.25% की दर कटौती की उम्मीद है। रेट कट की पूरी साइकल में कुल 1% तक की कटौती हो सकती है। यानी जून, 2025 की बैठक में अंतराल रहने के बाद अगस्त और अक्टूबर में दो और कटौती हो सकती हैं।
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