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Repo Rate Cut: क्या है रेपो रेट, कटौती से होम लोन, EMI कैसे बदलेगा? समझें, RBI के फैसले का असर

Upstox

5 min read | अपडेटेड February 07, 2025, 10:42 IST

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सारांश

Repo Rate Cut and Interest Rate: रेपो रेट या रीपर्चेज अग्रीमेंट (Repurchase Agreement) वह ब्याज दर है जिस पर कमर्शल बैंकों को फंड्स की कमी पड़ने पर सेंट्रल बैंक (भारत में रिजर्व बैंक) ओवरनाइट कर्ज देता है। इसके लिए वह बैंक से कुछ सिक्यॉरिटीज भी लेता है।

रेपो रेट को मुद्रास्फीति कंट्रोल करने के लिए इस्तेमाल करती है रिजर्व बैंक।

रेपो रेट को मुद्रास्फीति कंट्रोल करने के लिए इस्तेमाल करती है रिजर्व बैंक।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी (Monetary Policy Committee, MPC) ने फैसला किया है कि रेपो रेट को 25 बेसिस पॉइंट्स (bps) से कम करके 6.25% पर लाया जाएगा। लंबे वक्त से उम्मीद की जा रही थी कि सेंट्रल बैंक करीब 5 साल के बाद रेपो रेट में कटौती कर सकता है।

एक्सपर्ट्स का यह भी कहना था कि मुद्रास्फीति दर और केंद्र सरकार के उपभोग को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदमों को ध्यान में रखते हुए यह ब्याज दर घटाने का सही वक्त भी है। अब रिजर्व बैंक ने रेट कट का ऐलान कर भी दिया है।

ऐसे में यह समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर रेपो रेट में कटौती इतनी अहम क्यों है और इसका आम लोगों के ऊपर क्या असर पड़ता है।

क्या है रेपो रेट, क्यों जरूरी?

रेपो रेट या रीपर्चेज अग्रीमेंट वह ब्याज दर है जिस पर कमर्शल बैंकों को फंड्स की कमी पड़ने पर सेंट्रल बैंक (भारत में रिजर्व बैंक) ओवरनाइट कर्ज देता है। इसके लिए वह बैंक से कुछ सिक्यॉरिटीज भी लेता है।

रिजर्व बैंक रेपो रेट का इस्तेमाल पैसे की सप्लाई को रेग्युलेट करने के लिए करता है ताकि अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति दर को नियंत्रित किया जा सके। रिजर्व बैंक जिस दर पर बैंकों को लोन देता है, उसका असर बैंकों द्वारा ग्राहकों को दिए जाने वाले कर्ज की ब्याज दर पर पड़ता है।

कैसे करता है मुद्रास्फीति को कंट्रोल?

जब अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति दर ज्यादा होती है तो भारतीय रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाता है। जब बैंक को RBI को बढ़ा हुआ ब्याज देना होता है तो वह ग्राहकों के लिए भी ब्याज दर बढ़ा देता है। लोन महंगे होने से लोग कम कर्ज लेते हैं और ज्यादा ब्याज दर का फायदा उठाने के लिए बचत ज्यादा करते हैं। इससे अर्थव्यवस्था में पैसे की सप्लाई कम हो जाती है।

लोगों के हाथ में कम पैसे होने से खर्च भी कम होता है और चीजों और सेवाओं की मांग गिरती है। इससे चीजों के दाम भी नीचे आते हैं और मुद्रास्फीति दर नियंत्रित होती है।

इससे उलट जब अर्थव्यवस्था में डिफ्लेशन होता है तो रेपो रेट को घटाया जाता है। इससे कमर्शल बैंक भी अपनी ब्याज दरें कम करते हैं और लोग ज्यादा कर्ज लेते हैं। कम ब्याज दर से घरेलू निवेश भी बढ़ता है। ऐसे में लोगों के हाथ में ज्यादा पैसे होने से खपत बढ़ती है और निवेश बढ़ता है। चीजों और सेवाओं की मांग बढ़ने से कीमतों में भी तेजी आती है।

होम लोन पर सीधा असर

कुछ वक्त पहले ही रिजर्व बैंक ने मासिक किस्तों वाले निजी लोन (EMI based personal loan) को लेकर फ्लोटिंग इंटरेस्ट रेट और फिक्स्ड इंटरेस्ट रेट में स्विच करने का विकल्प देने को कहा था। केंद्रीय बैंक ने बैंकों और दूसरे लेंडर्स से कहा था कि स्विच करने की संख्या तय करके ग्राहकों को यह विकल्प देना चाहिए।

दरअसल, जब इंटरेस्ट रेट फ्लोटिंग होता है तो यह RBI के रेपो रेट जैसे बाहरी बेंचमार्क से जुड़ा होता है। यानी RBI के रेपो रेट को कम-ज्यादा करने से ब्याज दर पर सीधा असर पड़ता है। रेपो रेट बढ़ने से EMI भी बढ़ता है और घटाने से कम होता है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?

Andromeda Sales and Distribution के को-सीईओ राऊल कपूर का कहना है कि फिलहाल होम लोन पर ब्याज दरें 8.5%-9% के बीच चल रही हैं। ऐसे में 50 बेसिस पॉइंट्स तक की कटौती लेनदारों को काफी राहत पहुंचाएगी।

Signature Global (India) के संस्थापक और चेयरमैन प्रदीप अगरवाल के मुताबिक रेपो रेट को लेकर नीति में बदलाव से रियल एस्टेट सेक्टर में होम लोन किफायती हो सकते हैं। इससे लोग कम दाम पर घर ले सकेंगे और डिमांड भी बढ़ेगी।

इसी तरह Housing.com के ग्रुप सीईओ ध्रुव अगरवाल का कहना है कि लग्जरी हाउसिंग तेजी पकड़ रही है लेकिन संतुलित लिक्विडिटी और सस्ते कर्ज सभी श्रेणियों में डिमांड को बरकरार रखने के लिए अहम हैं।

YES Securities के एग्जिक्युटिव डायरेक्टर अमर अंबानी का कहना है कि रिजर्व बैंक का रुख ‘अकॉमोडेटिव’ होने से स्टॉक मार्केट को भी खुश होने का मौका मिलेगा।

इंडस्ट्री को भी फायदा, आर्थिक वृद्धि होगी तेज

रियल एस्टेट संगठन NAREDCO के मुताबिक 25-30 बेसिस पॉइंट्स रेपो रेट में कटौती से हाउसिंग की मांग को बल मिलता है। NAREDCO अध्यक्ष जी हरि बाबू के मुताबिक ब्याज दर कम होने से रियल एस्टेट बाजार तो तेजी पकड़ता ही है, उससे जुड़ी निर्माण, सीमेंट और स्टील की इंडस्ट्री को भी बल मिलता है।

इससे होम डिवेलपर्स और खरीददार, दोनों को मानसिक और वित्तीय रूप से आत्मविश्वास मिलता है। लोग निवेश ज्यादा करता हैं और होम लोन किफायती होने लगते हैं। उनके मुताबिक सरकार ने समावेशी और शहरी विकास का लक्ष्य रखा है और मॉनिटरी पॉलिसी में ढील से टियर-2 और टियर-3 शहरों में किफायती घरों को काफी फायदा मिलेगा।

Knight Frank CMD शिशिर बैजल का कहना है कि ब्याज दर में कटौती से रियल एस्टेट को फायदा होगा क्योंकि घर खरीददारों के लिए कर्ज लेना आसान होगा। बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी बढ़ने से डिवेलपर्स के लिए फाइनेंस जुटाना भी आसान होगा।

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Upstox Hindi News Desk पत्रकारों की एक टीम है जो शेयर बाजारों, अर्थव्यवस्था, वस्तुओं, नवीनतम व्यावसायिक रुझानों और व्यक्तिगत वित्त को उत्साहपूर्वक कवर करती है।

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