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4 min read | अपडेटेड January 24, 2025, 10:47 IST
सारांश
8th Pay Commission: आठवें वेतन आयोग के गठन का ऐलान केंद्र सरकार ने कर दिया है। इससे लाखों सरकारी कर्मचारियों और पेंशनधारकों की उम्मीदें जगी हैं।
7वें वेतन आयोग ने माना था सरकार को 'आदर्श नियोक्ता' (तस्वीर: Shutterstock)
केंद्रीय कैबिनेट ने 8वें वेतन आयोग (8th Central Pay Commission) के गठन को हरी झंडी दी है। सरकार के इस फैसले से केंद्र सरकार के करीब 50 लाख कर्मचारियों और 65 लाख वेतनधारकों को फायदा मिलने की उम्मीद है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर वेतन आयोग काम कैसे करते हैं, किन मानकों का ध्यान रखते हैं और 7वें वेतन आयोग तक सरकार को दिए जाने वाले सुझावों को तैयार कैसे किया गया था।
वेतन आयोग का गठन कर्मचारियों और वेतनधारकों की सैलरी, पेंशन और दूसरे भत्तों को बेहतर तरीके से तय करने के लिए किया जाता है। यह एक अहम भूमिका है क्योंकि ये कुछ अहम मानक हैं जिनको ध्यान में रखते हुए देश के युवा और कुशल लोग सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन देते हैं।
आजाद भारत में अब तक 7 वेतन आयोग बन चुके हैं। सबसे पहले 1946 में बने आयोग ने यह सुनिश्चित किया था कि केंद्रीय कर्मचारियों की तनख्वाह इतनी हो कि उनका गुजर अच्छा तरह से हो जाए। इंस्टिट्यूट ऑफ इकॉनमिक ग्रोथ, दिल्ली की एक स्टडी- Pay Commissions: Fiscal Implications के मुताबिक उस वेतन आयोग के सुझाव एक इंसान की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए न्यूनतम वेतन देने के लक्ष्य से तैयार किए गए थे।
इसके बाद 1973 में आए दूसरे आयोग ने ऐसे लोगों की भर्ती करने का सुझाव दिया जिनके पास इतनी न्यूनतम योग्यता हो कि वह व्यवस्था को बेहतर तरीके से चला सकें। स्टडी के मुताबिक तीसरे आयोग ने सुझाया कि वेतन समावेशी होना चाहिए, पर्याप्त होना चाहिए और पे स्ट्रक्चर समझने में आसान होना चाहिए।
इसके बाद चौथे आयोग ने तर्कसंगत, आसान पे स्ट्रक्चर, स्टाफ को प्रोत्साहन, योग्यता पर आधारित भूमिकाओं के आधार पर अपने सुझाव दिए हैं। पहली बार 5वें वेतन आयोग ने सरकारी कर्मचारियों को प्राइवेट सेक्टर के बराबर फायदे देने की कोशिश की।
इसमें सरकार को एक ‘आदर्श नियोक्ता’ की तरह देखा गया। इसमें न सिर्फ एक बराबर काम के बदले एक से वेतन की वकालत की गई बल्कि प्राइवेट सेक्टर की तरह डिमांड-सप्लाई से जुड़े प्रोडक्टिविटी जैसे मानकों को भी शामिल किया गया।
हालांकि, छठे आयोग ने कहा कि दोनों को एक पायदान पर नहीं रखा जा सकता क्योंकि दोनों पूरी तरह अलग हैं- उनके काम भी और जिम्मेदारी भी।
आखिरी वेतन आयोग साल 2014 में आया था। इस 7वें वेतन आयोग ने सरकार में अच्छी योग्यता वाले कर्मचारियों को लाने की बात कही गई। इसने एक बार फिर सरकार को आदर्श नियोक्ता माना और प्राइवेट सेक्टर की तरह फायदे देने पर जोर दिया। इसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि कर्मचारी रुका हुआ ना महसूस करें।
सुझाव दिया गया कि कर्मचारियों को उनकी काबिलियत के आधार पर नए और बेहतर मौके, रिवॉर्ड मिलना चाहिए ताकि वह नकारात्मकता की ओर ना बढ़ें। इसमें अलग-अलग स्तरों पर दिए जाने वाले वेतन को बदलकर एक पे मैट्रिक्स का सुझाव दिया गया। इसके अलावा मॉडिफाइड अश्योर्ड करियर प्रोग्रेशन (MACP) सिस्टम लाया गया।
आयोग ने कहा कि पैकेज ऐसा होना चाहिए कि कर्माचारियों को आश्वासन रहे कि उनके काम को पर्याप्त पहचान और कंपनसेशन मिल रहा है, खासकर किसी और संस्थान में उन्हीं की तरह काम करने वाले कर्मचारी की तुलना में। हालांकि, इसने एक बड़ी बात यह भी कही कि ऐसे कर्मचारी जिनसे संस्थान को फायदा नहीं हो रहा, उनकी सेवाएं जारी नहीं रखनी चाहिए।
केंद्र सरकार से लंबे वक्त से 8वां वेतन आयोग बनाने की मांग की जा रही थी। बजट 2025 के पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ बैठकों में कई संगठनों ने इसे दोहराया। दरअसल, 7वें वेतन आयोग ने 2.57 का फिटमेंट फैक्टर का प्रस्ताव दिया था जिसे 2016 में लागू किया गया है। इसके बाद न्यूनतम वेतन ₹7,000 से ₹17,990 पर पहुंच गया था।
उम्मीद की जा रही थी कि नया वेतन आयोग इसे बढ़ाकर 2.86 कर देगा। बढ़ती महंगाई के चलते खर्चों में होते इजाफे और चुनौतीपूर्ण हो रही कॉस्ट ऑफ लिविंग, खासकर बड़े शहरों में इस मांग के पीछे सबसे बड़ी वजह थी। 2.86 फिटमेंट फैक्टर करने से बेसिक सैलरी ₹17,990 से ₹51,451 पर पहुंच जाएगी।
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