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5 min read | अपडेटेड April 09, 2025, 12:56 IST
सारांश
RBI MPC Report Key Points Explained: भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बुधवार को ऐलान किया है कि मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी ने रेपो रेट में कटौती का फैसला किया है। इसके अलावा गोल्ड लोन से जुड़े नियमों में कड़ाई, UPI लिमिट पर फैसले का अधिकार NPCI को देने जैसे कदम भी लिए जाएंगे। यहां डीटेल में समझें MPC रिपोर्ट की अहम बातें-
FY26 की पहली MPC बैठक के बाद साल में दूसरी बार रेपो रेट में कटौती का फैसला किया गया है।
भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India, RBI) की मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी (Monetary Policy Committee, MPC) की बैठक के बाद वित्त वर्ष 2025-26 की पहली रिपोर्ट सामने आ गई है।
रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने रिपोर्ट जारी करते हुए भारत की अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात से लेकर भविष्य के अनुमान के बारे में जानकारी दी। एक बड़ा फैसला MPC ने रेपो रेट घटाने का किया है।
यहां डीटेल में समझते हैं MPC की रिपोर्ट में क्या-क्या बताया गया है-
RBI ने रेपो रेट को एक बार फिर 0.25% घटाने का फैसला किया है। इसके साथ ही यह अब 6% पर आ गया है। रेपो रेट या रीपर्चेज अग्रीमेंट वह ब्याज दर है जिस पर कमर्शल बैंकों को फंड्स की कमी पड़ने पर सेंट्रल बैंक (भारत में रिजर्व बैंक) सिक्यॉरिटीज के बदले ओवरनाइट कर्ज देता है।
रिजर्व बैंक जिस दर पर बैंकों को लोन देता है, उसका असर बैंकों द्वारा ग्राहकों को दिए जाने वाले कर्ज की ब्याज दर पर पड़ता है। RBI के रेपो रेट घटाने से वित्तीय संस्थान भी इससे जुड़े अपने फ्लोटिंग इंटरेस्ट रेट को कम कर सकते हैं। इससे ग्राहकों के लिए लोन का EMI कम हो सकता है।
रिजर्व बैंक रेपो रेट का इस्तेमाल पैसे की सप्लाई को रेग्युलेट करने के लिए करता है। रेपो रेट को घटाने पर कमर्शल बैंक भी अपनी ब्याज दरें कम करते हैं और लोग ज्यादा कर्ज लेते हैं। कम ब्याज दर से घरेलू निवेश भी बढ़ता है।
ऐसे में लोगों के हाथ में ज्यादा पैसे होने से खपत बढ़ती है और निवेश बढ़ता है। चीजों और सेवाओं की मांग बढ़ने से कीमतों में भी तेजी आती है।
गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बताया कि रिजर्व बैंक अपना स्टांस न्यूट्रल से बदलकर अकॉमोडेटिव कर रहा है। अकॉमोडेटिव स्टांस यानी बैंक का उदार रुख बताता है कि अब आर्थिक वृद्धि के लिए इकॉनमी में मनी सप्लाई को बढ़ावा देने की ओर कदम उठाए जाएंगे।
न्यूट्रल स्टांस रखने पर रिजर्व बैंक महंगाई दर और ग्रोथ के ट्रेंड्स को देखते हुए ब्याज दरों को घटाया-बढ़ाया जा सकता है। वहीं, उदार रुख अपनाने पर बैंक ब्याज दरों को कम करके आर्थिक वृद्धि पर फोकस करता है।
ब्याज दर कम होने से लोगों के पास खर्च को ज्यादा पैसे होंगे जिससे चीजों की डिमांड बढ़ेगी और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दुनिया के तमाम देशों समेत भारत पर भी टैरिफ लगाया गया है। भारतीय उत्पादों पर 26% टैरिफ लगने से व्यापारियों के बीच चिंता बैठ गई है। रिजर्व बैंक के गवर्नर ने इस पर कहा है कि वैश्विक स्तर पर हो रहे बदलावों पर रिजर्व बैंक की निगाहें टिकी हुई हैं।
मल्होत्रा ने कहा कि अनिश्चितता से आर्थिक विकास धीमा हो जाता है और व्यापार में टकराव की वजह से वैश्विक और घरेलू वृद्धि पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। ज्यादा टैरिफ (शुल्क) से निर्यात प्रभावित होते हैं।
FY26 की पहली तिमाही में रियल GDP ग्रोथ का अनुमान 6.7% से घटाकर 6.5% कर दियाय गया है। माना जा रहा है कि ट्रेड वॉर के चलते भारत के निर्यात पर होने वाले नकारात्मक असर को देखते हुए यह बदलाव किया गया है।
हालांकि, मल्होत्रा का कहना है कि सर्विस एक्सपोर्ट की मजबूती बनी रहने की उम्मीद है जबकि सप्लाई साइड पर कृषि और उद्योग क्षेत्र में भी बेहतर परफॉर्मेंस की उम्मीद की जा सकती है।
रिजर्व बैंक गवर्नर ने बताया कि खाद्य पदार्थों की महंगाई दर में सकारात्मक बदलाव देखने को मिला है। सब्जियों की कीमतें और राबी की फसल को लेकर अनिश्चितताएं भी कम हुई हैं।
उम्मीद की जा रही है कि गेहूं का रेकॉर्ड उत्पादन हासिल किया जा सकता है और पिछले साल की तुलना में दालों के उत्पादन में बढ़ोतरी रहेगी। खरीफ की फसलें आने के साथ खाद्य पदार्थों की महंगाई में कमी रहेगी। इसे कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से बल मिलेगा।
रिजर्न बैंक ने ऐलान किया है कि UPI के जरिए पर्सन टू मर्चेंट ट्रांजैक्शन की लिमिट को ₹2 लाख से बढ़ाने पर फैसले का अधिकार NPCI (नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया) को दिया जाएगा। NPCI बैंकों और हितधारकों के साथ मिलकर इस पर फैसला कर सकता है। वहीं, पर्सन टू पर्सन ट्रांजैक्शन के लिए सीमा ₹1 लाख पर कायम रहेगी।
पिछले एक साल में तेजी से ऊपर बढ़े गोल्ड लोन सेक्टर को लेकर जल्द ही विस्तृत दिशा-निर्देश लाए जाएंगे। माना जा रहा है कि गोल्ड लोन देने के नियमों को कड़ा किया जा सकता है ताकि इसमें अनियमितताएं कम की जा सकें। सोने की कीमतों के बढ़ने से गोल्ड लोन बिजनेस भी तेजी से बढ़ा है जिसके चलते RBI को सतर्क होने की जरूरत पड़ी है।
MPC रिपोर्ट में RBI के पास 11 महीनों के आयात की जरूरतों को पूरा करने के लिए लिए पर्याप्त फॉरेक्स रिजर्व बताया गया है। 4 अप्रैल तक ये $676 अरब पर पहुंच गया था। फॉरेक्स रिजर्व की मात्रा बाहरी झटकों से घरेलू अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखती है और देश की करंसी को भी मजबूती देती है।
रिजर्व बैंक के मुताबिक ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में मांग के बढ़ने, सरकार के कैपिटल खर्च में बढ़ोतरी, और कॉर्पोरेट और बैंकिंग बैलेंस शीट की मजबूती के बल पर आर्थिक ग्रोथ को रफ्तार मिलेगी।
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