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4 min read | अपडेटेड February 13, 2025, 16:36 IST
सारांश
Climate Change Impact: जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश कम होने से फसलें घटेंगी तो न सिर्फ किसानों की आमदनी बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा पर भी संकट पैदा हो सकता है।
बारिश पर निर्भर फसलों की उपज कम होगी, सिंचाई पर पड़ेगा दबाव।
नई दिल्ली में चल रहे इंडिया एनर्जी वीक के दौरान केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने जलवायु परिवर्तन को एक बड़ा खतरा मानते हुए कहा था कि अब यह भविष्य का संकट नहीं रह गया है। यह कई गंभीर आपदाओं की शक्ल में याद दिला रहा है कि दुनिया के पास समय अब कम रहा गया है।
जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के चलते सबसे ज्यादा नुकसान उठाने वाले क्षेत्रों में एक कृषि भी है। इस पर केंद्र सरकार ने चिंताजनक आंकड़े भी सामने रखे हैं।
भारत में बारिश पर निर्भर धान की फसल साल 2050 तक 20% घट सकती है। साल 2080 तक इसके करीब 47% नीचे जाने की आशंका है। यही नहीं, सिंचाई से पैदा की जा रही धान की फसल भी साल 2050 तक 3.5% और 2080 तक 5% घट सकती है।
ये आंकड़े केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने लोकसभा के सामने रखे।
इंडियन काउंसिल ऑफ अग्रिकल्चरल रिसर्च (ICAR) के नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेजीलियंट अग्रिकल्चर (National Innovations in Climate Resilient Agriculture, NICRA) ने कृषि पर निर्भर 651 जिलों के असेसमेंट के आधार पर यह डेटा तैयार किया है।
इसके मुताबिक धान के साथ-साथ साल 2050 तक गेहूं की भी 19.3% और 2080 तक 40% जबकि मक्के की फसल 2050 तक 18% और 2080 तक 23% घट सकती है।
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) के पैमानों पर किए गए असेसमेंट में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन के खतरे के सामने 109 जिले अत्यधिक और 201 जिले अधिक संवेदनशील हैं।
NICRA फसलों, मवेशियों से लेकर मत्स्य पालन और फल-सब्जियों की खेती तक पर जलवायु परिवर्तन के असर को स्टडी करता है। इनमें कहा गया है कि इससे होने वाले नकाराकत्म प्रभावों का सामना करने के लिए कदम ना उठाए जाएं तो बारिश और सिंचाई, दोनों पर निर्भर धान, गेहूं और खरीफ के मक्के की फसल कम हो सकती है।
NICRA रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत उन देशों में से एक है जिन पर जलवायु परिवर्तन का खतरा है। इसमें क्लाइमेट स्टडीज के हवाले से आशंका जताई गई है कि भारत में 2030 के दशक तक तापमान में 1.7 डिग्री से 2 डिग्री सेल्सियस के बीच और 2080 के दशक तक 3.3 डिग्री से 4.80 डिग्री सेल्सियस के बीच तक औसतन वृद्धि हो सकती है। इसका सीधा असर फसलों की उपज और किसानों की आमदनी पर होगा।
जलवायु परिवर्तन भूमि की गणवत्ता को खराब करेगा, इनपुट कॉस्ट को बढ़ाएगा जिससे बाजार में अस्थिरता होगी और भारत जैसे कृषि प्रधान विकासशील देशों में रोजगार पर खतरा होगा। फसलों के साथ-साथ मवेशियों और मत्स्य पालन पर नकारात्मक असर से खाद्य सुरक्षा भी संकट में पड़ सकती है।
रिपोर्ट में 2019 में की गई एक स्टडी के हवाले से बताया गया है कि हीट वेव के कारण गेहूं की फसल की उपज पंजाब में 4.9 %, हरियाणा में 4.1 % और उत्तर प्रदेश में 3.5% नीचे जा गिरी थी। यही नहीं, 2005-2006 में राजस्थान में कोल्ड वेव के चलते राबी की फसलों की उपज में गिरावट के कारण ₹623 करोड़ का नुकसान हुआ था।
केंद्रीय राज्यमंत्री ने संसद को बताया कि जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान से निपटने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (National Mission for Sustainable Agriculture) के तहत इस पर खास फोकस रखा गया है।
खासकर प्रति बूंद ज्यादा फसल (Per Drop More Crop) योजना के जरिए पानी के बेहतर इस्तेमाल को प्रोत्साहन दिया जा रहा है ताकि बारिश और सिंचाई दोनों पर निर्भरता को नियंत्रित किया जा सके।
इसके अलावा किसानों को आर्थिक संकट से बचाने के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत वित्तीय सहायता भी दी जा रही है।
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