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4 min read | अपडेटेड January 31, 2025, 19:11 IST
सारांश
Economic Survey on Mental Health: आर्थिक सर्वेक्षण ने बताया है कि ऐसे लोग जो काम करने की जगह पर खुश नहीं होते, उनकी प्रोडक्टिविटी भी कम होती है। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को हर साल $1 ट्रिलियन का नुकसान होता है।
काम करने की जगह से लेकर लाइफस्टाइल, परिवार के साथ रिश्ते भी तय करते हैं मानसिक स्थिति। (तस्वीर: Shutterstock)
पिछले साल इन्फोसिस के सह-संस्थापक एन.आर. नारायणमूर्ति ने एक हफ्ते में 70 घंटे काम करने की जरूरत बताकर एक ऐसी बहस छेड़ दी थी, जो हाल ही में लार्सन ऐंड टूबरो के चेयरमैन एस.एन. सुब्रमण्यन के रविवार को भी काम करने वाले बयान तक चलती रही।
अब शुक्रवार को जारी किए गए आर्थिक सर्वेक्षण (2024-25) में कहा गया है कि एक हफ्ते में 55 से 60 घंटे काम करने पर शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर तो पड़ता ही है, ज्यादा घंटे एक डेस्क पर बिताने वालों को मानसिक स्तर पर भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सर्वे में कई स्टडीज के हवाले से वर्क-लाइफ बैलेंस पर रोशनी डाली गई है।
इकॉनमिक सर्वे में कहा गया है कि मानसिक रूप से स्वस्थ होना सिर्फ खुश होना नहीं होता बल्कि यह जीवन की चुनौतियों का सामना करने और प्रोडक्टिविटी के साथ काम करने की क्षमता होती है। इसमें हमारी मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक से लेकर दिमागी और शारीरिक क्षमताएं भी आती हैं।
पिछले आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में मानसिक स्वास्थ्य को एक आर्थिक मुद्दा माना गया था। सर्वे में इस बात पर जोर दिया गया था कि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में बढ़ रहे हैं और उनका असर अर्थव्यवस्था पर भी होता है।
सर्वे में कहा गया है कि काम करने की जगह के तौर-तरीके, काम करने के घंटे, लाइफस्टाइल जैसी चीजों का मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। सेपियन लैब्स सेंटर फॉर ह्यूमन ब्रेन ऐंड माइंड विस्तृत डेटा के आधार पर बताया गया है कि ऐसे लोग जिनके मैनेजर से लेकर साथियों के साथ अच्छे रिश्ते होते हैं, उनका मानसिक स्वास्थ्य का स्कोर दूसरों से बेहतर पाया गया। इसी तरह काम का सामान्य बोझ होने पर स्वास्थ्य भी बेहतर पाया गया जबकि ज्यादा बोझ होने पर मानसिक दिक्कतों का पता चला।
सर्वे में एक दिलचस्प बात यह सामने आई है कि जो लोग पूरी तरह से रिमोट काम करते हैं, उनका मानसिक स्वास्थ्य ऐसे लोगों से कम बेहतर पाया गया जो पूरी तरह ऑफिस से या हाइब्रिड काम करते हैं। इससे मानसिक स्वास्थ्य के लिए काम करने की जगह पर लोगों से मिलने-जुलने की अहमियत का पता चलता है।
सर्वे में कहा गया है कि यूं तो काम के ज्यादा घंटों को बेहतर प्रोडक्टिविटी का पैमाना समझा जाता है लेकिन पहले भी इस बात को माना गया है कि 55-60 घंटों से ज्यादा काम एक हफ्ते में करने से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। डेस्क पर 12 घंटे से ज्यादा काम करने वालों का मानसिक स्वास्थ्य दो से कम घंटे काम करने वालों की तुलना में कम बेहतर होता है।
आर्थिक सर्वेक्षण में काम के अलावा लाइफस्टाइल और परिवारिक स्थिति को भी मानसिक स्वास्थ्य के लिए अहम बताया गया है। ऐसे लोग जो अल्ट्रा-प्रोसेस्ड या पैकेज्ड खाने का उपभोग कम करते हैं, एक्सरसाइज करते हैं, सोशल मीडिया कम चलाते हैं या परिवार से नजदीकी बनाकर रखते हैं, उनका मानसिक स्वास्थ्य दूसरों से बेहतर होता है।
सर्वेक्षण में विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्टडी के हवाले से बताया गया है कि हर साल दुनियाभर में 12 अरब दिन का नुकसान डिप्रेशन और एंग्जायटी की वजह से होता है जिससे $1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होता है।
सर्वे के मुताबिक जिन लोगों का मानसिक स्वास्थ्य ज्यादा अच्छा नहीं होता, वे महीने में 15 दिन काम नहीं कर पाते जबकि बेहतर स्थिति वाले लोग महीने में सिर्फ एक या दो दिन ही काम नहीं कर पाते। यानी इससे प्रोडक्टिविटी पर सीधा असर पड़ता है।
इसी तरह मैनेजर और साथियों के साथ बेहतर रिश्ते ना होने पर, लाइफस्टाइल बिगड़ने पर भी काम करने के समय पर नकारात्मक असर पड़ता है।
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