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3 min read | अपडेटेड February 18, 2025, 09:30 IST
सारांश
Aykroyd formula: 7वें वेतन आयोग ने सिर्फ वित्तीय भत्तों पर ध्यान नहीं दिया था बल्कि कॉस्ट ऑफ लिविंग और महंगाई दर को भी आधार बनाया था।
8वें वेतन आयोग से भी महंगाई, कॉस्ट ऑफ लिविंग पर ध्यान देने की उम्मीद।
केंद्र सरकार ने 8वें वेतन आयोग (8th Central Pay Commission) के गठन के लिए काम शुरू कर दिया है। कर्मचारी संगठनों के साथ बैठकों का दौर भी चल रहा है जिससे यह तय किया जाएगा कि आयोग किस आधार पर वेतन, पेंशन और दूसरे भत्ते तय करेगा। ऐसे में कर्मचारियों और पेंशनधारकों के बीच भी इस पर चर्चा जारी है।
पहले के वेतन आयोग वित्तीय भत्तों पर फोकस करते रहे हैं। हालांकि, 7वें वेतन आयोग ने पहले से लागू ग्रेड पे सिस्टम की जगह एक पे-मैट्रिक्स का इस्तेमाल किया था। यह मैट्रिक्स पे स्ट्रक्चर आया था Aykroyd फॉर्म्यूला से।
अटकलें लगाई जा रही हैं कि 8वां वेतन आयोग भी Aykroyd फॉर्म्यूला लगाकर, मौजूदा मुद्रास्फीति और उभरती जरूरतों के हिसाब से अपने प्रस्ताव तैयार करे। उसका लक्ष्य सरकार के वित्तीय बोझ को ध्यान में रखते हुए कर्मचारियों का फायदा करने का होगा।
Aykroyd फॉर्म्यूला डॉ. वॉलेस एकरॉएड ने डिवेलप किया था। यह किसी देश में बेसिक कॉस्ट ऑफ लिविंग को कैलकुलेट करता है। इसमें एक औसत कर्मचारी की न्यूट्रिशनल जरूरतों को आधार बनाया जाता है। इसके साथ ही खाना, कपड़े, घर जैसी मूलभूत जरूरतों के आधार पर एक न्यूनतम वेतन तय किया जाता है।
साल 1957 में 15वें भारतीय मजदूर कॉन्फ्रेंस ने न्यूनतम वेतन तय करने के लिए इसका इस्तेमाल किया था। इसमें एक कर्मचरी के परिवार की जरूरतों पर भी ध्यान दिया गया था। एक परिवार में कर्मचारी के पति/पत्नी और दो बच्चों को उपभोग की 3 इकाइयों के बराबर माना गया था।
7वें वेतन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस पे स्ट्रक्चर के दो लक्ष्य चिन्हित किए थे- एक कुशल और योग्य कर्मचारियों को नौकरी में लाना और दूसरा, यह सुनिश्चित करना कि सरकार की सेवाएं सस्टेनेबल रहें। रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया कि सरकारी सेवाएं सिर्फ कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर नहीं होतीं, बल्कि एक सामाजिक स्टेटस देती हैं। इसका मूल्य पैसे से कहीं अलग होता है।
रिपोर्ट में Aykroyd फॉर्म्यूले का इस्तेमाल कर केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के लिए मासिक न्यूनतम वेतन ₹18,000 तय किया था। यह जरूरत पर आधारित न्यूनतम वेतन के मजदूर कॉन्फ्रेंस के सिद्धांतों पर आधारित था। इसमें मौजूदा समय की कॉस्ट ऑफ लिविंग को ध्यान में रखा गया था।
डॉ. वॉलेस के मुताबिक खाने में रोजाना 2,700 कैलरी होनी चाहिए। 65 ग्राम प्रोटीन और 45-60 ग्राम फैट थोड़ी-बहुत ऐक्टिविटी करने वाले हर भारतीय वयस्क के लिए जरूरी है। उनके मुताबिक दूध, अंडे, मछली और मीट जैसे जानवरों पर आधारित प्रोटीन सब्जियों से आने वाले प्रोटीन से ज्यादा असरदार होते हैं और कुल प्रोटीन की खपत में इनका कम से कम 1/5th हिस्सा होना चाहिए।
रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया था कि इस मैट्रिक्स को नियमित रूप से रिव्यू किया जाए। इसमें चीजों की कीमतों और महंगाई दर का ध्यान रखने को भी कहा गया था। इसके पीछे बड़ा कारण यह था कि नियमित रिव्यू के जरिए भत्ते अपग्रेड होते रहें और अगले वेतन आयोग का इंतजार ना करना हो। आयोग ने सिविलियन्स, रक्षा विभाग से जुड़े कर्मचारियों और सेना में नर्सिंग सेवाओं से जुड़े लोगों के लिए अलग मैट्रिक्स था।
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