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2 min read | अपडेटेड February 21, 2025, 11:27 IST
सारांश
Gratuity Rules: कोर्ट का कहना है कि नियोक्ता अगर इस बारे में कोई कार्रवाई नहीं करते हैं, तो भी नैतिक धर्म के उल्लंघन पर ग्रैच्युटी को काटा जा सकता है।
अभी तक आपराधिक मामले में दोषी पाए जाने पर ही रोकी जा सकती थी ग्रैच्युटी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा फैसले में कहा है कि अगर किसी शख्स को ‘नैतिक धर्म का उल्लंघन’ (Moral Turpitude) का उल्लंघन करते पाया जाता है, तो उसकी ग्रैच्युटी रोकी जा सकती है। पहले आपराधिक मामलों में दोषी पाए जाने पर ही ऐसा किया जाता था।
दि इकॉनमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अगर कोई नियोक्ता एक कर्मचारी को धोखाधड़ी के आधार पर निकालता है, तो उसकी ग्रैच्युटी रोकने के लिए कोर्ट के आदेश की जरूरत नहीं है। अभी तक पेमेंट ऑफ ग्रैच्युटी ऐक्ट, 1972 के तहत ऐसे में मामलों में आपराधिक दोषसिद्धि (Criminal conviction) अनिवार्य था।
मामला एक पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग (PSU) से जुड़ा है जहां एक कर्मचारी ने नौकरी हासिल करने के लिए अपनी उम्र गलत बताई थी। PSU की अनुशासन समिति ने उसे नौकरी से बाहर कर ग्रैच्युटी रोक दी। इसके लिए नैतिक धर्म के उल्लंघन का कारण बताया गया है।
कोर्ट ने इस पर फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर नियोक्ता ने उसके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई नहीं की है, तो भी ग्रैच्युटी रोकने का फैसला गलत नहीं है। अगर मामला नैतिक धर्म के उल्लंघन से जुड़ा है और साबित हुआ है, तो आपराधिक कार्रवाई अनिवार्य नहीं है।
हालांकि, कोर्ट ने साफ किया है कि भले ही ऐसे मामलों में ग्रैच्युटी रोकी जा सकती है, संस्थानों को अंतिम फैसले लेने के पहले कर्मचारी को खुद को निर्दोष साबित करने का पूरा मौका देना चाहिए।
इसके पहले साल 2018 में एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नियोक्ता को ग्रैच्युटी रोकने के पहले नैतिक धर्म के उल्लंघन को साबित करना पड़ेगा।
पिछले साल 1 जनवरी, 2024 से केंद्र सरकार के कर्मचारियों का डियरनेस अलाउएंस बेसिक सैलरी के 50% से बढ़ा दिया गया है। इसके बाद 7वें वेतन आयोग के सुझाव के आधार पर सरकार ने ग्रैच्युटी भी 25% बढ़ा दी। इसकी अधिकतम सीमा अब ₹25 लाख हो गई है। 7वें वेतन आयोग ने ग्रैच्युटी की लिमिट को ₹10 से ₹20 लाख कर दिया था।
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