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3 min read | अपडेटेड February 13, 2025, 13:36 IST
सारांश
New Income Tax Bill: अभी तक सामने आए इस बिल के ड्राफ्ट के मुताबिक सैलरी से होने वाली आमदनी और इसपर लगने वाले टैक्स से जुड़े प्रावधान इस तरह आसान किए जा रहे हैं कि उन्हें लेकर करदाताओं या टैक्स अधिकारियों को कोई कन्फ्यूजन ना पैदा हो।
नए आयकर विधेयक 2025 के ड्राफ्ट में आमदनी और सैलरी को लेकर आसान की गई है भाषा।
आयकर कानून 1961 (Income Tax Act) की जगह लेने वाले नए आयकर विधेयक 2025 (New Income Tax Bill) में ‘सैलरी’ के तहत आने वाली आमदनी के मतलब को समझने में आसान बनाने के लिए कुछ बदलाव किए जा सकते हैं। अगर इसी शक्ल में इस बिल को पारित किया जाता है तो करदाताओं को कानून की समझ में आसानी हो सकती है।
अभी तक सामने आए इस बिल के ड्राफ्ट के मुताबिक सैलरी से होने वाली आमदनी और इसपर लगने वाले टैक्स से जुड़े प्रावधान इस तरह आसान किए जा रहे हैं कि उन्हें लेकर करदाताओं या टैक्स अधिकारियों को कोई कन्फ्यूजन ना पैदा हो।
आयकर कानून के तहत अलग-अलग तरह से होने वाली आमदनी पर उसके हिसाब से अलग-अलग टैक्स भी लगता है। नए विधेयक में आमदनी की 5 श्रेणियां हैं- सैलरी, अचल संपत्ति (घर) से होने वाली आमदनी, बिजनेस प्रफेशन से मिलने वाले प्रॉफिट और गेन, कैपिटल गेन और दूसरे स्रोतों से होने वाली आमदनी।
इसके अलावा नए बिल में अप्रैल से मार्च के बीच के 12 महीने के समय के लिए ‘असेसमेंट इयर’ और ‘पिछले साल’ के कॉन्सेप्ट को हटाने का प्रस्ताव है।
नए आयकर विधेयक के मुताबिक ‘सैलरी’ की श्रेणी में जो आमदनी आती हैं, उनमें हैं-
टैक्स इयर के दौरान मौजूदा या पुराने नियोक्ता से मिलने के लिए तय सैलरी, भले ही भुगतान किया गया हो या नहीं।
टैक्स इयर के दौरान नियोक्ता से मिलने वाली सैलरी, जो देय वेतन (due salary) नहीं है।
नियोक्ता द्वारा दिए जाने वाले ऐसे एरियर जिनपर पिछले टैक्स इयर के दौरान आयकर नहीं लगा था।
वेतन, ऐन्युटी या पेंशन, ग्रेच्युटी, फीस या कमीशन, अनुलाभ, सैलरी के अलावा अतिरिक्त प्रॉफिट, अडवांस सैलरी, लीव एनकैशमेंट, टैक्स-फ्री लिमिट के आगे प्रॉविडेंट फंड में योगदान, केंद्र सरकार या किसी और नियोक्ता द्वारा कर्मचारी पेंशन योजना अकाउंट में दिया जाने वाला योगदान, अग्निवीर कॉर्पस में केंद्र सरकार द्वारा दिया गया योगदान।
विधेयक के मुताबिक अगर सैलरी अडवांस में दी गई है और किसी टैक्स इयर के दौरान कुल आमदनी में इसे शामिल कर लिया गया है तो जब वह सैलरी देने का असल वक्त आएगा, तब उसे दोबारा कुल आमदनी में शामिल नहीं किया जाएगा।
इसके अलावा सैलरी, बोनस, कमीशन या पारिश्रमिक जो या तो देय हो या किसी कंपनी कंपनी के पार्टनर को मिला हो, उसे टैक्स कैलकुलेशन के लिए सैलरी के तहत नहीं माना जाएगा।
ध्यान देने वाली बात यह है कि विधेयक के तहत ऐसे कोई बदलाव नहीं होंगे जिससे टैक्स की स्लैब या टैक्स दर पर असर पड़े। किसी वित्तीय वर्ष के दौरान सैलरी से आमदनी पर टैक्स उस वित्तीय वर्ष में लागू टैक्स स्लैब और दरों के मुताबिक ही लगेगा।
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