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3 min read | अपडेटेड February 12, 2025, 08:25 IST
सारांश
Deductions in New Tax Regime: पुरानी कर व्यवस्था में डिडक्शन के जरिए लोग टैक्स बचाने की कोशिश करते हैं जबकि नई कर व्यवस्था में सेविंग्स भविष्य में आमदनी को जारी रखने का रास्ता तैयार करती हैं।
लॉन्ग-टर्म सेविंग्स भविष्य की सुरक्षा को सुनिश्चित करती हैं।
हालांकि, पुरानी कर व्यवस्था (Old Tax Regime) चुनने पर इन योजनाओं में सालाना ₹1.5 लाख निवेश पर डिडक्शन क्लेम किया जा सकता है। ऐसे में यह समझना दिलचस्प है कि क्यों नई कर व्यवस्था में ब्याज और निवेश पर टैक्स में अंतर किया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक लंबे वक्त की मच्योरिटी वाली फाइनेंशियल इंस्ट्रुमेंट्स को छोटे वक्त की मच्योरिटी वाले इंस्ट्रुमेंट्स पर टैक्स अलग होना चाहिए क्योंकि लॉन्ग-टर्म इंस्ट्रुमेंट्स सामाजिक सुरक्षा के जरिए लंबे वक्त तक पैसे जोड़ना आसान करते हैं।
जैसे, सुकन्या समृद्धि योजना में अपनी बच्ची के लिए निवेश कर रहे लोगों को नई कर व्यवस्था के तहत ब्याज और मच्योरिटी अमाउंट पर टैक्स में राहत मिलती है। हालांकि, इस योजना के तहत किया गया निवेश नई कर व्यवस्था में 80सी में दिए जाने वाले डिडक्शन से बाहर है।
इस तरह लॉन्ग-टर्म सेविंग्स को प्रोत्साहन दिया जा रहा है ताकि लंबे वक्त में पैसे जमा हों और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित हो। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नई कर व्यवस्था को डिफॉल्ट टैक्स व्यवस्था बनाने का सरकार का फैसला टैक्स की प्रक्रिया को आम लोगों के लिए आसान बनाने की एक कड़ी है।
रिपोर्ट आगे कहती है कि कम और मीडियम टर्म वाली योजनाओं पर टैक्स प्रोत्साहन इनसे मिलने वाली सेंविग्स को टैक्स देने से बचने वाले इंस्ट्रुमेंट्स में लगाने का रास्ता तैयार करते हैं।
इससे उलट लॉन्ग-टर्म इंस्ट्रुमेंट पर टैक्स प्रोत्साहन भविष्य में कम होने वाली आमदनी (जैसे रिटायरमेंट के बाद) को पूरा करने के लिए बचत को बढ़ाते हैं और बच्चों की पढ़ाई और शादी जैसी जरूरतों पर खर्च बढ़ाते हैं। इससे अर्थव्यवस्था में फाइनेंशियल ऐसेट्स और बचत का एक आम स्तर ऊपर जाता है।
केंद्र सरकार का ध्यान इस बात पर है कि ज्यादा से ज्यादा लोग नई कर व्यवस्था से जुड़ें। इसलिए बजट 2025 में सरकार ने टैक्स स्लैब में भी बदलाव किया है और टैक्स में छूट की सीमा को भी ₹7 लाख से बढ़ाकर ₹12 लाख कर दिया गया है।
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