पर्सनल फाइनेंस
4 min read | अपडेटेड January 14, 2025, 08:56 IST
सारांश
नई कर व्यवस्था में होम लोन पर लगने वाले ब्याज के लिए टैक्स में डिडक्शन नहीं दिया गया है जबकि पुरानी टैक्स व्यवस्था में यह सुविधा थी। इससे मकान खरीदने पर उसे किराये पर देने के बावजूद नुकसान उठाना पड़ता है।
किराये से होने वाली आमदनी कर्ज के ब्याज से कम रह जाती है, ऐसे में टैक्स में छूट दे सकती है राहत
नई कर व्यवस्था (New Tax Regime) में ऐसे कई डिडक्शन खत्म कर दिए गए हैं जिनका फायदा पुरानी कर व्यवस्था (Old Tax Regime) में करदाताओं को मिलता था। इसके चलते अभी भी कई करदाता ऐसे हैं जो पुरानी व्यवस्था को ही चुन रहे हैं। इनमें से एक डिडक्शन है होम लोन पर लगने वाले ब्याज पर।
एक वेतनप्राप्त कर्मचारी को पुरानी कर व्यवस्था के तहत खुद रहने के लिए बनाई गई प्रॉपर्टी के होम लोन पर लगने वाले ब्याज पर 2 लाख तक का डिडक्शन मिल जाता है। इसे नई कर व्यवस्था में खत्म कर दिया गया है। नई व्यवस्था में किराये पर दी गई संपत्ति के लिए कुछ रियायत मिलती है।
जैसे अगर किराये से आमदनी आ रही है तो होम लोन ब्याज में डिडक्शन की सीमा आयकर कानून के सेक्शन 24 में तय नहीं की गई है। हालांकि, आमतौर पर ब्याज किराये से आने वाली आमदनी से ज्यादा ही होता है। ऐसे में संपत्ति के मालिक को नुकसान उठाना पड़ता है लेकिन इसे किसी और आमदनी से मिलाकर या आगे जोड़कर नई कर व्यवस्था में फायदा नहीं लिया जा सकता।
इससे उलट पुरानी कर व्यवस्था में घर पर होने वाले 2 लाख तक के नुकसान को किसी और आमदनी के साथ अडजस्ट किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त ऐसे नुकसान जिन्हें अभी अडजस्ट नहीं किया गया है, उन्हें 8 असेसमेंट वर्षों के लिए कैरी फॉरवर्ड किया जा सकता है।
बजट 2025 के पेश होने में कुछ ही दिन बचे हैं। ऐसे में घर खरीद रहे लोगों को उम्मीद है कि होम लोन के ब्याज पर नई कर व्यवस्था में भी डिडक्शन मिलेगा। इसे लेकर इंस्टिट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (ICAI) ने सरकार को दिए गए सुझावों में इससे जुड़े मुद्दे का भी जिक्र किया है।
ज्यादातर वेतनप्राप्त लोग बैंकों या हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के जरिए कर्ज लेकर घर खरीदते हैं। इस कर्ज पर लगने वाला ब्याज इसके जरिए मिलने वाले किराये से कहीं ज्यादा होता है जिसके चलते खरीददार को नुकसान उठाना पड़ता है।
ICAI का कहना है कि खुद रहने के लिए इस्तेमाल हो रही संपत्ति के ब्याज पर कटौती न मिलने से वेतनप्राप्त लोगों को भारी वित्तीय परेशानियों का सामना करना पड़ता है। नई कर व्यवस्था में किराये पर दी गई संपत्ति पर होने वाले नुकसान को भी किसी और आमदनी में अडजस्ट करने या कैरी फॉरवर्ड करने का विकल्प नहीं है।
ICAI ने इसे लेकर सरकार को तीन सुझाव दिए हैं। पहला यह कि सरकार नई कर व्यवस्था में ब्याज पर डिडक्शन को 2 लाख तक करे। दूसरा, इससे होने वाले नुकसान को किसी और आमदनी के साथ अडजस्ट करने का विकल्प हो और तीसरा इसे 8 असेसमेंट वर्षों तक कैरी फॉरवर्ड किया जा सके।
ICAI ने वेतनप्राप्त कर्मचारियों के लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन बढ़ाने का भी सुझाव सरकार को दिया है। वेतनप्राप्त कर्मचारी नई कर व्यवस्था (New Tax Regime) के तहत ₹75,000 स्टैंडर्ड डिडक्शन क्लेम कर सकते हैं। वहीं, पुरानी कर व्यवस्था (Old Tax Regime) के तहत यह सीमा ₹50,000 है।
संस्थान का कहना है कि ये लिमिट बढ़ती महंगाई और समय के साथ खुद को अपडेट करने के लिए जरूरी स्किल्स को हासिल करने पर होने वाले खर्च को ध्यान में नहीं रखती। ICAI ने यह भी सलाह दी है कि शेयर्स और सिक्यॉरिटीज से आने वाली आमदनी को एक अलग कैटिगिरी में रखा जाए ताकि टैक्सेशन को बेहतर किया जा सके।
ICAI ने यह भी सुझाव दिया है कि शादीशुदा जोड़ों को संयुक्त आयकर रिटर्न फाइल करने का विकल्प मिले। इससे जिन परिवारों में एक शख्स कमाई कर रहा है उनके ऊपर से वित्तीय बोझ कम किया जा सके। इससे टैक्स से बचने की कोशिश भी रोकी जा सकती है। पति-पत्नी अगर दोनों वेतनप्राप्त हैं तो उनके लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन अलग-अलग होना चाहिए।
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