return to news
  1. IPO में कट-ऑफ प्राइस का क्या है मतलब? यहां समझें डीटेल में

मार्केट न्यूज़

IPO में कट-ऑफ प्राइस का क्या है मतलब? यहां समझें डीटेल में

Upstox

6 min read | अपडेटेड November 05, 2024, 12:08 IST

Twitter Page
Linkedin Page
Whatsapp Page

सारांश

भारत में पिछले कुछ सालों से इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) ने धूम मचा रखी है। शेयर मार्केट में चाहे नए खिलाड़ी हों या पुराने, सब IPO में अपनी किस्मत आजमाने लगे हैं। IPO में इन्वेस्ट करने के बारे में अगर सोच रहे हैं, तो आपके लिए कट-ऑफ प्राइस (Cut off price) भी समझना जरूरी है।

IPO में कट- ऑफ प्राइस होता है अहम

IPO में कट- ऑफ प्राइस होता है अहम

इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) का क्रेज भारत में पिछले कुछ सालों में काफी ज्यादा बढ़ा है। IPO में बिड करने की होड़ मचने लगी है और कई छोटी कंपनियों ने अपना IPO लॉन्च करके करोड़ रुपये बनाए हैं और इन्वेस्टर्स ने भी कई IPO से काफी ज्यादा प्रॉफिट कमाया है। चलिए समझते हैं कि IPO क्या है और कट-ऑफ प्राइस क्या है, साथ ही किस तरह इसको कैलकुलेट किया जाता है।

IPO में कट-ऑफ प्राइस क्या होता है?

इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) जिस तरह से पॉपुलर हो चुका है, आपको इसके बारे में बेसिक बातें पता ही होंगी, लेकिन अगर आप एक उत्सुक इन्वेस्टर हैं, तो आपको यह जानने में भी दिलचस्पी होगी कि क्यों कंपनियां अपना IPO लॉन्च करती हैं। साथ ही आप उन कंपनियों से कुछ हद तक सावधान भी रहेंगे, जो जल्द ही अपना IPO लेकर मार्केट में कूद पड़ती हैं। अगर आप नए इन्वेस्टर हैं तो IPO के कई ऐसे पहलू होंगे जिनके बारे में आप नहीं जानते होंगे, कट-ऑफ प्राइस उनमें से एक है।

IPO में कट-ऑफ प्राइस को कैसे डिफाइन करेंगे?

IPO में कट-ऑफ प्राइस उस कीमत को दर्शाता है जिस पर एक कंपनी इन्वेस्टर्स को अपने शेयर जारी करती है। शेयरों और बही के लिए इन्वेस्टर्स की आवश्यकताओं का इवैलुएशन करने के बाद, कंपनी फैसला लेती है। यह रियल आइडेंटीफाइड इश्यू प्राइस है, जो दिए गए प्राइस बैंड में कोई भी हो सकता है।

सेबी की गाइडलाइन्स के मुताबिक, केवल इंडिविजुअल रिटेल इन्वेस्टर्स ही कट-ऑफ प्राइस पर IPO के लिए अप्लाई कर सकते हैं। अब इसको एक उदाहरण के साथ समझते हैं, मान लीजिए एबीसी कॉर्पोरेशन ने 100-110 रुपये के बीच अपना IPO लॉन्च किया। आप 105 रुपये पर पांच शेयर के लिए अप्लाई कर सकते हैं, चूंकि आप 105 रुपये तक सब्सक्राइब करना चाहते हैं, तो आपको शेयर प्राइस 102 रुपये का मिलेगा, अगर यह तय किया गया इश्यू प्राइस है।

अगर इश्यू प्राइस 106 रुपये है, तो आपको शेयर अलॉट नहीं किया जाएगा। अगर आप कट-ऑफ के साथ चलते हैं, तो आप इश्यू की किसी भी कीमत पर शेयर अलॉटमेंट के लिए एलिजिबल हो जाएंगे।

भारत में IPO प्राइसिंग के तरीके क्या-क्या हैं?

भारत में IPO प्राइसिंग के दो तरीके हैं, पहला फिक्स्ड प्राइस मैकेनिज्म और दूसरा बुक बिल्डिंग मेथड, चलिए समझते हैं कि दोनों का मतलब क्या है और दोनों कैसे एक-दूसरे से अलग हैं-

फिक्स्ड प्राइस मैकेनिज्म

इस मैकेनिज्म में, IPO की कीमत कंपनी द्वारा पहले से तय की जाती है। यह कीमत IPO को पब्लिक के लिए खोल देती है। फिक्स्ड प्राइस मैकेनिज्म में IPO इश्यू होने वाले दिन अलग-अलग कैटेगरी के इन्वेस्टर्स की बारे में जानकारी रिवील होती है।

इस मेथड के तहत, IPO इश्यू करने की डेट से पहले शेयरों की मांग निर्धारित करने का कोई मेथड नहीं है। इस तरह से, जब भी कोई कंपनी फिक्स्ड प्राइस मैकेनिज्म के साथ जाना चुनती है, तो सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) ने रिटेल इन्वेस्टर्स को पूरे शेयर लॉट का 50% अलॉट करना अनिवार्य कर दिया है।

बुक बिल्डिंग मेथड

बुक-बिल्डिंग मेथड की शुरुआत में IPO की कीमत समझ में नहीं आती है। कंपनी जब भी IPO लॉन्च करती है तो प्राइस रेंज की घोषणा करती है। और फिर, इन्वेस्टर्स प्राइस रेंज के हिसाब से बोली लगाना शुरू करते हैं। अगर बुक-बिल्डिंग मेथड को माना जाता है तो रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस में इस फ्लोर प्राइस या प्राइस बैंड की पहचान करना IPO इश्यू करने वाले की जिम्मेदारी बन जाती है।

IPO में कट-ऑफ प्राइस का रोल क्या है?

जब कोई IPO बंद होने वाला होता है, तो इन्वेस्टमेंट बैंकर प्राइस डिस्कवरी प्रोसेस शुरू करते हैं। लेकिन, क्योंकि यहां कोई सेट प्राइस नहीं है, इसलिए अलग-अलग प्राइस पर कई बोलियां लगेंगी। जो ऑफर प्राइस आए हैं, उनके वेटेड एवरेज को इवैलुएट करके बैंकर्स प्राइस को लेकर आखिरी फैसला लेते हैं।

कट-ऑफ प्राइस ही फिर अल्टीमेट इस्टैब्लिश्ड प्राइस बन जाती है। अगर कोई पॉपुलर इश्यू ऑफर किए गए शेयरों के नंबर से अधिक बिडिंग कर रहा है, तो IPO में कट-ऑफ प्राइस सीलिंग प्राइस बन जाती है। एक बार कट-ऑफ प्राइस तय होने के बाद, जिन इन्वेस्टर्स ने इस रेंज से नीचे बोली लगाई थी, उन्हें पूरा पैसा वापस कर दिया जाएगा क्योंकि उन्हें IPO अलॉटमेंट नहीं मिलेगा।

इसके उलट, जिन इन्वेस्टर्स ने कट-ऑफ प्राइस से ऊपर बोली लगाई थी और उन्हें शेयर अलॉट किए गए हैं, उन्हें एक्स्ट्रा लगाया गया पैसा वापस मिलेगा। अगर ऐसी स्थिति आती है जब कोई इन्वेस्टर रिजल्ट की परवाह किए बिना IPO अलॉट चाहता है, तो उसे एक एप्लिकेशन भरकर कट-ऑफ पर शेयर खरीदने का ऑप्शन चुनना होगा। इससे यह सुनिश्चित हो जाएगा कि इन्वेस्टर इस अलॉटमेंट के लिए एलिजिबल है, भले ही कट-ऑफ प्राइस कुछ भी हो।

IPO हासिल करने का चांस ऐसे कर सकते हैं बेहतर

अगर कोई IPO ओवरसब्सक्राइब हो जाता है, तो ऐसे में अलॉटमेंट का चांस बहुत कम हो जाता है अगर आपने टॉप प्राइस रेंज से कम की बोली लगाई है। भले ही आप हायर प्राइस रेंज चुनते हैं, फिर भी अलॉटमेंट मिलने की संभावना कम होती है, खासकर अगर इश्यू किया हुआ IPO पॉपुलर है।

IPO मार्केट तेजी से बढ़ रहा है, अलॉटमेंट हासिल करना कुछ हद तक लकी ड्रॉ निकलने जैसा होता जा रहा है और IPO में कट-ऑफ चुनना संभावनाओं को अपने पक्ष में करने का सबसे अच्छा तरीका है। इसके अलावा, कुछ अन्य तरीके भी हैं जिनका इस्तेमाल आप अलॉटमेंट मिलने के चांस बढ़ाने के लिए कर सकते हैं- 1- एक ही लॉट के लिए बिड करें 2- फैमिली या दोस्तों के डीमैट अकाउंट से अप्लाई करें 3- IPO इश्यू होने के पहले दिन ही अप्लाई करें

डिस्क्लेमर इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि जब आप ओवरसब्सक्राइब्ड IPO के लिए अप्लाई करेंगे तो आपको अलॉटमेंट मिलेगा ही मिलेगा।

FAQs

क्या IPO में कट-ऑफ से ज्यादा प्राइस पर बिड किया जा सकता है? हां, आप कट-ऑफ प्राइस से अधिक कीमत पर बोली लगा सकते हैं। ऑफर फॉर सेल (ओएफएस) में अलॉटमेंट हाइएस्ट प्रायरिटी प्राइस पर तय किया जाता है।
क्या IPO में कट-ऑफ प्राइस पर ही बिड किया जाना चाहिए? अगर आप कट-ऑफ प्राइस पर बोली लगाना चाहते हैं, तो आप आसानी से ऐसा कर सकते हैं। इसके जरिए, आपके शेयर अलॉट होने की संभावना थोड़ी बढ़ जाती है। साथ ही, ध्यान रखें कि अगर आपके पास कट-ऑफ प्राइस और फाइनल प्राइस से नीचे बोली लगाने का ऑप्शन नहीं है तो आपको रिफंड और अलॉटमेंट नहीं मिलेगा। अगर आप फाइनल प्राइस से अधिक की बोली लगाते हैं, तो आपको इस अंतर का रिफंड मिल जाएगा।
IPO में कट-ऑफ प्राइस को कैसे कैलकुलेट किया जाता है? बैंकरों द्वारा फाइनल प्राइस तय करने के लिए कुल लगाई गई बिड के वेटेड एवरेज को इवैलुएट किया जाता है। यह फाइनल प्राइस जिस पर जीरो किया जाता है उसे कट-ऑफ कीमत कहा जाता है। अगर कोई IPO इश्यू बहुत पॉपुलर है और ऑफर पर उपलब्ध शेयरों की तुलना में अधिक बिडिंग होती है, तो यह कीमत आम तौर पर अधिकतम कीमत होती है।

लेखकों के बारे में

Upstox
Upstox Hindi News Desk पत्रकारों की एक टीम है जो शेयर बाजारों, अर्थव्यवस्था, वस्तुओं, नवीनतम व्यावसायिक रुझानों और व्यक्तिगत वित्त को उत्साहपूर्वक कवर करती है।

अगला लेख