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4 min read | अपडेटेड November 12, 2024, 19:22 IST
सारांश
Gold exchange-traded funds (ETFs) को लेकर लोगों में क्रेज अब पहले से काफी ज्यादा बढ़ गया है। जियोपॉलिटिकल रिस्क, सेंट्रल बैंक पॉलिसी में बदलाव और इक्विटी मार्केट में अस्थिरता के चलते ऐसा हुआ है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल डेटा में कुछ अहम बातें सामने आई हैं।
भारतीय Gold ETFs का खजाना 4 साल में दोगुना होकर 54.5 टन हुआ
Gold exchange-traded funds (ETFs) इन्वेस्टर्स के लिए एक आकर्षक और बढ़िया साधन बन गया है, जहां वह अपने फंड्स को गोल्ड में इन्वेस्ट करके निश्चिंत हो सकते हैं। World Gold Council के डेटा को देखकर पता चलता है कि भारतीय Gold ETFs द्वारा रखा गया कुल फिजिकल गोल्ड पिछले चार सालों में लगभग दोगुना होकर 31 अक्टूबर, 2024 तक 54.5 टन के रिकॉर्ड हाइ पर पहुंच गया। चार साल पहले इसी पीरियड में, यह 27.4 टन था। बढ़ते हुए जियोपॉलिटिकल रिस्क, सेंट्रल बैंक पॉलिसी में बदलाव और इक्विटी मार्केट में अस्थिरता जैसे कुछ अहम कारण हैं, जिसकी वजह से गोल्ड में यह तेजी देखने को मिल रही है। इस सेगमेंट ने छोटे और बड़े दोनों तरह इन्वेस्टर्स को अपनी ओर खींचा है। म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री बॉडी AMFI के आंकड़ों से पता चलता है कि डोमेस्टिक गोल्ड ETFs को पिछले 21 महीनों में 12,448 करोड़ रुपये का नेट इनफ्लो मिला है।
Gold ETF निष्क्रिय रूप से मैनेज्ड म्यूचुअल फंड स्कीम्स हैं जो 99.5 प्रतिशत शुद्धता के साथ मानक बुलियन में इन्वेस्ट करती हैं। वे गोल्ड के डोमेस्टिक प्राइस पर करीबी नजर बनाए रखते हैं। ये ETFs केवल स्टॉक एक्सचेंजों पर ही उपलब्ध हैं और इन्हें खरीदने और बेचने के लिए डीमैट अकाउंट की जरूरत होती है।
पिछले 15 सालों में, भारतीय Gold ETFs में जबर्दस्त इनफ्लो देखने को मिला है, खासकर 2011, 2020 और 2024 में अनिश्चितताओं के दौरान। डेटा से पता चलता है कि डोमेस्टिक Gold ETFs ने इन तीन सालों में क्रम से 17, 14 और 12 टन सबसे अधिक जोड़ा है।
मनी कंट्रोल की खबर के मुताबिक टाटा एसेट मैनेजमेंट में कमोडिटी के फंड मैनेजर तपन पटेल का कहना है, ‘ऐतिहासिक रूप से, हमने मार्केट की अनिश्चितता, सेंट्रल बैंक पॉलिसी में बदलाव और बढ़े हुए जियोपॉलिटिकल रिस्क के समय गोल्ड में इन्वेस्ट करने के लिए इन्वेस्टर्स की दिलचस्पी देखी है।’ 2011 में गोल्ड में इन्वेस्ट करने में सबसे अधिक इंटरेस्ट अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा 2008 के वित्तीय संकट से निपटने में इकॉनमी में मदद करने के लिए मॉनिटरी ढील के कारण थी। 2020 के कोविड ईयर में ग्लोबल मार्केट गिर गए। 2024 में एक बार फिर मार्केट में अस्थिरता आई उसकी वजह दुनिया भर में अलग-अलग हिस्सों में युद्ध होना और सेंट्रल बैंक पॉलिसी में बदलाव होना हैं।
Gold ETFs एसेट वॉल्यूम में मौजूदा उछाल का कारण नए सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (एसजीबी) की गैरमौजूदगी, सेकेंडरी मार्केट में कारोबार किए गए SGBs का हाइ प्रीमियम और गोल्ड एसेट्स को एलोकेट करने के लिए मल्टी-एसेट फंड कैटेगरी द्वारा Gold ETFs को प्राथमिकता देना भी है।
इन सबसे ऊपर, सेंट्रल बजट 2024 के बाद Gold ETFs और अधिक आकर्षक हो गए। नए टैक्स स्ट्रक्चर के मुताबिक, Gold ETFs की यूनिट बेचने से होने वाले प्रॉफिट पर 12.5 फीसदी का कैपिटल गेन टैक्स लगेगा, अगर इसे एक साल से अधिक समय तक रखा जाए। पहले, होल्डिंग पीरियड के बावजूद, प्रॉफिट पर स्लैब रेट्स पर टैक्स लगाया जाता था।
Gold ETFs फिजिकल गोल्ड खरीदकर अपने एसेट्स का बैक करते हैं। तपन पटेल ने कहा, ‘Gold ETFs गोल्ड के बुलियन में इन्वेस्ट करते हैं और गोल्ड के डोमेस्टिक प्राइस पर नजर रखते हैं। यूनिट बनाने के लिए जब भी जरूरत होती है, फंड अथोराइज्ड पार्टिसिपेंट्स या सराफा डीलरों से कीमती धातु खरीदते और बेचते हैं।’ पटेल बताते हैं कि गोल्ड AMC के नाम पर सूचीबद्ध बुलियन वॉल्ट में जमा किया जाता है। उन्होंने आगे कहा, ‘SEBI रेगुलेशन के मुताबिक, यूनिट के अगेंस्ट फिजिकल रूप में रखे गए गोल्ड LBMA (लंदन बुलियन मार्केट एसोसिएशन) द्वारा अप्रूल्ड ब्रांड्स की हाइ प्योरिटी 995 और उससे अधिक होनी चाहिए। और सोने की डोमेस्टिक प्राइस निकालने के लिए रिफरेंस रेट LBMA प्राइस का बेंचमार्क निर्धारण होना चाहिए।’
गोल्ड को इन्फ्लेशन और आर्थिक अनिश्चितताओं से बचाव का सटीक साधन माना गया है। गोल्ड को केवल रिटर्न के नजरिए से देखने के बजाय एक एसेट एलोकेशन प्रोडक्ट के रूप में देखा जाना चाहिए। किसी भी समय सोने का एलोकेशन आपके पोर्टफोलियो का 5-10 फीसदी हो सकता है। छोटे इन्वेस्टर्स के लिए, गोल्ड फंड में SIP खराब समय का रिस्क उठाए बिना गोल्ड की कीमतों में उतार-चढ़ाव से निपटने में मदद कर सकता है। गोल्ड फंड और कुछ नहीं बल्कि Gold ETFs में इन्वेस्ट करने वाली म्यूचुअल फंड स्कीम्स हैं।
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