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3 min read | अपडेटेड January 10, 2025, 14:31 IST
सारांश
Global Economic Growth: UN रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर बने तनावपूर्ण हालात आर्थिक वृद्धि की दर के लिए चुनौती बने रहेंगे। हालांकि, भारत में बढ़ती मांग और रोजगार के चलते तेजी कायम रहेगी।
रिपोर्ट में जापान के मंदी से बाहर आने की उम्मीद लेकिन चीन पर चिंता
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तमाम हलचल के साथ शुरू हो रहे साल 2025 को लेकर संयुक्त राष्ट्र ने उम्मीदजनक आंकड़े सामने रखे हैं। UN के मुताबिक इस साल वैश्विक आर्थिक वृद्धि 2.8% पर स्थिर रहेगी और अगले साल 2026 में यह 2.9% पर होगी।
यह 2010-2019 के 3.2% के औसतन स्तर से कम जरूर है लेकिन अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद संभालने से लेकर रूस-यूक्रेन और मध्य-पूर्व में जारी तनावपूर्ण स्थिति से पैदा हुए हालात के बीच इसके स्थिर रहने का अनुमान भी एक अहम हो जाता है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट- विश्व आर्थिक स्थिति और संभावनाएं 2025- में कहा गया है कि लेबर मार्केट की कमजोर होती स्थिति, देशों की प्रोटेक्शनिस्ट नीतियां और जलवायु से जुड़े खतरे इस वृद्धि के लिए बड़ी चुनौतियां हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग-अलग देशों के महंगाई दर कम करने और मॉनिटरी पॉलिसी में ढील देने से डिमांड तो बढ़ेगी लेकिन मौजूदा विवादों और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बढ़ते तनाव के कारण इसे नुकसान भी होगा।
रिपोर्ट में दक्षिण एशिया को लेकर सकारात्मक पूर्वानुमान लगाया गया है। इसके मुताबिक यहां 2025 में 5.7% और 2026 में 6% की रफ्तार से वृद्धि देखने को मिलेगी। इसमें भी भारत का एक बड़ा और मजबूत योगदान बताया गया है। भारत के लिए आर्थिक वृद्धि वैश्विक स्तर से कहीं ज्यादा 6.6% बताई गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक निजी उपभोग और निवेश में बढ़ोतरी के चलते देश में ग्रोथ की रफ्तार तेज रहेगी। इसमें कहा गया है कि जहां एक ओर विकासशील देश बढ़ी हुई युवा बेरोजगारी दर से परेशान हैं, वहीं भरत में रोजगार से जुड़े इंडिकेटर अच्छे संकेत दे रहे हैं।
वहीं, चीन को लेकर इससे उलट चिंताजनक आंकड़े पेश किए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक चीन में आर्थिक वृद्धि की दर धीमे-धीमे कम होगी। साल 2025 में इसके 4.9% और 2026 में 4.8% होने का अनुमान लगाया गया है। इसके मुताबिक पब्लिक निवेश और निर्यात के चलते अर्थव्यवस्था को मजबूती तो मिलेगी लेकिन डिमांड में कमी के चलते सुस्त पड़े उपभोग और प्रॉपर्टी सेक्टर की चुनौतियों के चलते ये तेज गति नहीं पकड़ सकेगी।
इसके अलावा यूरोप में 2024 में कमजोर आर्थिक वृद्धि के बाद आगे रफ्तार पकड़ने की उम्मीद जताई गई है जबकि जापान में भी मंदी के बाद अब तेजी आने का अनुमान है। हालांकि, कम आय वाले देशों में ढांचागत चुनौतियों के कायम रहने के चलते इनकी अर्थव्यवस्था को लेकर चिंताए बनी हुई हैं।
यहां कर्ज भी ज्यादा है, निवेश भी कमजोर है और प्रोडक्टिविटी की रफ्तार भी धीमी है। रिपोर्ट का कहना है कि अभी भी ऐसे कई विकासशील देश हैं जो कोविड-19 की महामारी और उसके बाद लगे आर्थिक झटकों के असर से उबर नहीं सके हैं।
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