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3 min read | अपडेटेड February 07, 2025, 11:55 IST
सारांश
RBI Monetary Policy Meeting Key Takeaways: भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी की रिपोर्ट सामने रखते हुए रेपो रेट कट का ऐलान किया। साथ ही चालू और आगामी वित्त वर्ष की महंगाई दर, जीडीपी जैसे आंकड़ों का अनुमान भी बताया।
5 साल बाद पहली बार रेपो रेट कट का ऐलान
यहां देखते हैं 10 अहम बातें जिनका ऐलान गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बैठक के बाद रिपोर्ट जारी करते हुए किया-
मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी ने आमराय से रेपो रेट को 25 bps कम करने का फैसला किया है। इसके साथ ही यह 6.5% से घटकर 6.2% पर आ जाएगी। ऐसा करने से अब आम लोगों के लिए बैंकों से कर्ज लेना सस्ता हो सकता है। खासकर घर बनाने के लिए कर्ज लेने वालों को राहत मिलेगी।
कमिटी ने फैसला किया है कि मॉनिटरी पॉलिसी फ्रेमवर्क के तहत अपना स्टांस न्यूट्रल ही रखा जाएगा। रिजर्व बैंक का ध्यान मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने के साथ-साथ आर्थिक वृद्धि को बल देने पर भी है।
रिजर्व बैंक का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product, GDP) का ग्रोथ रेट 6.7% रह सकता है।
केंद्रीय बैंक के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति के 4.8% और अगले वित्त वर्ष में 4.2% रहने की संभावना है।
RBI की विदेशी मुद्रा नीति (Foreign Exchange Policy) लगातार व्यवस्थित और स्थिर मार्केट ऑपरेशन के पक्ष में बनी हुई है, यह किसी एक्सचेंज रेट को टारगेट नहीं करती है। 31 जनवरी तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 630.6 अरब अमेरिकी डॉलर था।
रिजर्व बैंक गवर्नर ने बढ़ते हुए डिजिटल फ्रॉड पर चिंता जाहिर करते हुए बताया है कि साइबर धोखाधड़ी रोकने के लिए बैंकों का स्पेशल प्लेटफॉर्म ‘fin.in’ लाया जाएगा और अप्रैल में इसके लिए रजिस्ट्रेशन शुरू होगा।
गवर्नर ने ऐलान किया है कि RBI विनियमित बाजारों में कारोबार और निपटान समय के रिव्यू के लिए वर्किंग ग्रुप का गठन करेगा।
मॉनिटरी पॉलिसी स्टेटट में घरेलू उपभोग के बढ़ा हुए रहने का अनुमान लगाया गया है। इसमें कहा गया है कि केंद्रीय बजट 2025-26 में दी गई टैक्स में राहत से इसे बल मिलेगा। फिक्स्ड निवेश भी रफ्तार पकड़ेगा।
RBI गवर्नर ने बैंकों से आग्रह किया कि वे केंद्रीय बैंक के पास बिना जरूरत का धन न रखें, बल्कि इसकी आवश्यकता के अनुसार आपस में उपयोग करें।
रिपोर्ट में माना गया है कि अर्थव्यवस्था के सामने जियोपॉलिटिकल तनाव, संरक्षणवादी व्यापार नीतियों, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठते-गिरते कमॉडिटी प्राइस और वित्तीय बाजारों की अनिश्चतताओं जैसी कई चुनौतियां खड़ी हैं।
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