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2 min read | अपडेटेड February 14, 2025, 10:48 IST
सारांश
UPI Transaction: UPI से ट्रांजैक्शन के दौरान अगर कभी किसी तकनीकी परेशानी, फ्रॉड या विवाद जैसी स्थिति बनती है, तो पेमेंट रिवर्स हो जाता है। इसे चार्जबैक कहते हैं।
तकनीकी समस्या, फ्रॉड जैसी वजहों से फंस जाता है अमाउंट।
किसी तकनीकी गलती या फ्रॉड जैसी घटना पर पेमेंट की वापसी से जुड़े नियम शनिवार, 15 फरवरी से बदल जाएंगे। नेशनल पेमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (National Payments Corporation of India, NPCI) ने UPI (Unified Payments Interface) ट्रांजैक्शन को लेकर नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसके तहत चार्जबैक (chargeback) की प्राप्ति या खारिज के लिए ट्रांजैक्शन क्रेडिट कन्फर्मेशन और रिटर्न रिक्वेस्ट को आधार बनाया गया है।
UPI से ट्रांजैक्शन के दौरान अगर कभी किसी तकनीकी परेशानी, फ्रॉड या विवाद जैसी स्थिति बनती है, तो पेमेंट रिवर्स हो जाता है। इसे चार्जबैक कहते हैं। चार्जबैक होने से भुगतान करने वाली बैंक को बेनिफिशरी बैंक से अमाउंट वापस मिल जाता है।
हालांकि, अगर यह वापसी बेनिफिशरी बैंक की ओर से ट्रांजैक्शन या रिटर्न का प्रोसेस पूरा करने के पहले हो जाती है, तो इसके कारण परेशानी हो सकती है। अभी तक लागू प्रक्रिया में कई बार चार्जबैक का प्रोसेस ऑटोमैटिकली पूरा मान लिया जाता है यानी रिटर्न कंप्लीट हुआ। इसके चलते रिजर्व बैंक पेनाल्टी भी लगा देता है।
NPCI की नई गाइडलाइंस इसे सुलझाने के लिए लाई गई हैं। अब ट्रांजैक्शन क्रेडिट कन्फर्मेशन (TCC) और रिटर्न रिक्वेस्ट (RET) के आधार पर चार्जबैक को मंजूरी मिलेगा या खारिज किया जाएगा। TCC/RET बेनिफिशरी बैंक को दाखिल करने होंगे।
नए नियम ग्राहकों के इस्तेमाल के लिए नहीं हैं, सिर्फ बड़ी संख्या में अपलोड के विकल्पों और Unified Dispute Resolution Interface (UDIR) पर लागू होंगे। इससे ट्रांजैक्शन से जुड़े प्रोसेस को ज्यादा असरदार बनाया जा सकेगा और गैर-जरूरी पेनाल्टी के बोझ को कम किया जा सकेगा।
ऑनलाइन सेवाओं के विकल्प बढ़ने के साथ-साथ UPI ट्रांजैक्शन की संख्या में भी इजाफा हुआ है। ऐसे में कई बार किसी चीज के डिलीवर ना होने पर, इंटरनेट डाउन जैसी तकनीकी रुकावट से लेकर फ्रॉड या एक ही ट्रांजैक्शन कई बार होने पर अमाउंट डिडक्ट हो जाने जैसी समस्याएं हो जाती हैं।
चार्जबैक और रीफंड दोनों में ही भुगतान किए गए अमाउंट की वापसी होती है लेकिन दोनों में एक बड़ा अंतर है। रीफंड में जहां एक ग्राहक को सर्विस प्रोवाइडर या बिजनेस से वापसी का आवेदन करना होता है, वहीं चार्जबैक में ग्राहक बैंक से आवेदन करता है कि ट्रांजैक्शन की जांच हो और रिटर्न किया जाए।
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