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3 min read | अपडेटेड October 26, 2024, 12:56 IST
सारांश
NABARD के एक सर्वे में पाया गया है कि ग्रामीण इलाकों में कृषि से जुड़े परिवारों के लिए किसानी ही आमदनी का सबसे बड़ा जरिया है। पिछले कई साल में ऐसा देखा जा रहा था कि किसान खेती में होने वाले नुकसान के चलते शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं और दिहाड़ी मजदूरी करने को मजबूर हैं। हालांकि, हालिया डेटा इस ओर इशारा करता है कि आने वाले समय में खेती ठोस आमदनी का जरिया बनी रहेगी जिससे किसानों की स्थिति को बेहतर किया जा सकेगा।
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यूं तो भारत एक कृषि प्रधान देश है- करीब आधी आबादी खेती से जुड़ी हुई है- लेकिन पिछल कुछ दशकों में यह तस्वीर बदलती हुई दिख रही थी। गांवों से लोग रोजगार की तलाश में निकल रहे थे और किसानी से दूर जा रहे थे। हालांकि, NABARD के एक सर्वे में पाया गया है कि एक बार फिर ग्रामीण इलाकों में लोग आमदनी के प्रमुख स्रोत के तौर पर खेती पर निर्भर हो रहे हैं। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि आर्थिक दबाव में शहरों की ओर होने वाले पलायन को धीमा किया जा सकता है।
NABARD ने अपने दूसरे अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण (All India Rural Financial Inclusion Survey, NAFIS) में इससे जुड़ा डेटा पब्लिश किया है। साल 2021-22 के दौरान किए गए सर्वे में, 1 लाख ग्रामीण परिवारों को देखा गया था। इसके पहले यह सर्वे 2016-17 में हुआ था। ऐसे में दूसरा सर्वे खास अहमियत रखता है क्योंकि यह कोविड-19 की महामारी के बाद के असर को भी दर्शाता है। सर्वे में देश के 28 राज्यों और जम्मू-कश्मीर को शामिल किया गया है।
सर्वे में पाया गया कि परिवारों में महीने की औसतन आमदनी 2021-22 में 57% से ज्यादा बढ़ गई है। इस दौरान जहां सालाना औसतन नॉमिनल जीडीपी 9% रहा वहीं आय में सालाना नॉमिनल कंपाउंड ग्रोथ रेट 9.5% दर्ज किया गया। दिलचस्प बात यह देखी गई कि खेती से जुड़े परिवारों की महीने की आमदनी (₹13,661) गैर-कृषि परिवारों (₹11,438) से ज्यादा रही।
खेती से जुड़े परिवारों में खेती ही आय का प्रमुख जरिया रही जहां एक- तिहाई आमदनी इससे आ रही है जबकि सरकारी या प्राइवेट नौकरी से एक- चौथाई, मजदूरी से 16% आमदनी होती है। गैर- कृषि परिवारों में सरकारी या प्राइवेट नौकरी से 57% आमदनी होती है जबकि मजदूरी से 26%।
ग्रामीण परिवारों में औसतन मासिक खर्च करीब दोगुना बढ़ गया है। यह 2016-17 में जहां ₹6,646 था, वहीं 2021-22 में यह ₹11,262 पर पहुंच गया था। दिलचस्प बात यह है कि कृषक परिवारों में यह खर्च (₹11,710) गैर कृषक- परिवारों से (₹10,675) ज्यादा देखा गया। गोवा और जम्मू- कश्मीर जैसे राज्यों में यह ₹17,000 के पार था। जाहिर है कृषक परिवारों की आय और खर्च दोनों गैर- कृषक परिवारों से ज्यादा देखे गए।
सर्वे में पाया गया है कि औसतन सालाना बचत में भी इजाफा हुआ है। यह 2016-17 में जहां ₹9,104 थी, वहीं 2021-22 में यह ₹13,209 पर पहुंच गई थी। इसके साथ ही जहां 2016-17 में 50% परिवार पैसे बचाते पाए गए थे, 2021-22 में यह संख्या 66% पर पहुंच गई जो वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) की कोशिशों की सफलता की ओर इशारा करता है। यहां भी कृषक परिवार आगे निकले रहे। 71% कृषक परिवारों ने बचत की जबकि गैरृ कृषक परिवारों में यह संख्या 58% ही रही।
सर्वे के मुताबिक प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, पीएम किसान मनधन योजना, MGNREGS, पीएम आवास योजना जैसी योजनाओं का फायदा ग्रामीण परिवारों को हो रहा है। वित्तीय सेवाओं से होने वाली बेहतरी उन्हें खेती की ओर बांधे हुए है और आगे लेकर जा रही है।
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