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3 min read | अपडेटेड December 04, 2024, 08:57 IST
सारांश
लोक सभा में Banking Laws (Amendment) Bill, 2024 पास हो गया है। इसके तहत बैंक अकाउंट्स में पर 4 नॉमिनी की इजाजत, कोऑपरेटिव बैंक डायरेक्टर के कार्यकाल को 10 साल करना जैसे बदलाव किए गए हैं।
भारतीय बैंकों को ग्लोबल स्टैंडर्ड पर लाया जाएगा।
लोक सभा ने मंगलवार को Banking Laws (Amendment) Bill, 2024 पास कर दिया है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बिल को सदन में प्रस्तुत किया था। इसे थोड़ी सी बहस के बाद ध्वनिमत से पारित किया गया। यहां देखते हैं कि इसके तहत क्या अहम बदलाव किए गए हैं और उनका क्या असर होगा।
बिल पर चर्चा के दौरान सीतारमण ने कहा कि डिपॉजिटर्स के पास एक साथ या लगातार नॉमिनेशन फसिलटी दी जाएगी जबकि लॉकर धारकों के पास सिर्फ एक के बाद एक नॉमिनेशन की सुविधा होगी। उन्होंने बताया कि बिल का मुद्दा बैंकों को सुरक्षित, स्थिर और स्वस्थ्य रखना है और 10 साल बाद नतीजे देखे जा रहे हैं।
कानून के तहत रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ऐक्ट 1934 और बैंकिंग रेग्युलेशन ऐक्ट 1949 के साथ- साथ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ऐक्ट, 1955, बैंकिंग कंपनीज ऐक्ट 1970 और 1980 में बदलाव किया गया है।
अगर आपके पास बैंक अकाउंट या लॉकर है तो इससे अप्रिय घटना होने पर अकाउंट का मालिकाना हक को लेकर स्थिति साफ हो गई है।
डायरेक्टर्स (चेयरपर्सन जैसे पदों को छोड़कर) 10 साल तक पद पर रह सकते हैं। पहले ये कार्यकाल 8 साल का था। सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक के डायरेक्टर स्टेट कोऑपरेटिव बैंक के बोर्ड में भी रह सकते हैं।
पर्याप्त ब्याज की परिभाषा बदल दिया गया है। पहले यह थी- ₹5 लाख से ज्यादा के शेयर्स या कंपनी की पेड- अप कैपिटल का 10%, या जो भी कम हो। इसकी लिमिट को अब बदलकर ₹2 करोड़ कर दिया गया है। इसके जरिए महंगाई दर के अनुपात में बदलाव किया गया है।
अभी महीने के दूसरे और चौथे शुक्रवार को हर महीने रिपोर्टिंग की जाती है। अब महीने की पहली और 15 तारीख को रिपोर्ट सबमिट किया जाएगा। इससे रिपोर्टिंग कैलंडर के आधार पर साइकल बनाई जाएगी।
ऐसे डिविडेंड या बॉन्ड का ब्याज जो 7 साल से खाली पड़ा है, उसे इन्वेस्टर एजुकेशन और प्रोटेक्शन फंड (IEPF) में ट्रांसफर कर दिया जाएगा। इससे जुड़े शेयर्स भी शामिल हैं। इन फंड को IEPF से फंड्स या शेयर्स के तौर पर क्लेम किया जा सकता है। इससे ऐसे फंड्स का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकेगा जिनका इस्तेमाल नहीं किया गया है।
अब बैंक तय करेंगे कि उनके ऑडिटर्स को कितना पेमेंट मिलेगा। पहले रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया केंद्र सरकार के साथ मिलकर तय करती थी। इससे बैंकों को उनकी आंतरिक प्रक्रियाओं को कंट्रोल करने की आजादी मिलेगी।
इसके अलावा कैश रिजर्व कैसे कैलकुलेट होता है, इसमें भी बदलाव किया गया है। 'पखवाड़े' की परिभाषा को बदल दिया गया है। इससे रिजर्व बैंक में रोज का औसतन बैंक बैलेंक कैलकुलेट किया जाता है। सरकार का मानना है कि इन बदलावों से भारत का बैकिंग सिस्टम ग्लोबल स्टैंडर्ड के बराबर किया जा सकेगा।
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