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4 min read | अपडेटेड December 27, 2024, 13:41 IST
सारांश
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपनी किताब ‘टू द ब्रिंक एंड बैक: इंडियाज 1991 स्टोरी’ में पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री बनने के बाद तेजी से आए बदलावों का जिक्र किया है। इसमें उन्होंने डॉ. मनमोहन सिंह की भूमिका के बारे में भी लिखा है।
पार्टी के सामने अपने फैसले का किया बचाव
भारत के आर्थिक सुधारों के आर्किटेक्ट कहे जाने वाले डॉ. मनमोहन सिंह को 1991 के अपने उस ऐतिहासिक केंद्रीय बजट की परजोर पैरवी करनी पड़ी थी। उसे सबके सामने सही साबित करना और पारित कराना किसी अग्निपरीक्षा जैसा था। यही वह बजट था जिसने देश को अपने सबसे खराब वित्तीय संकट से उबारा था।
उस वक्त पी.वी. नरसिंह राव की सरकार थी और वित्त मंत्री थे सिंह। उन्होंने इस काम को बेहद बेबाकी से पूरा किया। चाहे बजट के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकार हों या संसदीय दल की बैठक में व्यापक सुधारों को पचा ना पाने वाले नाराज कांग्रेसी नेता, सिंह सबका सामना करते हुए अपने फैसलों पर अडिग रहे।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपनी किताब ‘टू द ब्रिंक एंड बैक: इंडियाज 1991 स्टोरी’ में लिखा, ‘ केन्द्रीय बजट प्रस्तुत होने के एक दिन बाद 25 जुलाई 1991 को सिंह बिना किसी पूर्व योजना के एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहुंचे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके बजट का संदेश अधिकारियों की उदासीनता के कारण गलत तरीके से न पेश हो जाए।’
इस किताब में जून 1991 में राव के प्रधानमंत्री बनने के बाद तेजी से आए बदलावों का जिक्र है। राव के कार्यकाल के शुरुआती महीनों में रमेश उनके सहयोगी थे। रमेश ने 2015 में प्रकाशित इस किताब में लिखा, ‘वित्त मंत्री ने अपने बजट की व्याख्या की और इसे ‘मानवीय बजट’ करार दिया। उन्होंने उर्वरक, पेट्रोल और LPG की कीमतों में वृद्धि के प्रस्तावों का बड़ी दृढ़ता से बचाव किया।’
कांग्रेस में असंतोष को देखते हुए राव ने एक अगस्त 1991 को कांग्रेस संसदीय दल (CPP) की बैठक बुलाई और पार्टी सांसदों को ‘खुलकर अपनी बात रखने’ का मौका देने का फैसला किया। रमेश ने लिखा, ‘प्रधानमंत्री ने बैठक से दूरी बनाए रखी और डॉ. मनमोहन सिंह को उनकी आलोचना का खुद ही सामना करने दिया।’
रमेश ने लिखा है कि 2-3 अगस्त को दो और बैठकें हुईं, जिनमें राव पूरे समय मौजूद रहे लेकिन प्रधानमंत्री ने उनका बचाव करने या उनकी परेशानी दूर करने के लिए कुछ नहीं किया और वित्त मंत्री अकेले नजर आए। सिर्फ दो सांसदों मणिशंकर अय्यर और नाथूराम मिर्धा ने सिंह के बजट का पूरी तरह समर्थन किया।
अय्यर ने बजट का समर्थन करते हुए तर्क दिया था कि यह बजट राजीव गांधी की इस धारणा के अनुरूप है कि वित्तीय संकट को टालने के लिए क्या किया जाना चाहिए।
बाद में पार्टी के दबाव के आगे झुकते हुए सिंह उर्वरक की कीमतों 40% की बढ़त को घटाकर 30% करने के लिए राजी हो गए थे लेकिन LPG और तपेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी को कायम रखा। राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की 4-5 अगस्त 1991 को दो बार बैठक हुई, जिसमें यह फैसला किया गया कि 6 अगस्त को सिंह लोकसभा में क्या बयान देंगे।
किताब के मुताबिक, ‘इस बयान में इस वृद्धि को वापस लेने की बात नहीं मानी गई जिसकी मांग पिछले कुछ दिनों से की जा रही थी बल्कि इसमें छोटे और सीमांत किसानों के हितों की रक्षा की बात की गई।’
रमेश ने लिखा, ‘दोनों पक्षों की जीत हुई। पार्टी ने पुनर्विचार के लिए मजबूर किया, लेकिन सरकार जो चाहती थी उसके मूल सिद्धांतों... यूरिया के अलावा दूसरे उर्वरकों की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करना और यूरिया की कीमतों में वृद्धि को बरकरार रखा गया।’
उन्होंने किताब में लिखा, ‘यह राजनीतिक अर्थव्यवस्था का सर्वोत्तम रचनात्मक उदाहरण है। यह इस बात की मिसाल है कि किस प्रकार सरकार और पार्टी मिलकर दोनों के लिए बेहतर स्थिति बना सकते हैं।’
पूर्व पीएम का 26 दिसंबर की रात दिल्ली के AIIMS में निधन हो गया था। वह 92 वर्ष के थे। 2004-2014 तक का उनका कार्यकाल MGNREGA सूचना का अधिकार कानून और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसे फैसलों के लिए याद किया जाता है। उनके निधन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई हस्तियों ने शोक जताया है।
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