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2 min read | अपडेटेड March 03, 2025, 14:10 IST
सारांश
रिलायंस इंडस्ट्रीज की सहायक कंपनी रिलायंस न्यू एनर्जी लिमिटेड कंपनी पर 125 करोड़ रुपये का जुर्माना लग सकता है। ब्लूमबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में यह दावा किया है। रिलायंस न्यू एनर्जी लिमिटेड को बैटरी सेल प्लांट नहीं बना पाने के चलते 125 करोड़ रुपये तक जुर्माना भरना पड़ सकता है।
रिलायंस न्यू एनर्जी लिमिटेड पर लग सकता है जुर्माना
देश के सबसे अमीर बिजनेसमैन मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड की एक सहायक कंपनी को भारी-भरकम जुर्माना भरना पड़ सकता है। रिलायंस न्यू एनर्जी लिमिटेड को बैटरी सेल प्लांट नहीं बना पाने के चलते 125 करोड़ रुपये तक जुर्माना भरना पड़ सकता है। Bloomberg की रिपोर्ट में यह बात कही गई है। लोकल प्रोडक्शन के प्रोत्साहन के लिए भारत सरकान की योजना के तरह 2022 में बैटरी सेल प्रोडक्शन के लिए बोली जीतने वाली कंपनियों में से एक रिलायंस न्यू एनर्जी लिमिटेड, डेडलाइन पर अपना काम नहीं पूरा करने के चलते 14.3 मिलियम डॉलर यानी कि करीब 125 करोड़ रुपये का जुर्माना झेल सकती है।
इस मामले से जुड़े लोगों ने नाम बताने की शर्त पर कहा, ‘राजेश एक्सपोर्ट्स लिमिटेड जिसने बैटरी सेल बनाने के लिए सरकारी पहल के तहत अप्लाई किया था, एडवांस केमेस्ट्री सेल प्रोग्राम को रोकने के लिए भी निशाने पर है और उस पर भी इतना ही जुर्माना लगाया जा सकता है।’ एशिया के सबसे अमीर शख्स और उसकी रिलायंस ग्रुप के लिए यह जुर्माना कोई बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन स्टेट डायरेक्टेड मैनुफैक्चरिंग गोल्स तक पहुंचने में विफलता तकनीकी चुनौतियों और बदलते मार्केट की तेजी को दर्शाती है, जो दुनिया की फैक्ट्री के रूप में चीन को टक्कर देने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मेक इन इंडिया' दृष्टिकोण को बाधित कर सकती है।
मोदी ने मैनुफैक्चरिंग को सकल घरेलू उत्पाद (GDP ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) के 25% तक बढ़ाने की मांग की है, लेकिन यह हिस्सेदारी 2014 में 15% से घटकर 2023 में 13% हो गई है। विदेशों में यह पहल करने वाले रिलायंस इंडस्ट्रीज, राजेश एक्सपोर्ट्स और भारत के भारी उद्योग मंत्रालय के प्रतिनिधियों ने इस पर ई-मेल द्वारा पूछे गए सवालों के अभी जवाब नहीं दिए हैं। रिलायंस न्यू एनर्जी, राजेश एक्सपोर्ट्स और ओला इलेक्ट्रिक मोबिलिटी लिमिटेड की यूनिट ने पीएलआई प्रोग्राम के तहत बैटरी सेल प्लांट बनाने के लिए 2022 में बोलियां जीती थीं - जो इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए आयात पर निर्भरता को कम करने के देश के प्रयास का हिस्सा था।
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