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  1. अप्रैल से सितंबर के बीच 55 कंपनियां लेकर आईं IPO, क्यों यह चिंता की बात? CEA ने किया एक्सप्लेन

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अप्रैल से सितंबर के बीच 55 कंपनियां लेकर आईं IPO, क्यों यह चिंता की बात? CEA ने किया एक्सप्लेन

Upstox

3 min read | अपडेटेड November 17, 2025, 14:35 IST

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सारांश

सीईए ने मार्केट कैपेटलाइजेशन या वायदा-विकल्प ट्रेडिंग की मात्रा जैसे ‘गलत मानक’ का जश्न मनाने से बचने का भी आग्रह किया। साथ ही यह साफ किया ये ‘वित्तीय परिष्कार (financial sophistication)’ के उपाय नहीं हैं बल्कि ऐसी कोशिशों से ‘केवल घरेलू बचत को उत्पादक निवेश से दूर करने का जोखिम पैदा होता है।’ उन्होंने कहा कि हालांकि भारत ने एक मजबूत और सोफिस्टिकेटेड कैपिटल मार्केट विकसित करने में सफलता हासिल की है।

आईपीओ

आईपीओ को लेकर क्यों चिंता में हैं CEA?

भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार (Chief Economic Advisor, CEA) वी. अनंत नागेश्वरन ने सोमवार को कहा कि इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) किसी उद्यम में शुरुआती निवेशकों के लिए एक्जिट मारने का जरिया बन रहा है और इससे पब्लिक मार्केट की भावना कमजोर हो रही है। नागेश्वरन ने इस बात को लेकर चिंता जाहिर की है। CII द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में नागेश्वरन ने कहा कि देश के कैपिटल मार्केटों को ‘न केवल पैमाने में, बल्कि उद्देश्य के लिहाज से भी’ विकसित होना चाहिए।

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सीईए ने मार्केट कैपेटलाइजेशन या वायदा-विकल्प ट्रेडिंग की मात्रा जैसे ‘गलत मानक’ का जश्न मनाने से बचने का भी आग्रह किया। साथ ही यह साफ किया ये ‘वित्तीय परिष्कार (financial sophistication)’ के उपाय नहीं हैं बल्कि ऐसी कोशिशों से ‘केवल घरेलू बचत को उत्पादक निवेश से दूर करने का जोखिम पैदा होता है।’ उन्होंने कहा कि हालांकि भारत ने एक मजबूत और सोफिस्टिकेटेड कैपिटल मार्केट विकसित करने में सफलता हासिल की है। हालांकि इसने साथ ही ‘शॉर्ट रन अर्निंग्स मैनेजमेंट दृष्टिकोण’ में भी योगदान दिया है क्योंकि वे प्रबंधन पारिश्रमिक और मार्केट कैपेटलाइजेशन में वृद्धि से जुड़े हैं।

अप्रैल से सितंबर के बीच 55 भारतीय कंपनियों ने जारी किए IPO

अप्रैल-सितंबर के पीरियड में 55 भारतीय कंपनियों ने आईपीओ जारी करके लगभग 65,000 करोड़ रुपये जुटाए हैं। अधिकतर शेयर मौजूदा निवेशकों द्वारा बिक्री के लिए जारी किए गए थे और नए शेयर जारी करने की मात्रा बहुत कम थी जिससे किसी कंपनी को फायदा होता है। उन्होंने कहा कि देश दीर्घकालिक फाइनेंसिंग के लिए मुख्य रूप से बैंक ऋण पर निर्भर नहीं रह सकता है। सीईए ने दीर्घकालिक उद्देश्यों की फाइनेंसिंग के लिए गहन बॉन्ड बाजार को ‘रणनीतिक आवश्यकता’ करार दिया। शिक्षाविद से नीति निर्माता बने सिंह ने कहा कि भारतीय प्राइवेट सेक्टर को सतर्क रहने और जोखिम से बचने के लिए पर्याप्त कारण मिल गए हैं। निवेश संबंधी फैसले नहीं लिए जाने चाहिए क्योंकि इससे देश के समक्ष मौजूद रणनीतिक बाधाएं अवसरों में बदल सकती हैं।

लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट क्यों जरूरी?

उन्होंने स्पष्ट किया, ‘महत्वाकांक्षा की आवश्यकता है, जोखिम उठाने और दीर्घकालिक निवेश की आवश्यकता है। नहीं तो भारत, जैसा कि उसने इस साल के दौरान पाया है, रणनीतिक मजबूती के संबंध में खुद को पीछे पाता रहेगा, एक ऐसे दुनिया में रणनीतिक अपरिहार्यता का निर्माण करना तो दूर की बात है, जहां हम आने वाले सालों में सबसे बड़े खिलाड़ियों में से एक बनना चाहते हैं।’ सिंह ने अगले दशक में अर्थव्यवस्था के आकार के अनुरूप रणनीतिक लाभ उठाने की आवश्यकता पर भी बल दिया।

भाषा इनपुट के साथ
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Upstox Hindi News Desk पत्रकारों की एक टीम है जो शेयर बाजारों, अर्थव्यवस्था, वस्तुओं, नवीनतम व्यावसायिक रुझानों और व्यक्तिगत वित्त को उत्साहपूर्वक कवर करती है।

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