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3 min read | अपडेटेड April 02, 2025, 13:39 IST
सारांश
डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ ऐलान पर सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया के तमाम देशों की निगाहें टिकी हैं। ट्रंप के टैरिफ के ऐलान का भारत में किस सेक्टर पर कितना असर पड़ सकता है, चलिए समझते हैं।

डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ ऐलान से भारत के किन सेक्टर्स पर पड़ेगा कितना असर?
अमेरिका के इंडियन प्रोडक्ट्स पर जवाबी टैरिफ लगाने से कृषि, जेमस्टोन (कीमती पत्थर), रसायन, दवाई, मेडिकल इक्विपमेंट्स, इलेक्ट्रिकल और मशीनरी समेत तमाम सेक्टर्स प्रभावित हो सकते हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इन सेक्टर्स में हाई टैरिफ अंतर के कारण अमेरिकी प्रशासन से एक्स्ट्रा कस्टम ड्यूटी का सामना करना पड़ सकता है। ‘हाई कस्टम ड्यूटी अंतर’ किसी प्रोडक्ट पर अमेरिका और भारत द्वारा लगाए गए इंपोर्ट ड्यूटीज के बीच का अंतर है। रसायनों और दवाइयों पर यह अंतर 8.6%, प्लास्टिक पर 5.6%, टेक्सटाइल पर 1.4%, हीरे, सोने और आभूषणों पर 13.3%, लोहा, इस्पात और आधार धातुओं पर 2.5%, मशीनरी व कंप्यूटर पर 5.3%, इलेक्ट्रॉनिक पर 7.2% और गाड़ियों और उसके पार्ट्स पर 23.1% है।
एक एक्सपोर्टर ने कहा, ‘ड्यूटी अंतर जितना अधिक होगा, सेक्टर उतना ही अधिक प्रभावित होगा।’ आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के विश्लेषण के अनुसार, कृषि में सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र मछली, मांस और प्रोसेस्ड समुद्री भोजन होगा। इसका 2024 में निर्यात 2.58 अरब अमेरिकी डॉलर था और इसे 27.83% ड्यूटी अंतर का सामना करना पड़ेगा। झींगा जो अमेरिका का एक प्रमुख निर्यात है, अमेरिकी टैरिफ लागू होने के कारण काफी कम प्रतिस्पर्धी हो जाएगा।
कोलकाता स्थित समुद्री खाद्य निर्यातक और मेगा मोडा के प्रबंध निदेशक योगेश गुप्ता ने कहा, ‘अमेरिका में हमारे निर्यात पर पहले से ही डंपिंग रोधी और कंपंन्सेटरी ड्यूटी लागू हैं। टैरिफ में अतिरिक्त वृद्धि से हम अप्रतिस्पर्धी हो जाएंगे। भारत के कुल झींगा निर्यात में से हम 40% अमेरिका को निर्यात करते हैं।’ उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका प्रतिस्पर्धी देशों इक्वाडोर और इंडोनेशिया पर भी इसी तरह का टैरिफ लगाए तो भारतीय निर्यातकों को कुछ राहत मिल सकती है।
भारत के प्रोसेस्ड खाद्य, चीनी और कोको निर्यात पर भी असर पड़ सकता है क्योंकि शुल्क अंतर 24.99% है। पिछले साल इसका निर्यात 1.03 अरब अमेरिकी डॉलर था। इसी तरह से अनाज, सब्जियां, फल और मसालों (1.91 अरब अमेरिकी डॉलर निर्यात) के बीच शुल्क अंतर 5.72% है। जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि 18.149 करोड़ अमेरिकी डॉलर मूल्य के मिल्क प्रोडक्ट्स के निर्यात पर 38.23% के अंतर का ‘गंभीर’ असर पड़ सकता है, जिससे घी, मक्खन और दूध पाउडर महंगे हो जाएंगे और अमेरिका में उनकी बाजार हिस्सेदारी कम हो जाएगी।
औद्योगिक वस्तुओं के क्षेत्र में अमेरिकी शुल्कों से दवाइयों, आभूषण और इलेक्ट्रॉनिक सहित कई सेक्टर्स प्रभावित हो सकते हैं। भारत का सबसे बड़ा औद्योगिक निर्यातक दवाई सेक्टर, जो 2024 में 12.72 अरब अमेरिकी डॉलर का था, उसे 10.90% टैरिफ डिफरेंस का सामना करना पड़ेगा। इससे जेनेरिक दवाओं और खास दवाओं की लागत बढ़ेगी। 11.88 अरब अमेरिकी डॉलर के निर्यात वाले हीरे, सोने और चांदी पर 13.32% टैरिफ वृद्धि हो सकती है, जिससे आभूषणों की कीमतें बढ़ेंगी और प्रतिस्पर्धा कम होगी।
इसी तरह, 14.39 अरब अमेरिकी डॉलर के इलेक्ट्रिकल, टेलिकॉम और इलेक्ट्रॉनिक निर्यात पर 7.24% टैरिफ है। जीटीआरआई के अनुसार, मशीनरी, बॉयलर, टर्बाइन व कंप्यूटर (जिनका निर्यात मूल्य 7.10 अरब अमेरिकी डॉलर है) पर 5.29% टैरिफ वृद्धि हो सकती है, जिससे भारत के इंजीनियरिंग निर्यात पर असर पड़ेगा। टायर और बेल्ट सहित रबर उत्पादों (जिनकी कीमत 1.06 अरब अमेरिकी डॉलर है) पर 7.76% टैरिफ लग सकता है, जबकि कागज व लकड़ी के सामान (96.965 करोड़ अमेरिकी डॉलर) पर 7.87% टैरिफ लग सकता है।
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