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4 min read | अपडेटेड November 21, 2025, 13:32 IST
सारांश
RBI MPC: अगर दिसंबर में रेट कट होता है, तो यह लगातार दो पॉलिसी में स्थिर रुख बनाए रखने के बाद पहली कटौती होगी। RBI इससे पहले फरवरी से जून के बीच रेपो रेट को 6.5% से 5.5% तक यानी 100 bps घटा चुका है। इसके बाद अगस्त और अक्टूबर में बैंक ने कोई बदलाव नहीं किया था।

RBI MPC: पिछले कई महीनों में CPI महंगाई लगातार उम्मीद से कम आई है, इसलिए दरों में कटौती की संभावना बढ़ गई है।
अगर दिसंबर में रेट कट होता है, तो यह लगातार दो पॉलिसी में स्थिर रुख बनाए रखने के बाद पहली कटौती होगी। आरबीआई इससे पहले फरवरी से जून के बीच रेपो रेट को 6.5% से 5.5% तक यानी 100 bps घटा चुका है। इसके बाद अगस्त और अक्टूबर में बैंक ने कोई बदलाव नहीं किया था।
Morgan Stanley की रिपोर्ट के अनुसार, RBI आगे भी अपनी नीतिगत स्थिति को सतर्क (Prudent) रखेगा और डेटा-डिपेंडेंट तरीके से आगे बढ़ेगा। यानी, ब्याज दर, लिक्विडिटी और रेगुलेटरी फैसलों में जो ढील दी जाएगी, उसके असर को देखकर आगे के निर्णय लिए जाएंगे। यह "वेट एंड वॉच" रणनीति RBI को समझने में मदद करेगी कि ये कदम ग्रोथ और महंगाई पर कैसे प्रभाव डाल रहे हैं।
फिस्कल पॉलिसी की बात करें तो मॉर्गन स्टैनली का कहना है कि सरकार राजकोषीय समझदारी (Fiscal Pragmatism) की राह पर चलती रहेगी, यानी धीरे-धीरे घाटा कम करने की कोशिश होगी लेकिन साथ में कैपिटल एक्सपेंडिचर पर भी जोर दिया जाएगा। उनके अनुसार, ये कदम मध्यम अवधि में आर्थिक विकास को मजबूत बनाए रखने के लिए जरूरी हैं।
मनीकंट्रोल की रिपोर्ट के मुताबिक RBL बैंक के हेड ऑफ ट्रेजरी अंशुल चंदक का कहना है कि रियल रेट बहुत ज्यादा हैं, इसलिए एक और कट जरूरी है ताकि ग्रोथ को सपोर्ट मिले। उन्होंने कहा कि पिछली कटौती का प्रभाव नीचे तक पहुंच चुका है, अब फिर कट का समय है। ज्यादातर एक्सपर्ट्स मानते हैं कि आरबीआई इस बार भी अपना रुख न्यूट्रल रखेगा और टोन Dovish होगी, यानी ब्याज दरें कम रखने और खर्च/लेंडिंग बढ़ाने पर फोकस। इससे कमजोर आर्थिक वृद्धि को सहारा मिलेगा। हालांकि कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि भविष्य में महंगाई बढ़ने की संभावना के कारण आरबीआई कटौती से बच सकता है।
Morgan Stanley का कहना है कि 2026-27 में हेडलाइन CPI हल्का सा बढ़ सकता है, लेकिन यह धीरे-धीरे RBI के 4% के लक्ष्य के आसपास स्थिर हो जाएगा। फूड इन्फ्लेशन पर बेस इफेक्ट का असर दिख सकता है, जबकि कोर इन्फ्लेशन स्थिर रहने की उम्मीद है। दोनों फूड और कोर इन्फ्लेशन को मिलाकर कुल महंगाई 4%–4.2% के आसपास रहने की संभावना है। इससे महंगाई की उम्मीदें भी स्थिर रहेंगी।
पिछले दो महीनों में महंगाई तेजी से कम होने की वजह से आरबीआई दिसंबर में अपने CPI के अनुमान घटा सकता है। अक्टूबर में रिटेल महंगाई 0.25% पर आ गई, जो 2013 में शुरू हुई मौजूदा CPI सीरीज का सबसे निचला स्तर है। इसके पहले सितंबर में यह 1.44% थी। खाने-पीने की चीजों की कीमतें लगातार गिरने से यह राहत मिली है। फूड इंडेक्स अक्टूबर में -5.02% रहा।
GDP के अनुमान पर एक्सपर्ट्स की राय बंटी हुई है। कुछ का कहना है कि अगर भारत-अमेरिका ट्रेड डील हो जाती है तो FY26 GDP को 7% से ऊपर संशोधित किया जा सकता है। अगर डील नहीं हुई तो बदलाव संभव नहीं है। कुछ अर्थशास्त्री GST कट और आर्थिक सुधार की वजह से भी GDP अनुमान बढ़कर 7% होने की उम्मीद जता रहे हैं।
मॉर्गन स्टैनली का कहना है कि भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) लगभग 1% या उससे कम रहेगा और इसमें किसी बड़ी बढ़ोतरी की संभावना नहीं है। रिपोर्ट कहती है कि भारत का बाहरी वित्तीय ढांचा मजबूत है, विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त है, आयात कवर अच्छा है और बाहरी कर्ज जीडीपी के मुकाबले काफी कम है।
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