पर्सनल फाइनेंस

3 min read | अपडेटेड December 24, 2025, 16:10 IST
सारांश
जब आप म्यूचुअल फंड के जरिए शेयरों में निवेश करते हैं, तो उन कंपनियों से मिलने वाले डिविडेंड (लाभांश) पर फंड हाउस का नहीं, बल्कि आपका हक होता है। फंड हाउस इस पैसे का क्या करते हैं, यह आपके द्वारा चुने गए 'ग्रोथ' या 'आईडीसीडब्ल्यू' विकल्प पर निर्भर करता है।

म्यूचुअल फंड के जरिए जिन इक्विटी में लगता है आपका पैसा, उनसे मिलने वाले डिविडेंड का फंड हाउस क्या करते हैं?
शेयर बाजार में निवेश करने वाले बहुत से लोग इस बात से खुश होते हैं कि उन्हें कंपनियों से सीधे डिविडेंड यानी लाभांश मिलता है। लेकिन जब बात म्यूचुअल फंड की आती है, तो बहुत से निवेशकों को यह समझ नहीं आता कि उनके हिस्से का डिविडेंड आखिर गया कहां। अगर आपने किसी ऐसी कंपनी के शेयर म्यूचुअल फंड के जरिए खरीदे हैं जो भारी डिविडेंड देती है, तो आज जान लीजिए उस पैसे का मैनेजमेंट आपका फंड हाउस यानी एएमसी (AMC) करता है। यह पैसा आपके पास किस रूप में पहुंचेगा, यह पूरी तरह से इस बात पर टिका होता है कि आपने निवेश करते समय कौन सा विकल्प चुना था।
जब कोई म्यूचुअल फंड स्कीम किसी कंपनी के शेयर खरीदती है, तो वह तकनीकी रूप से उस कंपनी की हिस्सेदार बन जाती है। ऐसे में जब वह कंपनी अपने मुनाफे का हिस्सा डिविडेंड के रूप में बांटती है, तो वह पैसा सीधे म्यूचुअल फंड स्कीम के पास आता है। यह पैसा स्कीम की कुल संपत्ति यानी एयूएम (AUM) का हिस्सा बन जाता है। अब यहां से फंड हाउस की जिम्मेदारी शुरू होती है कि वह इस पैसे को आपके खाते में भेजे या इसे वापस बाजार में लगा दे। इसके लिए म्यूचुअल फंड में दो मुख्य रास्ते बनाए गए हैं।
अगर आपने म्यूचुअल फंड का 'ग्रोथ' विकल्प चुना है, तो फंड हाउस आपको डिविडेंड के रूप में कोई नकद भुगतान नहीं करता है। इसके बजाय, कंपनियों से मिलने वाले लाभांश को उसी स्कीम में दोबारा निवेश कर दिया जाता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इससे आपकी स्कीम की एनएवी (NAV) यानी नेट एसेट वैल्यू बढ़ जाती है। सीधे शब्दों में कहें तो आपको नकद पैसा तो नहीं मिलता, लेकिन आपके निवेश की कुल कीमत बढ़ जाती है। लंबे समय में यह प्रक्रिया 'कंपाउंडिंग' का लाभ देती है, जिससे आपका पैसा तेजी से बढ़ता है।
पहले इसे डिविडेंड प्लान कहा जाता था, जिसे अब 'आईडीसीडब्ल्यू' (Income Distribution cum Capital Withdrawal) के नाम से जाना जाता है। अगर आप इस विकल्प को चुनते हैं, तो फंड हाउस कंपनियों से मिलने वाले डिविडेंड या पोर्टफोलियो के मुनाफे का एक हिस्सा आपको समय-समय पर नकद रूप में दे सकता है। लेकिन यहां एक बात ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि यह पैसा कोई 'अतिरिक्त' मुनाफा नहीं है। जैसे ही फंड हाउस डिविडेंड बांटता है, उस स्कीम की एनएवी ठीक उसी अनुपात में कम हो जाती है। यानी यह आपके अपने ही निवेश का एक हिस्सा है जो आपको वापस मिल रहा है।
म्यूचुअल फंड से मिलने वाले डिविडेंड पर टैक्स के नियम भी अब बदल चुके हैं। साल 2020 के बाद से मिलने वाला डिविडेंड अब निवेशक की कुल आय में जोड़ा जाता है और उसके टैक्स स्लैब के हिसाब से उस पर टैक्स लगता है। अगर मिलने वाला डिविडेंड 5,000 रुपये से ज्यादा है, तो फंड हाउस उस पर टीडीएस भी काटता है। इसलिए जो निवेशक लंबी अवधि के लिए बड़ी रकम जोड़ना चाहते हैं, उनके लिए अक्सर 'ग्रोथ' विकल्प ही बेहतर माना जाता है। वहीं जिन्हें नियमित आय की जरूरत है, वे आईडीसीडब्ल्यू का रास्ता चुन सकते हैं। बाजार के उतार-चढ़ाव के बीच यह समझना जरूरी है कि डिविडेंड का सही इस्तेमाल ही आपकी संपत्ति को बढ़ाने में मदद करता है।
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