return to news
  1. आपकी जेब में आता है या फंड हाउस रख लेता है? म्यूचुअल फंड डिविडेंड के पीछे की ये है पूरी कहानी

पर्सनल फाइनेंस

आपकी जेब में आता है या फंड हाउस रख लेता है? म्यूचुअल फंड डिविडेंड के पीछे की ये है पूरी कहानी

विकास तिवारी

3 min read | अपडेटेड December 24, 2025, 16:10 IST

Twitter Page
Linkedin Page
Whatsapp Page

सारांश

जब आप म्यूचुअल फंड के जरिए शेयरों में निवेश करते हैं, तो उन कंपनियों से मिलने वाले डिविडेंड (लाभांश) पर फंड हाउस का नहीं, बल्कि आपका हक होता है। फंड हाउस इस पैसे का क्या करते हैं, यह आपके द्वारा चुने गए 'ग्रोथ' या 'आईडीसीडब्ल्यू' विकल्प पर निर्भर करता है।

mutual-fund-dividend-reinvestment-growth

म्यूचुअल फंड के जरिए जिन इक्विटी में लगता है आपका पैसा, उनसे मिलने वाले डिविडेंड का फंड हाउस क्या करते हैं?

शेयर बाजार में निवेश करने वाले बहुत से लोग इस बात से खुश होते हैं कि उन्हें कंपनियों से सीधे डिविडेंड यानी लाभांश मिलता है। लेकिन जब बात म्यूचुअल फंड की आती है, तो बहुत से निवेशकों को यह समझ नहीं आता कि उनके हिस्से का डिविडेंड आखिर गया कहां। अगर आपने किसी ऐसी कंपनी के शेयर म्यूचुअल फंड के जरिए खरीदे हैं जो भारी डिविडेंड देती है, तो आज जान लीजिए उस पैसे का मैनेजमेंट आपका फंड हाउस यानी एएमसी (AMC) करता है। यह पैसा आपके पास किस रूप में पहुंचेगा, यह पूरी तरह से इस बात पर टिका होता है कि आपने निवेश करते समय कौन सा विकल्प चुना था।

Open FREE Demat Account within minutes!
Join now

कंपनियों से मिलने वाले डिविडेंड में फंड हाउस की भूमिका

जब कोई म्यूचुअल फंड स्कीम किसी कंपनी के शेयर खरीदती है, तो वह तकनीकी रूप से उस कंपनी की हिस्सेदार बन जाती है। ऐसे में जब वह कंपनी अपने मुनाफे का हिस्सा डिविडेंड के रूप में बांटती है, तो वह पैसा सीधे म्यूचुअल फंड स्कीम के पास आता है। यह पैसा स्कीम की कुल संपत्ति यानी एयूएम (AUM) का हिस्सा बन जाता है। अब यहां से फंड हाउस की जिम्मेदारी शुरू होती है कि वह इस पैसे को आपके खाते में भेजे या इसे वापस बाजार में लगा दे। इसके लिए म्यूचुअल फंड में दो मुख्य रास्ते बनाए गए हैं।

ग्रोथ ऑप्शन: जब पैसा दोबारा निवेश किया जाता है

अगर आपने म्यूचुअल फंड का 'ग्रोथ' विकल्प चुना है, तो फंड हाउस आपको डिविडेंड के रूप में कोई नकद भुगतान नहीं करता है। इसके बजाय, कंपनियों से मिलने वाले लाभांश को उसी स्कीम में दोबारा निवेश कर दिया जाता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इससे आपकी स्कीम की एनएवी (NAV) यानी नेट एसेट वैल्यू बढ़ जाती है। सीधे शब्दों में कहें तो आपको नकद पैसा तो नहीं मिलता, लेकिन आपके निवेश की कुल कीमत बढ़ जाती है। लंबे समय में यह प्रक्रिया 'कंपाउंडिंग' का लाभ देती है, जिससे आपका पैसा तेजी से बढ़ता है।

आईडीसीडब्ल्यू: कमाई को बांटने का तरीका

पहले इसे डिविडेंड प्लान कहा जाता था, जिसे अब 'आईडीसीडब्ल्यू' (Income Distribution cum Capital Withdrawal) के नाम से जाना जाता है। अगर आप इस विकल्प को चुनते हैं, तो फंड हाउस कंपनियों से मिलने वाले डिविडेंड या पोर्टफोलियो के मुनाफे का एक हिस्सा आपको समय-समय पर नकद रूप में दे सकता है। लेकिन यहां एक बात ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि यह पैसा कोई 'अतिरिक्त' मुनाफा नहीं है। जैसे ही फंड हाउस डिविडेंड बांटता है, उस स्कीम की एनएवी ठीक उसी अनुपात में कम हो जाती है। यानी यह आपके अपने ही निवेश का एक हिस्सा है जो आपको वापस मिल रहा है।

टैक्स और निवेशकों के लिए जरूरी सलाह

म्यूचुअल फंड से मिलने वाले डिविडेंड पर टैक्स के नियम भी अब बदल चुके हैं। साल 2020 के बाद से मिलने वाला डिविडेंड अब निवेशक की कुल आय में जोड़ा जाता है और उसके टैक्स स्लैब के हिसाब से उस पर टैक्स लगता है। अगर मिलने वाला डिविडेंड 5,000 रुपये से ज्यादा है, तो फंड हाउस उस पर टीडीएस भी काटता है। इसलिए जो निवेशक लंबी अवधि के लिए बड़ी रकम जोड़ना चाहते हैं, उनके लिए अक्सर 'ग्रोथ' विकल्प ही बेहतर माना जाता है। वहीं जिन्हें नियमित आय की जरूरत है, वे आईडीसीडब्ल्यू का रास्ता चुन सकते हैं। बाजार के उतार-चढ़ाव के बीच यह समझना जरूरी है कि डिविडेंड का सही इस्तेमाल ही आपकी संपत्ति को बढ़ाने में मदद करता है।

ELSS
2025 के लिए पाएं बेस्ट टैक्स बचाने वाले फंड्स एक्सप्लोर करें ELSS
promotion image

लेखकों के बारे में

विकास तिवारी
Vikash Tiwary is a finance journalist with 6+ years of newsroom experience. He is currently growing Upstox Hindi, crafting data-driven stories on stocks, personal finance, mutual funds, and global markets, while exploring how AI can simplify finance. His work spans Zee Business, TV9 Bharatvarsh, ABP News, India TV, and Inshorts. He also holds NISM certification.

अगला लेख