return to news
  1. Recurring vs Fixed Deposit: रिकरिंग vs फिक्स्ड डिपॉजिट; क्या हैं अंतर, कौन सा बेहतर, जानें सब यहां

पर्सनल फाइनेंस

Recurring vs Fixed Deposit: रिकरिंग vs फिक्स्ड डिपॉजिट; क्या हैं अंतर, कौन सा बेहतर, जानें सब यहां

Shatakshi Asthana

3 min read | अपडेटेड June 11, 2025, 07:50 IST

Twitter Page
Linkedin Page
Whatsapp Page

सारांश

RD vs FD comparison: रिकरिंग डिपॉजिट और फिक्स्ड डिपॉजिट को बचत का भरोसेमंद विकल्प माना जाता है। दोनों में ही अच्छा ब्याज भी मिलता है और लिक्विडिटी भी पर्याप्त होती है जिससे जरूरत पड़ने पर सेविंग्स को निकाला जा सकता है। क्या हैं रिकरिंग और फिक्सिड डिपॉजिट, दोनों तरह के अकाउंट्स में क्या अंतर हैं और क्या समानताएं हैं, यहां समझते हैं डीटेल में....

RD vs FD: कम जोखिम और सधे हुए रिटर्न्स के लिए बचत के भरोसेमंद विकल्प। (तस्वीर: Shutterstock)

RD vs FD: कम जोखिम और सधे हुए रिटर्न्स के लिए बचत के भरोसेमंद विकल्प। (तस्वीर: Shutterstock)

Recurring vs Fixed Deposit: अपनी मेहनत की कमाई को बचाने और बढ़ाने के लिए यूं तो कई ऑप्शन्स आज बाजार में मौजूद हैं, इनमें से कुछ ऐसे हैं जो बेहद कम जोखिम वाले माने जाते हैं। इसलिए ये काफी प्रचलित भी हैं। ऐसे ही दो ऑप्शन हैं फिक्स्ड डिपॉजिट और रिकरिंग डिपॉजिट।

इन दोनों में ही एक राशि को जमा कर दिया जाता है और फिर उसके ऊपर ब्याज मिलता रहता है। इससे सरप्लस लिक्विडटी को फायदेमंद बनाया जा सकता है और लॉन्ग-टर्म में ब्याज जोड़कर अच्छी राशि निकल आती है। खासकर मुद्रास्फीति को देखते हुए कैपिटल बेहतर तरीके से सेव रहती है।

आमतौर पर लोग पहले अपनी छोटी-छोटी बचत को रिकरिंग डिपॉजिट में डालकर ब्याज कमाते हैं और इसके मैच्योर होने के बाद इसे फिक्स्ड डिपॉजिट में जमा करके निश्चिंत हो जाते हैं।

यहां समझते हैं कि फिक्स्ड और रिकरिंग डिपॉजिट में क्या-क्या फायदे हैं और दोनों के बीच अंतर क्या है-

रिकरिंग डिपॉजिट

रिकरिंग डिपॉजिट यानी जिसमें बार-बार पैसे जमा करने हों। RD अकाउंट में हर महीने एक तय राशि जमा करनी होती है। यह अनुशासनात्मक तरीके से बचत की आदत डालने का एक बेहतरीन तरीका तो है ही, इसमें डिपॉजिट करके एक बड़ी राशि जमा की जाती है जिसे बाद में फिक्स्ड डिपॉजिट में जमा कर लंबे वक्त के लिए छोड़ा जा सकता है। RD में पैसे जमा करने के लिए टेन्योर फिक्स होता है और इस दौरान एक तय ब्याज दर लगती रहती है।

फिक्स्ड डिपॉजिट

फिक्सिड डिपॉजिट को टर्म डिपॉजिट भी कहते हैं। इसमें एक तय समय के लिए बैंक में पैसे जमा कर दिए जाते हैं। हर महीने, तीन महीने पर या 6 महीने पर सालाना, टर्म के आधार पर ब्याज लगता है। इसमें खास बात यह है कि जितने टर्म के लिए डिपॉजिट जमा किया गया है, उसके पहले बिना पेनाल्टी के इसे निकाला नहीं जा सकता। कई बैंक FD की वैल्यू पर 90% तक कर्ज भी देते हैं।

रिकरिंग vs फिक्स्ड डिपॉजिट

रिकरिंग डिपॉजिटफिक्स्ड डिपॉजिट
एक बार तय समय के लिए राशि जमा करनी होती है।हर महीने तय राशि जमा करनी होती है।
शुरुआती में जमा पूरे अमाउंट पर लगता है ब्याज।हर महीने के बढ़ते बैलेंस पर जुड़ता है ब्याज।
टेन्योर खत्म होने पर मैच्योर होती है RD, नियमित इंटरेस्ट पेआउट का ऑप्शन नहीं।कुछ समय के अंतराल पर या FD के मैच्योर होने पर ब्याज मिलने का ऑप्शन।
एक बार RD मैच्योर हो जाए तो अमाउंट को FD में निवेश किया जा सकता है, उसी RD में नहीं।FD मैच्योर होने के बाद अमाउंट को वापस इसी में निवेश किया जा सकता है।
डिपॉजिट को 6 महीने से से लेकर 10 साल तक के लिए जमा किया जाता है।डिपॉजिट को 7 दिन से लेकर 10 साल तक के लिए जमा किया जाता है।

RD और FD में समानताएं

रिकरिंग और फिक्सिड डिपॉडिट की ब्याज दरें आमतौर पर एक सी ही होती हैं। दोनों में ही लिक्विडिटी की सुविधा होती है। हालांकि, मैच्योरिटी के पहले राशि निकालने पर पेनाल्टी देनी पड़ सकती है। वरिष्ठ नागरिकों को दोनों के ब्याज पर टैक्स में छूट मिल सकती है।

ELSS
2025 के लिए पाएं बेस्ट टैक्स बचाने वाले फंड्स एक्सप्लोर करें ELSS
promotion image

लेखकों के बारे में

Shatakshi Asthana
Shatakshi Asthana बिजनेस, एन्वायरन्मेंट और साइंस जर्नलिस्ट हैं। इंटरनैशनल अफेयर्स में भी रुचि रखती हैं। मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से लाइफ साइंसेज और दिल्ली के IIMC से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद अब वह जिंदगी के हर पहलू को इन्हीं नजरियों से देखती हैं।