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  1. पिछले 4 चुनाव के नतीजों पर कैसा रिएक्ट किया है बाजार, ट्रेंड देख समझ आ जाएगी पूरी स्टोरी

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पिछले 4 चुनाव के नतीजों पर कैसा रिएक्ट किया है बाजार, ट्रेंड देख समझ आ जाएगी पूरी स्टोरी

विकास तिवारी

4 min read | अपडेटेड November 13, 2025, 15:09 IST

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सारांश

नतीजे शेयर बाजार के लिए हमेशा अहम रहे हैं। बिहार चुनाव एग्जिट पोल ने फिर यह बहस छेड़ दी है। पिछले 4 आम चुनावों का ट्रेंड देखें तो बाजार 'अस्थिरता' से घबराता है और 'स्थिर सरकार' मिलने पर जश्न मनाता है, जैसा 2009 में हुआ था।

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शेयर बाजार को किसी पार्टी से नहीं, बल्कि स्थिर और निर्णायक सरकार से प्यार है।

Stock Market Bihar Election Results: बिहार विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल सामने आते ही शेयर बाजार में जो रौनक देखने को मिली है, उसने एक बार फिर उस पुरानी बहस को छेड़ दिया है कि आखिर राजनीति और बाजार का रिश्ता क्या है? एग्जिट पोल में एनडीए की बड़ी जीत के दावों के बीच सेंसेक्स और निफ्टी में बड़ा उछाल देखा गया। लेकिन इसी के साथ यह डर भी है कि अगर 14 नवंबर को नतीजे उम्मीद के मुताबिक नहीं आए, तो बाजार में गिरावट आ सकती है। यह हर उस निवेशक का डर है जो चुनाव के मौसम में अपना पैसा बाजार में लगाकर बैठा है। चुनाव नतीजों का दिन किसी आम कारोबारी दिन जैसा नहीं होता, यह उम्मीद और घबराहट का मिला-जुला कॉकटेल होता है। सवाल यह है कि क्या राज्य की सरकार बदलने से दलाल स्ट्रीट का रास्ता बदल जाता है? चलिए समझते हैं।

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राज्य चुनावों का सीमित असर

अगर हम बिहार के पिछले कुछ चुनावों के इतिहास को देखें, तो जवाब ‘हां’ और ‘नहीं’ दोनों में मिलता है। 2010 में जब नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने भारी जीत दर्ज की, तब भी बाजार पर इसका कोई खास असर नहीं हुआ। उस वक्त देश 2008 की वैश्विक मंदी से उबरने की कोशिश कर रहा था और निवेशकों का ध्यान घरेलू सुधारों से ज्यादा ‘वॉल स्ट्रीट’ (अमेरिकी बाजार) की रिकवरी पर था। साल 2015 के नतीजे जब आए और महागठबंधन (नीतीश-लालू) ने बीजेपी को मात दी, तो अगले ही दिन सेंसेक्स 391 अंक टूट गया। निवेशकों को डर था कि इस हार से केंद्र के बड़े सुधार (जैसे जीएसटी) अटक सकते हैं। हालांकि, यह डर सिर्फ कुछ पलों का था, जिसे विश्लेषक ‘घबराहट में लिया गया फैसला’ कहते हैं। 2020 का चुनाव तो और भी अलग था, जब देश कोविड-19 से लड़ रहा था और बाजार का ध्यान वैक्सीन ट्रायल पर था।

जब 'अनिश्चितता' से डूबा बाजार

राज्य चुनावों का असर भले ही सीमित हो, लेकिन जब बात लोकसभा यानी आम चुनाव की आती है, तो बाजार अपनी सांसें थाम लेता है। बाजार को सबसे ज्यादा नफरत ‘अनिश्चितता’ (uncertainty) से है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 2024 के आम चुनाव हैं। पिछले साल, एग्जिट पोल एक मजबूत सरकार का दावा कर रहे थे, लेकिन जब नतीजे आए तो बीजेपी बहुमत से दूर रह गई। यह बाजार के लिए एक झटके जैसा था। निवेशकों में एक कमजोर गठबंधन सरकार की घबराहट ऐसी फैली कि निफ्टी एक ही दिन में 10% तक गोता लगा गया। यह गिरावट बताती है कि बाजार को 'लीडरशिप' से नहीं, 'अस्थिरता' से डर लगता है। हालांकि, 2004 में भी नतीजे एग्जिट पोल के बिल्कुल उलट थे, लेकिन उस दिन बाजार लगभग ‘फ्लैट’ रहा था।

'स्थिर सरकार' का ऐतिहासिक जश्न

बाजार को जब वह मिलता है जो उसे चाहिए, यानी ‘स्थिरता’, तो वह जश्न भी मनाता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 2009 का चुनाव है। दुनिया मंदी की चपेट में थी। जब नतीजे आए (16 मई, शनिवार) और यूपीए की स्थिर सरकार वापस आई, तो सोमवार (18 मई) को जब बाजार खुला, तो उसने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। सेंसेक्स ने 17.34% की ऐतिहासिक छलांग लगाई और 2,110 अंक चढ़ गया। 2014 में जब ‘मोदी युग’ की शुरुआत हुई, तब भी बाजार ने इसका स्वागत किया और नतीजों के दिन सेंसेक्स 1.11% चढ़कर बंद हुआ।

2019 में क्यों हुई 'मुनाफावसूली'?

2019 का नतीजा सबसे दिलचस्प था। मोदी सरकार और मजबूती से वापस आई। 23 मई को नतीजों के दिन बाजार ने जश्न मनाया, सेंसेक्स 40,000 और निफ्टी 12,000 के पार गया। लेकिन यह जश्न सिर्फ दिन के कारोबार तक चला। शाम होते-होते बाजार ‘लाल’ निशान में बंद हुआ। सेंसेक्स 298 अंक टूट गया। इसे ‘प्रॉफिट बुकिंग’ (मुनाफावसूली) कहते हैं। मतलब, निवेशकों को पहले से ही पता था कि जीत पक्की है, उन्होंने पहले ही खरीदारी कर ली थी और जैसे ही खबर पक्की हुई, उन्होंने अपना मुनाफा समेट लिया।

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लेखकों के बारे में

विकास तिवारी
Vikash Tiwary is a finance journalist with 6+ years of newsroom experience. He is currently growing Upstox Hindi, crafting data-driven stories on stocks, personal finance, mutual funds, and global markets, while exploring how AI can simplify finance. His work spans Zee Business, TV9 Bharatvarsh, ABP News, India TV, and Inshorts. He also holds NISM certification.

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