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India-UK FTA: क्या है UK का ‘कार्बन टैक्स?’ भारत संग FTA के फायदों पर कहीं फेर ना दे पानी

Shatakshi Asthana

3 min read | अपडेटेड May 07, 2025, 15:51 IST

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सारांश

Carbon Border Adjustment Mechanism या कार्बन टैक्स वह कीमत है जो यूके उसे निर्यात किए जाने वाले ऐसे उत्पादों पर लगाएगा जिनके उत्पादन में कार्बन का ज्याद उत्सर्जन हुआ है। यूरोपियन यूनियन पहले ही इसे लागू कर चुका है। भारत के साथ हुए Free Trade Agreement में इसे हटाने या भारत के लिए असर कम करने का कोई प्रावधान नहीं है जिससे भारतीय उत्पादकों और निर्यातकों के लिए चिंता खड़ी हो सकती है।

India-UK FTA के तहत साल 2030 तक दोनों देशों के बीच व्यापार दोगुना होकर $120 अरब करने का लक्ष्य। (तस्वीर: Shutterstock)

India-UK FTA के तहत साल 2030 तक दोनों देशों के बीच व्यापार दोगुना होकर $120 अरब करने का लक्ष्य। (तस्वीर: Shutterstock)

India-UK FTA: करीब 3 साल से चर्चाओं के कई दौर गुजरने के बाद भारत और युनाइटेड किंगडम ने फ्री-ट्रेड अग्रीमेंट (Free Trade Agreement) पर रजामंदी बना ली है। इस ऐतिहासिक समझौते से साल 2030 तक दोनों देशों के बीच व्यापार दोगुना होकर $120 अरब हो जाने की उम्मीद है।

हालांकि, एक मसला ऐसा है जिसके चलते दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत और छठी ब्रिटेन के बीच अभी भी दूरी है और जिससे इस व्यापार समझौते के फायदे सीमित रह जाने की आशंका पैदा हो जाती है।

दरअसल, ब्रिटेन साल 2027 से आयात पर ‘कार्बन बॉर्डर अडजस्टमेंट मकैनिज्म (Carbon Border Adjustment Mechanism, CBAM)’ या ‘कार्बन टैक्स’ लगाने का मूड चार साल पहले ही बना चुका है और भारत के साथ हुए FTA में इस कार्बन टैक्स से निपटने का कोई रास्ता नहीं है।

क्या है कार्बन टैक्स?

CBAM या कार्बन टैक्स 2023 में यूरोपियन यूनियन ने लगाया था और ब्रिटेन भी 1 जनवरी 2027 से इसे लागू करने के लिए तैयार है। 14-24% का यह टैक्स लोहे, स्टील से लेकर सेरेमिक, ग्लास जैसे उत्पादों पर शुरुआत में फोकस करेगा। EU का कहना है कि इस टैक्स के जरिए वह कार्बन के उत्सर्जन को कम करना चाहता है।

उत्पादन प्रक्रिया के दौरान जितनी कार्बन का उत्सर्जन होता है, उसकी कीमत लगाकर वह साफ टेक्नॉलजी के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करना चाहता है। हालांकि, निर्यात करने वाले भारत और चीन जैसे देशों को इस पर विकसित और विकासशील देशों के बीच अलग व्यवहार की शिकायत है।

दरअसल, टेक्नॉलजी के अभाव में कम कार्बन उत्सर्जन के साथ उत्पादन अपने आप में एक चुनौती है। इसे जलवायु परिवर्तन के समझौतों के तहत Common but differentiated responsibility (CBDR) के सिद्धांत का उल्लंघन भी माना गया है। वहीं, अतिरिक्त टैक्स लगने से देश के उत्पादकों और निर्यातकों, दोनों को भारी नुकसान का डर है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दूसरे देशों के साथ कीमतों में बराबरी नहीं कर सकेंगे।

क्या होगा असर?

इकॉनमिक थिंक टैंक GTRI के मुताबिक भारत के यूके को निर्यात होने वाले $77.5 करोड़ के उत्पादों पर कार्बन टैक्स का असर हो सकता है। इसेमें लोहा, स्टील, एल्यूमिनियन, उर्वरक और सीमेंट जैसे उत्पाद शामिल हैं। अधिकारी के मुताबिक FTA के तहत CBAM को लेकर कोई प्रावधान ना होने से ब्रिटेन भारत को जो छूट दे रहा है, उनके फायदा ना के बराबर हो सकते हैं।

क्या करेगा भारत?

पीटीआई-भाषा ने आधिकारिक सूत्रों के हवाले से जानकारी दी है कि भले ही भारत और यूके के बीच कार्बन टैक्स को लेकर कोई बीच का रास्ता ना निकला हो, सरकार इस बात पर अटल है कि अगर घरेलू निर्यात पर असर पड़ेगा तो उसके पास जवाबी ऐक्शन लेने का अधिकार बना रहेगा। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल भी पहले ही EU के कार्बन टैक्स को लेकर साफ कर चुके हैं कि इससे घरेलू बाजार को नुकसान होने पर जवाबी ऐक्शन लिया जाएगा।

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लेखकों के बारे में

Shatakshi Asthana
Shatakshi Asthana बिजनेस, एन्वायरन्मेंट और साइंस जर्नलिस्ट हैं। इंटरनैशनल अफेयर्स में भी रुचि रखती हैं। मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से लाइफ साइंसेज और दिल्ली के IIMC से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद अब वह जिंदगी के हर पहलू को इन्हीं नजरियों से देखती हैं।

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