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3 min read | अपडेटेड December 10, 2025, 16:25 IST
सारांश
कभी डूबे हुए कर्ज (NPA) के बोझ तले दबे भारतीय बैंक आज दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन चुके हैं। सरकार द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक, सरकारी बैंकों का मुनाफा और बैलेंस शीट अब तक के सबसे मजबूत स्तर पर है। जानिए कैसे सुधारों और कड़े फैसलों ने बैंकिंग सिस्टम की तस्वीर बदल दी है।

भारतीय बैंकिंग सेक्टर ने पिछले एक दशक में जबरदस्त वापसी की है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती की कहानी अब इसके बैंकिंग सेक्टर के आंकड़ों में साफ झलकने लगी है। एक समय था जब बैंकों की बैलेंस शीट डूबे हुए कर्ज यानी एनपीए (NPA) के चलते लाल रंग में रंगी होती थी, लेकिन पिछले एक दशक में तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। सरकार द्वारा जारी की गई ताजा रिपोर्ट बताती है कि भारतीय बैंक अब संकट से उबरकर भरोसे और मजबूती के नए दौर में प्रवेश कर चुके हैं। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2015 से 2025 के बीच भारतीय बैंकों में जमा राशि और बांटे गए कर्ज (क्रेडिट) में लगभग तीन गुना की बढ़ोतरी हुई है। बैंकों में जमा राशि 88.35 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 231.90 लाख करोड़ रुपये हो गई है, जबकि कर्ज का आंकड़ा 66.91 लाख करोड़ रुपये से उछलकर 181.34 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है।
बैंकिंग सेक्टर के लिए सबसे बड़ी जीत एनपीए के मोर्चे पर मिली है। साल 2018 में ग्रॉस एनपीए (GNPA) अपने चरम पर यानी 11.46 फीसदी तक पहुंच गया था, जो अब मार्च 2025 में घटकर 2.31 फीसदी रह गया है। यह पिछले 20 सालों का सबसे निचला स्तर है। इसी तरह नेट एनपीए (NNPA) भी घटकर 0.52 फीसदी पर आ गया है। सरकारी बैंकों (PSBs) ने इसमें सबसे बड़ा सुधार दिखाया है। मार्च 2021 में उनका एनपीए 9.11 फीसदी था जो अब गिरकर 2.58 फीसदी रह गया है। यह गिरावट बताती है कि बैंकों ने कर्ज वसूली और जोखिम प्रबंधन में कितना सुधार किया है।
बैंकों की वित्तीय सेहत सुधरने का सीधा असर उनके मुनाफे पर दिखा है। सरकारी बैंकों का शुद्ध मुनाफा वित्त वर्ष 2022-23 के 1.05 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 1.78 लाख करोड़ रुपये हो गया है। वहीं अगर सभी शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों (SCBs) की बात करें तो उनका कुल मुनाफा 4.01 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। बैंकों की कमाई बढ़ने के साथ ही उनका डिविडेंड पेआउट भी बढ़ा है, जो निवेशकों और सरकार दोनों के लिए अच्छी खबर है।
इस बदलाव के पीछे सरकार और आरबीआई द्वारा उठाए गए कड़े कदम हैं। एसेट क्वालिटी रिव्यू (AQR) के जरिए छिपे हुए बैड लोन को बाहर लाया गया। इसके बाद इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) ने कर्ज न चुकाने वालों पर शिकंजा कसा और रिकवरी की प्रक्रिया तेज की। साथ ही सरकारी बैंकों का विलय (Consolidation) और पूंजी डालने (Recapitalisation) की रणनीति ने बैंकों को मजबूत किया। प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (PCA) फ्रेमवर्क ने कमजोर बैंकों को पटरी पर लाने में मदद की। रिपोर्ट में कहा गया है कि डिजिटल बैंकिंग और यूपीआई जैसी तकनीकों ने भी इस ग्रोथ में अहम भूमिका निभाई है।
सरकार की क्या है प्लानिंग?
अब भारतीय बैंक भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार हैं। बैंकों का फोकस अब ग्रीन ग्रोथ यानी रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर को लोन देने और वित्तीय समावेशन को और गहरा करने पर है। गिफ्ट सिटी के जरिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी मौजूदगी बढ़ाने और सेमी-अर्बन व ग्रामीण इलाकों में डिपॉजिट बढ़ाने पर भी जोर दिया जा रहा है। सरकार का मानना है कि जैसे-जैसे भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ेगा, ये मजबूत बैंक उसके विकास के इंजन साबित होंगे।
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