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5 min read | अपडेटेड May 13, 2025, 13:26 IST
सारांश
IMF Loan to Pakistan: अंतरराष्ट्रीय मॉनिटरी फंड ने पाकिस्तान को Extended Fund Facility (EFF) के तहत $1 अरब से ज्यादा की मदद पहुंचाई है। भारत इस फैसले के खिलाफ वोट नहीं डाल सका। लंबे वक्त से दूसरे विश्व युद्ध के बाद बने IMF के वोटिंग सिस्टम, सदस्यों के वोटिंग शेयर को लेकर आलोचना होती रही है। यह पश्चिमी और विकसित देशों को फेवर करता है जबकि भारत और ब्राजील जैस देशों से लेकर दूसरे विकासशील देशों को समानता के लिए लड़ना पड़ता है।
IMF में अमेरिका के दबदबे की आलोचना होती रहती है। IMF के वोटिंग सिस्टम के आधार पर माना जा रहा है कि उसने पाकिस्तान को दिए जाने वाले कर्ज का विरोध नहीं किया।
भारत अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय मंचों पर IMF के काम करने के तरीके में बदलाव की मांग उठा चुका है जिसके बाद कुछ रिफॉर्म लाकर इन्हें पूरा भी किया गया है। भारत ही नहीं, दुनिया के कई देश, खासकर ग्लोबल साउथ की इकॉनमी, ये मानती हैं कि IMF पर पश्चिमी और विकसित देशों का दबदबा रहता है। यह उसकी वोटिंग से लेकर कर्ज देने की शर्तों तक में दिखाई देता है।
IMF ने पाकिस्तान को 9 मई को जो अप्रूवल दिया है, वह दरअसल उसकी एक्सटेंडेड फंड फसिलटी (EFF) का हिस्सा है। पिछले साल सितंबर में ही पाकिस्तान को कुल $7 अरब की मदद का अप्रूवल मिल चुका था। यानी वह IMF से अलग-अलग मौकों पर कुल इतनी आर्थिक मदद ले सकता है।
अभी तक उसने $2.1 अरब की मदद ले ली है जिसमें से हालिया राशि EFF के तहत और बाकी रेजीलियंस ऐंड सस्टेनेबिलिटी फसिलिटी (RSF) के तहत उसे मिली है। IMF के मुताबिक यह मदद पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति सुधारने, खासकर क्लाइमेट चेंज से जुड़े आर्थिक संकटों का सामना करने के लिए दी गई है।
IMF में जब इस प्रस्ताव पर वोटिंग हुई तो भारत ने इसमें हिस्सा नहीं लिया। इससे सवाल उठा कि आखिर भारत ने इस प्रस्ताव के विरोध में वोट क्यों नहीं डाला? यहां सामने आती है IMF के काम करने के तरीके में एक बड़ी खामी। दरअसल, IMF में आधिकारिक तौर पर 'ना' में वोट करने का प्रावधान ही नहीं है।
IMF में वोटिंग कोटा सिस्टम के तहत होती है। यानी हर देश का हिस्सा उसके आर्थिक योगदान को दर्शाता है। कोटा सिस्टम से वोटिंग में हर सदस्य को समान बेसिक वोट्स मिलते हैं। इसके अतिरिक्त स्पेशल ड्रॉइंड राइट्स (Special Drawing Rights, SDR) शेयर के आधार पर कोटा वोट्स मिलते हैं।
इसके तहत जिस देश के पास जितने SDR होते हैं, उसमें हर एक लाख SDR पर एक कोटा वोट मिलता है। यानी जिसका SDR में शेयर ज्यादा, उसके वोट का उतना शेयर ज्यादा। SDR IMF के पास जमा एक तरह का रिजर्व ऐसेट है। भारत के पास 13705.95 मिलियन SDR मौजूद है।
इस आधार पर अमेरिका के पास सबसे ज्यादा वोटिंग शेयर (16%) जबकि जापान के पास 6.14%, चीन के पास 6.08%, भारत के पास 3.05% और रूस के पास 2.68% वोटिंग शेयर है। माना जा रहा है कि सबसे ज्यादा शेयर वाले अमेरिका ने या तो पाकिस्तान को कर्ज देने के प्रस्ताव का समर्थन किया या विरोध नहीं किया।
यूरोपीय देशों, जैसे ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली के अलावा उत्तर अमेरिकी कनाडा के पास भी भारत से ज्यादा वोट शेयर है। वहीं, दुनियाभर के बाकी देशों के पास और भी कम। इसलिए भारत लंबे वक्त से इसे लेकर विरोध दर्ज कराता रहा है जिसके बाद उसके वोटिंग शेयर को बढ़ाया गया। विकसित देशों का दबदबा होने से विकासशील और अविकिसित देशों से जुड़े फैसले एकतरफा होते हैं।
IMF को यूरोप और अमेरिका को मिली पोजिशन के चलते निशाने पर लिया जाता है। सदस्यों का कोटा बढ़ाने, SDR आवंटन बढ़ाने, नए सदस्यों को शामिल करने जैसे फैसलों के लिए 85% का बहुमत चाहिए होता। यानी अमेरिका के पास एक तरह से वीटो की ताकत आ जाती है क्योंकि उसके पास 16% से ज्यादा का वोट शेयर है। डॉलर के ऐसे ही दबाव के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डीडॉलराइजेशन की मांग तेज रहती है।
वहीं, IMF की ओर से जो आर्थिक सहायता दी जाती है, उसमें कई ऐसी शर्तें होती हैं जिन्हें देशों के प्रभुत्व का उल्लंघन माना जाता है। संगठन देशों की स्पेसिफिक समस्या के समाधान को बिना सोचे-समझे ही फैसला करने के लिए आलोचना का शिकार होता है।
IMF से देशों के वोटिंग शेयर में ज्यादा समानता, कर्ज देने की शर्तों में ढील की उम्मीद लगाई जाती है। भारत ने भी कम और मध्यम आमदनी वाले देशों को सस्ती ब्याज दर देने की मांग की है। साथ ही अर्थव्यवस्था के आधार पर कर्ज ना देकर, हालात के आधार पर देने की जरूरत समझी जाती है।
दूसरे विश्व युद्द के दौरान हुई आर्थिक बर्बादी से निपटने के लिए 1944-45 में बनाए गए IMF के कामकाज का तरीका आज भी पिछली सदी का माना जाता है। इससे जुड़ा एक बड़ा मुद्दा मौजूदा वैश्विक परिपेक्ष्य में उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का वोटिंग सिस्टम में जगह देने का है।
ब्राजील जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था अभी भी अपने कोटा शेयर को बढ़ाने की मांग कर रही है। चीन और भारत का हिस्सा पहले से ज्यादा तो है लेकिन इसमें उनकी आर्थिक वृद्धि की झलक नहीं है। ऐसे में मांग उठती है नियमित अंतराल पर शेयर को रिवाइज करने की।
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