return to news
  1. सीपियों को ‘सोने’ में बदलने की मिल रही ट्रेनिंग, झारखंड ने कैसे मोती की खेती का बदला पूरा ढांचा?

ट्रेंडिंग न्यूज़

सीपियों को ‘सोने’ में बदलने की मिल रही ट्रेनिंग, झारखंड ने कैसे मोती की खेती का बदला पूरा ढांचा?

Upstox

3 min read | अपडेटेड July 14, 2025, 12:09 IST

Twitter Page
Linkedin Page
Whatsapp Page

सारांश

Pearl Farming: झारखंड में मोतियों की खेती का स्वरूप एकदम से बदल गया है। इसके पीछे राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने मिलकर काम किया है। इससे राज्य में किसानों और ग्रामीण युवाओं को रोजगार भी मिल रहा है। चलिए समझते हैं कि कैसे झारखंड में मोतियों की खेती का पूरा ढांचा बदला गया है।

मोती की खेती

झारखंड ने कैसे मोती की खेती का बदला पूरा ढांचा?

झारखंड तेजी से भारत के मीठे पानी के मोती प्रोडक्शन के सेंटर के रूप में उभर रहा है। राज्य और केंद्र सरकार इस खास सेक्टर को ग्रामीण युवाओं और किसानों के लिए आजीविका के एक अहम मौके में बदलने के लिए कई ट्रेनिंग प्रोग्राम और बुनियादी ढांचे का विकास कर रहे हैं। इस बदलाव को तब गति मिली जब केंद्र ने झारखंड सरकार के सहयोग से प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत 22 करोड़ रुपये के निवेश के साथ हजारीबाग को पहले मोती उत्पादन क्लस्टर के रूप में विकसित करने की अधिसूचना जारी की। राज्य योजना के तहत 2019-20 में एक पायलट (प्रायोगिक) परियोजना के रूप में शुरू हुआ यह कार्यक्रम अब कौशल विकास पर केंद्रित एक संरचित पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में विकसित हो गया है, जिसमें किसानों को मोती की खेती की जटिल कला सिखाने के लिए राज्य भर में खास ट्रेनिंग सेंटर स्थापित किए गए हैं।

Open FREE Demat Account within minutes!
Join now

कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) कोष से 2024 में रांची में स्थापित, पुर्टी एग्रोटेक ट्रेनिंग सेंटर, इस ट्रेनिंग क्रांति का केंद्र बनकर उभरा है। यह केंद्र अब तक राज्य भर के 132 से ज्यादा किसानों को उन्नत मोती उत्पादन तकनीकों का प्रशिक्षण दे चुका है, और ये प्रशिक्षित किसान अब अपने-अपने जिलों में दूसरों को भी अपना ज्ञान दे रहे हैं, जिससे कई गुना ज्यादा फायदा हो रहा है। एनआईटी जमशेदपुर के मैकेनिकल इंजीनियर बुधन सिंह पूर्ति ने कहा, ‘प्रशिक्षण सफल मोती उत्पादन की रीढ़ है। हम गोल मोती उत्पादन पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, क्योंकि इससे डिजाइनर मोतियों की तुलना में अधिक लाभ मिलता है।’ पूर्ति प्रशिक्षण केंद्र चलाते हैं और गोल मोती उत्पादन में राज्य में मोती तराशने वाले कुछ विशेषज्ञों में से एक बन गए हैं।

प्रशिक्षण कार्यक्रम कुशल सर्जिकल ग्राफ्टिंग तकनीकों, विशिष्ट उपकरणों के उपयोग और शल्य चिकित्सा के बाद सावधानीपूर्वक प्रबंधन पर जोर देते हैं। ये ऐसे महत्वपूर्ण कारक हैं जो मोती उत्पादन की उत्तरजीविता दर और गुणवत्ता निर्धारित करते हैं। तकनीकी विशेषज्ञता पर यह ध्यान अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि गोल मोतियों की खेती में उच्च उत्तरजीविता दर और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए सटीकता की आवश्यकता होती है।

इस सेक्टर की संभावनाओं को पहचानते हुए, रांची स्थित सेंट जेवियर्स कॉलेज ने मोती उत्पादन में छह महीने से लेकर डेढ़ साल तक के सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किए हैं, जिनमें एकैडमिक रिसर्च को व्यावहारिक क्षेत्रीय अनुभव के साथ एकीकृत किया गया है। प्रोफेसर रितेश कुमार शुक्ला ने बताया, ‘झारखंड में मोती उत्पादन एक उभरता हुआ क्षेत्र बनने जा रहा है और युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करेगा। विज्ञान के ज्ञान और क्षेत्रीय अनुभव से उद्यमशीलता कौशल विकसित करने में मदद मिलेगी।’

भाषा इनपुट के साथ
ELSS
2025 के लिए पाएं बेस्ट टैक्स बचाने वाले फंड्स एक्सप्लोर करें ELSS
promotion image

लेखकों के बारे में

Upstox
Upstox Hindi News Desk पत्रकारों की एक टीम है जो शेयर बाजारों, अर्थव्यवस्था, वस्तुओं, नवीनतम व्यावसायिक रुझानों और व्यक्तिगत वित्त को उत्साहपूर्वक कवर करती है।

अगला लेख