return to news
  1. ‘गगनयान’ खोलेगा चांद पर पहले कदम का रास्ता, कहां पहुंची अंतरिक्ष में भारतीय दस्तक की तैयारी?

ट्रेंडिंग न्यूज़

‘गगनयान’ खोलेगा चांद पर पहले कदम का रास्ता, कहां पहुंची अंतरिक्ष में भारतीय दस्तक की तैयारी?

Shatakshi Asthana

4 min read | अपडेटेड May 07, 2025, 15:02 IST

Twitter Page
Linkedin Page
Whatsapp Page

सारांश

Gaganyaan Mission: भारत पहली बार अंतरिक्ष में अपना स्पेसक्राफ्ट भेजने जा रहा है जिसमें देश के 4 ऐस्ट्रोनॉट तीन दिन के लिए धरती से 400 किमी ऊपर अपने ग्रह का चक्कर काटेंगे। इस दौरान माइक्रोग्रैविटी में कई एक्सपेरिमेंट भी किए जाएंगे। यह मिशन स्पेस रेस में भारत को आगे तो लाता ही है, साथ ही किफायती टेक्नॉलजी की मिसाल दुनिया के सामने पेश करता है।

'गगनयान' मिशन भारत के स्पेस स्टेशन और चांद पर कदम रखने की तैयारी का पहला चरण होगा। (तस्वीर: isro.gov)

'गगनयान' मिशन भारत के स्पेस स्टेशन और चांद पर कदम रखने की तैयारी का पहला चरण होगा। (तस्वीर: isro.gov)

Gaganyaan Mission: धरती की सतह के 100 किमी ऊपर है कार्मन लाइन। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय इसे अंतरिक्ष की शुरुआत मानते हैं। इसी सीमा से 300 कमी ऊपर जाने की तैयारी में भारत का ‘गगनयान’ मिशन।

पहली बार भारत का एक स्पेसक्राफ्ट 4 ऐस्ट्रोनॉट्स को लेकर धरती से 400 किमी ऊपर लेकर जाएगा। यह मिशन वैज्ञानिक तौर पर तो अहम है ही, साथ ही यह स्पेस सेक्टर में भारत की क्षमता का प्रदर्शन भी करेगा।

क्या है ‘गगनयान मिशन’?

इस मिशन के तहत भारत के 4 ऐस्ट्रोनॉट- प्रशांत नायर, अंगद प्रताप, अजीत कृष्णन और शुभांशु शुक्ला- तीन दिन के लिए धरती का चक्कर काटेंगे। इसे लॉन्च करेगा LVM3 वीइकल जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation, ISRO) ने डिवेलप किया है।

तीन स्टेज के इस लॉन्च वीइकल में 4000 किलो तक भार जियोसिंक्रनस ट्रांसफर ऑर्बिट (Geosynchronous Transfer Orbit, GTO) तक ले जाने की क्षमता है। मिशन पूरा होने के बाद ऐस्ट्रोनॉट्स पानी पर लैंडिंग करेंगे।

इस दौरान तीनों ऐस्ट्रोनॉट माइक्रोग्रैविटी में साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट्स भी पूरे करेंगे। केंद्रीय मंत्री जीतेंद्र सिंह का कहना है कि इस मिशन के तहत भारत ना सर्फ वैज्ञानिक लक्ष्यों को हासिल करेगा, बल्कि देश के अंदर बनी टेक्नॉलजी की ताकत से दुनिया में स्पेस पावर के तौर पर नेतृत्व करेगा।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन को दोहराते हुए कहा कि इसके जरिए 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन और 20240 तक चांद पर पहले भारतीय को उतारने का रास्ता तैयार होगा।

टेक्नॉलजी और ट्रेनिंग कैसी?

‘गगनयान’ को धरती की निचली कक्षा में पहुंचाने वाले LVM3 के अलावा इस मिशन पर कई अहम टेक्नॉलजी का इस्तेमाल हुआ है। LVM3 में ही Crew Escape System लगा हुआ है जिसकी मोटर्स यह सुनिश्चित करेंगी कि किसी तरह की मुश्किल स्थित में क्रू मॉड्यूल एक सुरक्षित दूरी पर पहुंच जाए।

स्टेट-ऑफ-दि-आर्ट एवियॉनिक्स सिस्टम से लैस ऑर्बिटल मॉड्यूल (Orbital module) में एक क्रू मॉड्यूल और एक सर्विस मॉड्यूल लगे हैं।

क्रू मॉड्यूल ऐस्ट्रोनॉट्स के लिए धरती जैसा माहौल तैयार करेगा। इसमें लाइफ सपोर्ट, डीसेलरेशन सिस्टम मोजूद हैं। इसे इस तरह से बनाया गया है कि धरती पर वापसी के दौरान क्रू सुरक्षित रहे। सर्विस मॉड्यूल में थर्मल सिस्टम, प्रोपल्शन सिस्टम, पावर सिस्टम, एवियॉनिक्स सिस्टम और डेप्लॉयमेंट मकैनिज्म मौजूद होंगे।

'गगनयान' मिशन पर जाने वाले चारों ऐस्ट्रोनॉट्स को रूस के यूरी गगरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में मिशन के लिए तैयार किया गया है। मिशन को लेकर खास ट्रेनिंग उन्हें भारत में दी जा रही है। इसके लिए ऑपरेशनल तैयारी के अलावा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी फोकस किया जा रहा है।

कब होगा लॉन्च, कितनी तैयारी?

केंद्रीय मंत्री सिंह ने बताया है कि 'गगनयान' मिशन अपने आखिरी चरण में पहुंच चुका है। इस साल की शुरुआत में बिना क्रू के टेस्ट वीइकल अबॉर्ट मिशन सफलतापूर्वक टेस्ट कर लिया गया है। इस साल के आखिर तक ऐसा एक और टेस्ट किया जाएगा।

कुछ ऑर्बिटल फ्लाइट्स और ‘व्योममित्र’ के साथ टेस्ट ऐस्ट्रोनॉट्स को भेजने के पहले किया जाएगा। यह ह्यूमनऑइड रोबोट इंसानों के लिए जरूरी हालात को टेस्ट करेगा।

LVM-3, क्रू एस्केप सिस्टम और ऑर्बिटल मॉड्यूल भी अपनी टेस्टिंग के आखिरी चरण में हैं। वहीं, मिशन से लौटने पर ऐस्ट्रोनॉट्स को लैंडिंग के बाद पानी से रिकवरी के लिए भारतीय नौसेना के साथ भी अभ्यास किए गए हैं। सभी तैयारियां पूरी होने के बाद साल 2027 के शुरुआती महीनों में ‘गगनयान’ को लॉन्च किए जाने का प्लान है।

भारत को क्या फायदा?

‘गगनयान’ मिशन से भारत स्पेस सेक्टर के लीडर के तौर पर उभरेगा। यह भारत के किफायती स्पेस प्रोग्राम की मिसाल दुनिया क के सामने पेश करेगा। मिशन में सफलता मिलने से LVM3 की भारी सैटलाइट्स लॉन्च करने की क्षमता का भी प्रदर्शन होगा जिससे दूसरे देशों के सैटलाइट लॉन्च करने के प्रॉजेक्ट और मिलेंगे।

खासकर घरेलू इंडस्ट्री में स्पेस टेक्नॉलजी से जुड़े उपकरणों की मांग और क्वॉलिटी के भी ऊपर जाने की उम्मीद रहेगी।

ELSS
2025 के लिए पाएं बेस्ट टैक्स बचाने वाले फंड्स एक्सप्लोर करें ELSS
promotion image

लेखकों के बारे में

Shatakshi Asthana
Shatakshi Asthana बिजनेस, एन्वायरन्मेंट और साइंस जर्नलिस्ट हैं। इंटरनैशनल अफेयर्स में भी रुचि रखती हैं। मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से लाइफ साइंसेज और दिल्ली के IIMC से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद अब वह जिंदगी के हर पहलू को इन्हीं नजरियों से देखती हैं।