पर्सनल फाइनेंस
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3 min read | अपडेटेड September 30, 2025, 13:57 IST
सारांश
भारतीय रिजर्व बैंक ने लोन रेट नियम में कुछ बदलाव किए हैं, इन बदलावों से क्या फायदा मिलेगा, आम इंसान की जिंदगी में इससे क्या कुछ बदलेगा, चलिए नजर डालते हैं। ब्याज दरों में कटौती का फायदा उधारकर्ताओं तक तेजी से पहुंचाने के लिए आरबीआई ने एक अहम कदम उठाया है।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बदला लोन रेट नियम, क्या कुछ है नया?
Reserve Bank of India (RBI) यानी कि भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को कच्चे माल के रूप में सोने का इस्तेमाल करने वाले विनिर्माताओं को आवश्यकता-आधारित वर्किंग कैपिटल लोन देने की अनुमति दे दी है। यह प्रावधान वर्तमान में केवल जौहरियों के लिए उपलब्ध है। बैंकों पर आमतौर पर किसी भी रूप में सोना/चांदी खरीदने या प्राथमिक सोने/चांदी की गारंटी पर लोन देने पर प्रतिबंध है। आरबीआई ने हालांकि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (Scheduled commercial banks, SCBs) को आभूषण विक्रेताओं को वर्किंग कैपिटल लोन देने के लिए छूट दी है। सोमवार को जारी भारतीय रिजर्व बैंक (गोल्ड एंड सिल्वर गारंटी पर लोन) (प्रथम संशोधन) निर्देश 2025 ने ऐसे उधारकर्ताओं की आवश्यकता-आधारित वर्किंग कैपिटल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए छूट का दायरा बढ़ाया है जो अपने विनिर्माण या औद्योगिक प्रसंस्करण गतिविधियों में कच्चे माल के रूप में सोने का इस्तेमाल करते हैं।
निर्देशों में कहा गया, ‘ .. अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक या ‘टियर’ तीन या चार 4 यूसीबी उन उधारकर्ताओं को आवश्यकता-आधारित वर्किंग कैपिटल क्रेडिट प्रदान कर सकते हैं, जो सोने या चांदी का इस्तेमाल कच्चे माल के रूप में या अपने विनिर्माण या औद्योगिक प्रसंस्करण गतिविधि में कच्चे माल के तौर पर करते हैं, जिसके लिए ऐसे सोने या चांदी को सुरक्षा के रूप में भी स्वीकार किया जा सकता है।’ ‘टियर’ तीन और चार यूसीबी से मतलब ऐसे शहरी सहकारी बैंकों से है, जो 1,000 करोड़ रुपये से अधिक और 10,000 करोड़ रुपये (टियर 3) या 10,000 करोड़ रुपये से अधिक (टियर 4) की जमा राशि वाले हैं।
इस तरह का वित्त प्रदान करने वाले बैंक को यह सुनिश्चित करना होगा कि उधारकर्ता निवेश या सट्टा उद्देश्यों के लिए सोना न खरीदें या न रखें। केंद्रीय बैंक ने उधारकर्ताओं को फायदा देने और ऋणदाताओं को अधिक लचीलापन देने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (अग्रिमों पर ब्याज दर) (संशोधन निर्देश) 2025 भी जारी किया है। मौजूदा मानदंडों के अनुसार, बैंकों को सभी परिवर्तनशील (फ्लोटिंग) दर वाले व्यक्तिगत या रिटेल लोनों (होम, गाड़ी) और सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम (एमएसएमई) को दी गई परिवर्तनशील दर वाले ऋणों को रेपा रेट जैसे बाह्य दरों से जोड़ना आवश्यक होगा। बैंक बाह्य रेपो रेट पर स्प्रेड का फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं, ऋण जोखिम ‘प्रीमियम’ के अलावा, स्प्रेड के सभी घटकों को तीन सालों में केवल एक बार ही बदला जा सकता है। अग्रिमों पर ब्याज दर पर संशोधित निर्देशों में कहा गया, ‘बैंक उधारकर्ता के लाभ के लिए अन्य प्रसार घटकों को तीन साल से पहले कम कर सकते हैं।’
इसके अलावा इसमें कहा गया कि बैंक अपने विवेकानुसार, पुनर्निर्धारण के समय निश्चित दर का स्विच करने का ऑप्शन दे सकते हैं। समान मासिक किस्तों (ईएमआई) आधारित पर्सनल लोनों के संबंध में वर्तमान मानदंडों के अनुसार, बैंकों को ब्याज दरों के पुनर्निर्धारण के समय उधारकर्ताओं को एक निश्चित दर का चयन करने के लिए एक अनिवार्य विकल्प प्रदान करना आवश्यक है। केंद्रीय बैंक ने विदेशों में विदेशी मुद्रा/रुपया मूल्यवर्गित बांड में मूल्यवर्गित सतत ऋण उपकरणों (पीडीआई) पर लागू मौजूदा पात्र सीमा को संशोधित करने से जुड़े निर्देश भी जारी किए। इससे बैंकों को विदेशी बाजारों के माध्यम से अपनी ‘टियर-1’ पूंजी बढ़ाने के लिए अधिक गुंजाइश मिलती है। ये सभी निर्देश 1 अक्टूबर 2025 से लागू होंगे।
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