पर्सनल फाइनेंस
4 min read | अपडेटेड June 06, 2025, 12:32 IST
सारांश
Impact on EMI after Repo Rate Cut: भारतीय रिजर्व बैंक की मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी ने फरवरी से अब तक रेपो रेट को 1% कम कर दिया है। जून की बैठक के बाद इसमें की गई 0.50% की कटौती के बाद घर और गाड़ी जैसे कर्ज लेने वालों को हर महीने कम EMI में बचत का फायदा मिल सकता है।
इस साल लगातार तीसरी बार भारतीय रिजर्व बैंक की मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी ने घटाया है रेपो रेट।
रेपो रेट वह ब्याज दर होती है जिस पर कमर्शल बैंकों को फंड्स की कमी पड़ने पर सेंट्रल बैंक (भारत में रिजर्व बैंक) ओवरनाइट कर्ज देता है। इसके लिए वह बैंक से कुछ सिक्यॉरिटीज भी लेता है। जब RBI रेपो रेट पर बैंकों को कर्ज देता है, तो इसी पैसे को आगे कर्जदारों को देते हुए बैंक भी ब्याज लगाते हैं।
रेपो रेट में कटौती से बैंकों के ग्राहकों पर लगाए जाने वाले ब्याज में भी कमी की संभावना होती है। खासकर जहां ब्याज दर फ्लोटिंग हो, यानी रेपो रेट जैसे एक्सटर्नल बेंचमार्क से जुड़ी हुई। ऐसा होने पर पर्सनल लोन जैसे घर कर्ज, कार लोन, MSME लोन पर लगने वाला ब्याज कम होता है और हर महीने जाने वाली EMI में भी गिरावट आती है।
उदाहरण के लिए अगर आपने 20 लाख का घर कर्ज लिया है जिस पर अभी 8.35% ब्याज लग रहा हो तो EMI 17,167 जा रही होगी। रेपो रेट कट के बाद अगर यह ब्याज दर 7.85% हो जाती है तो EMI 16,542 हो जाएगा। यानी हर महीने 7,500 की बचत।
इसी तरह अगर गाड़ी के लिए 7 लाख का लोन लिया है और ब्याज पड़ रहा है 9.1% तो EMI होगी 14,564। वहीं, रेपो रेट कट के बाद अगर ब्याज दर 8.6% पर आ जाती है तो EMI बनेगा 14,395 यानी हर महीने 2,028 की बचत।
फरवरी से लेकर अब तक रिजर्व बैंक कुल 1% की कटौती कर चुका है जिसका फायदा कई बैंकों ने अपने ग्राहकों को दिया है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि आमतौर पर बैंक ब्याज में कटौती का फायदा ऐसे ग्राहकों को देता है जिनका क्रेडिट स्कोर ज्यादा हो। इसके अलावा वेतनप्राप्त कर्मियों पर कम ब्याज दर लगाई जाती है जबकि स्वरोजगार और गैर-वेतनप्राप्त कर्मियों को
कुछ वक्त पहले ही रिजर्व बैंक ने मासिक किस्तों वाले निजी लोन (EMI based personal loan) को लेकर फ्लोटिंग इंटरेस्ट रेट और फिक्स्ड इंटरेस्ट रेट में स्विच करने का विकल्प देने को कहा था। केंद्रीय बैंक ने बैंकों और दूसरे लेंडर्स से कहा था कि स्विच करने की संख्या तय करके ग्राहकों को यह विकल्प देना चाहिए।
जब अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति दर ज्यादा होती है तो भारतीय रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाता है और बैंकों को कर्ज लेने के लिए ज्यादा ब्याज देना पड़ता है तो वे ग्राहकों के लिए भी ब्याज दर बढ़ा देते हैं। लोन महंगे होने से लोग कम कर्ज लेते हैं और ज्यादा ब्याज दर का फायदा उठाने के लिए बचत ज्यादा करते हैं। इससे अर्थव्यवस्था में पैसे की सप्लाई कम हो जाती है।
लोगों के हाथ में कम पैसे होने से खर्च भी कम होता है और चीजों और सेवाओं की मांग गिरती है। इससे चीजों के दाम भी नीचे आते हैं और मुद्रास्फीति दर नियंत्रित होती है। इससे उलट जब अर्थव्यवस्था में डिफ्लेशन होता है तो रेपो रेट को घटाया जाता है।
अप्रैल के महीने में मुद्रास्फीति दर नीचे आने के बाद से इस बात की उम्मीद की जा रही थी कि रिजर्व बैंक के पास रेपो रेट घटाने की गुंजाइश हो गई है। रिजर्व बैंक को सरकार ने महंगाई दर 2% कम-ज्यादा के स्कोप के साथ 4% पर (2-6%) रखने की जिम्मेदारी दी है। गवर्नर मल्होत्रा ने मॉनिटरी पॉलिसी रिपोर्ट जारी करते हुए साफ कर दिया कि अब और ज्यादा कटौती की संभावना कम है।
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