मार्केट न्यूज़
6 min read | अपडेटेड November 19, 2024, 12:26 IST
सारांश
इंडियन मार्केट में IPO (इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग) का क्रेज बढ़ता ही जा रहा है। आईपीओ कैसे लॉन्च किया जाता है, कंपनियों को अपना आईपीओ लॉन्च करने के लिए क्या करना चाहिए और किस तरह से मार्केट में इसे लॉन्च किया जाता है, किस तरह से आईपीओ की कीमत तय की जाती है, इस आर्टिकल में हम आपको ये सभी जानकारी देंगे।
मांग के आधार पर तय होती है शेयर्स की कीमत
कोई कंपनी जब IPO लॉन्च का फैसला लेती है, तो आईपीओ की कीमत तय करने के दो तरीके होते हैं, पहला होता है फिक्स्ड प्राइसिंग इश्यू और दूसरा तरीका है बुक बिल्डिंग। फिक्स्ड प्राइसिंग जारी करने में, आईपीओ में पब्लिक को बेचे जाने वाले शेयरों की कीमतें जारी करने वाली कंपनी द्वारा पहले से तय की जाती हैं।
हालांकि, दूसरे तरीके यानी कि बुक बिल्डिंग में चीजें अलग होती हैं। इस आर्टिकल में, हम सीखेंगे कि बुक-बिल्डिंग क्या है, इसका क्या प्रोसेस होता है, यह कितने तरीकों का होता है और इन दोनों तरीकों में अंतर क्या है।
अगर हम आम बोलचाल भाषा में इसे समझना चाहें, तो यह केवल उनकी मांग के आधार पर शेयरों की कीमत तय करने की स्ट्रैटजी है। शेयरों की कीमत मर्चेंट बैंक की मदद से तय की जाती है। जब कोई कंपनी इस मेथड के जरिए फंड जुटा रही होती है, तो पब्लिक के लिए शेयरों की कीमत अन्य इन्वेस्टरों की बोलियों का एनालिसिस करके तय की जाती है।
अन्य इन्वेस्टर्स विदेशी पोर्टफोलियो मैनेजर्स, क्वॉलिफाइड इन्स्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स जैसे और भी हो सकते हैं। इस पूरे काम के लिए एक अंडरराइटर को भी काम पर रखा जा सकता है। इस प्रोसेस को बुक बिल्डिंग कहने का जो सबसे बड़ा कारण है, वह यह है कि यहां अंडरराइटर इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स द्वारा कीमतों की बोली को देखने के बाद एक बुक बनाता है।
IPO की बिडिंग पूरी होने के बाद, मार्केट में मांग के आधार पर, वेटेड एवरेज मेथड की मदद से फाइनल कट-ऑफ रेट निर्धारित किया जाता है।
बुक बिल्डिंग प्रोसेस काफी सिंपल सरल है. इसमें पांच अहम स्टेप्स शामिल हैं। हम आपको उन पांच स्टेप्स को समझाते हैं-
इसलिए, जो इन्वेस्टर्स कट-ऑफ रेट से अधिक बोली लगाते हैं, उन्हें सरप्लस पैसा वापस कर दिया जाता है। वहीं, कट-ऑफ रेट से कम बोली लगाने वाले इन्वेस्टर्स को अमाउंट के अंतर को सेटेल करने के लिए कहा जाता है।
हालांकि बुक बिल्डिंग प्रोसेस के कई फायदे हैं, उनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं-
यह सिक्योरिटीज की कीमतें तय करने में मदद करता है और शेयरों के आंतरिक मूल्य का पता लगाने में मदद करता है।
इश्यू करने वाली कंपनी को अन्य लोगों के अलावा क्वॉलिटी इन्वेस्टर्स का सिलेक्ट करना होता है।
इस प्रोसेस का रिजल्ट यह है कि इसमें पैसा प्रिजर्व होता है क्योंकि मार्केटिंग और विज्ञापनों पर किए जाने वाला पैसा बचाया जाता है।
शेयरों की कीमत मार्केट में उसकी मांग को देखकर सही तरीके से तय की जा सकती है क्योंकि इसमें बिडिंग से जुड़ी जानकारी के बारे में आम लोगों को जानकारी देना शामिल है, इसलिए इसमें ट्रांसपेरेंसी ज्यादा है।
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