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  1. तारीख से लेकर टाइमिंग तक... बजट से जुड़ी वो 5 परंपराएं जो पिछले 10 सालों में बन गईं इतिहास

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तारीख से लेकर टाइमिंग तक... बजट से जुड़ी वो 5 परंपराएं जो पिछले 10 सालों में बन गईं इतिहास

विकास तिवारी

3 min read | अपडेटेड December 16, 2025, 16:05 IST

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सारांश

भारत के बजट इतिहास में पिछले कुछ सालों में बड़े बदलाव हुए हैं। मोदी सरकार ने अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही कई परंपराओं को खत्म कर दिया। अब न चमड़े का ब्रीफकेस दिखता है और न ही शाम को बजट पेश होता है। तारीख से लेकर स्वरूप तक, सब कुछ बदल गया है।

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पिछले 10 सालों में बजट पेश करने के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव आए हैं।

देश का आम बजट आने में अब कुछ ही समय बाकी है। हर साल की तरह इस बार भी वित्त मंत्री संसद में देश का लेखा-जोखा पेश करेंगी। लेकिन अगर आप पिछले एक दशक पर नजर डालें, तो पाएंगे कि बजट अब वैसा नहीं रहा जैसा पहले हुआ करता था। मोदी सरकार के कार्यकाल में बजट से जुड़ी कई सदियों पुरानी परंपराओं को तोड़ा गया और नए भारत की नई रीत शुरू की गई। अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे 'लकीर के फकीर' वाले नियमों को बदलकर बजट को भारतीय रंग-ढंग में ढाला गया है। आइए जानते हैं बजट की उन 5 बड़ी परंपराओं के बारे में जो अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी हैं।

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चमड़े के ब्रीफकेस की जगह लाल बहीखाता

सालों से हम टीवी पर देखते आ रहे थे कि वित्त मंत्री बजट वाले दिन एक चमड़े का ब्रीफकेस हाथ में लेकर संसद पहुंचते थे। मनमोहन सिंह से लेकर अरुण जेटली तक, सबने इसी परंपरा को निभाया। यह अंग्रेजों की निशानी थी। लेकिन साल 2019 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस रिवायत को हमेशा के लिए बदल दिया। उन्होंने चमड़े के बैग को छोड़कर लाल रंग के कपड़े में लिपटे 'बहीखाते' को अपनाया। इस पर भारत का राष्ट्रीय चिन्ह बना था, जो भारतीय संस्कृति और व्यापारियों की पुरानी परंपरा का प्रतीक है।

रेल बजट का आम बजट में विलय

आजादी से पहले साल 1924 से एक परंपरा चली आ रही थी कि रेल बजट और आम बजट अलग-अलग पेश होते थे। रेल मंत्री आम बजट से एक दिन पहले रेलवे का बजट पेश करते थे। लेकिन मोदी सरकार ने 2017 में इस 92 साल पुरानी परंपरा को खत्म कर दिया। सरकार ने विवेक ओबेरॉय समिति की सिफारिशों को मानते हुए रेल बजट को आम बजट में मिला दिया। अब वित्त मंत्री ही अपने भाषण के दौरान रेलवे के लिए भी घोषणाएं करती हैं और इसके लिए अलग से कोई दिन तय नहीं होता।

बजट की तारीख में बड़ा बदलाव

पहले देश का बजट फरवरी महीने की आखिरी तारीख यानी 28 या 29 फरवरी को पेश किया जाता था। लेकिन इससे नए वित्तीय वर्ष (1 अप्रैल) तक योजनाओं को लागू करने में देरी होती थी। इस प्रशासनिक दिक्कत को दूर करने के लिए साल 2017 में सरकार ने बजट की तारीख ही बदल दी। अब बजट फरवरी के आखिरी दिन नहीं, बल्कि पहली तारीख (1 फरवरी) को पेश किया जाता है। इससे मंत्रालयों को पैसा समय पर मिल जाता है।

कागज से डिजिटल हुआ बजट

कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को बदल दिया और भारतीय बजट भी इससे अछूता नहीं रहा। साल 2021 में इतिहास में पहली बार 'पेपरलेस बजट' पेश किया गया। पहले बजट के दस्तावेजों की छपाई के लिए ट्रक भरकर कागज आते थे और हलवा रस्म के बाद प्रिंटिंग प्रेस में लोग कैद हो जाते थे। लेकिन अब बजट डिजिटल हो गया है। 2021 और 2022 के बाद अब यह सिलसिला जारी है। अब सांसदों और आम जनता को 'यूनियन बजट मोबाइल ऐप' के जरिए बजट उपलब्ध कराया जाता है।

शाम की जगह सुबह 11 बजे का समय

हालांकि यह बदलाव थोड़ा पुराना है, लेकिन यह बजट के इतिहास का एक अहम हिस्सा है। साल 2000 तक भारत का बजट शाम को 5 बजे पेश होता था। इसके पीछे कारण यह था कि उस समय लंदन में सुबह होती थी और अंग्रेज चाहते थे कि वे भी इसे सुन सकें। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 2001 में गुलामी की इस निशानी को मिटा दिया। तब से लेकर आज तक बजट सुबह 11 बजे ही पेश किया जाता है।

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लेखकों के बारे में

विकास तिवारी
Vikash Tiwary is a finance journalist with 6+ years of newsroom experience. He is currently growing Upstox Hindi, crafting data-driven stories on stocks, personal finance, mutual funds, and global markets, while exploring how AI can simplify finance. His work spans Zee Business, TV9 Bharatvarsh, ABP News, India TV, and Inshorts. He also holds NISM certification.

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