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2 min read | अपडेटेड November 16, 2024, 15:24 IST
सारांश
जियो का कहना है कि मस्क की स्टारलिंक और ऐमजॉन की क्यूपर ये साफ कर चुके हैं कि वे पूरे देश में ऑपरेट करेंगे। इसलिए इनका स्पेक्ट्रम नीलामी के जरिए अलोकेट होना चाहिए ताकि भारतीय कंपनियां भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले सकें।
जियो को है घरेलू कंपनियों के हितों की चिंता
घरेलू टेलिकॉम प्लेयर्स का हवाला देते हुए रिलायंस जियो ने टेलिकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) से स्टारलिंक और क्यूपर को सैटलाइट स्पेक्ट्रम अवॉर्ड करने के फैसले पर दोबारा सोचने का आग्रह किया है। सैटलाइट स्पेक्ट्रम का ऐडमिनिस्ट्रेटिव अलोकेशन किया गया है जैसा इलॉन मस्क की स्टारलिंक ने मांगा था। रिलायंस इसके लिए नीलामी की उम्मीद में थी।
जियो का कहना है कि मस्क की स्टारलिंक और ऐमजॉन की क्यूपर ये साफ कर चुके हैं कि वे पूरे देश में ऑपरेट करेंगे। इसलिए इनका स्पेक्ट्रम नीलामी के जरिए अलोकेट होना चाहिए ताकि भारतीय कंपनियां भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले सकें।
विदेशी कंपनियां पहले ही इंटरनेशनल टेलिकम्यूनिकेशन यूनियन की प्रायॉरिटी लिस्ट में आगे रहती हैं और अपना सैटलाइट कॉन्स्टलेशन प्लान करती है। अगर स्पेक्ट्रम अलोकेशन के नियम साफ नहीं होंगे तो कोई भारतीय कंपनी अपना Non-geostationary orbit कॉन्स्टलेशन लॉन्च नहीं कर पाएगी।
जियो का कहना है कि स्टारलिंक और क्यूपर की बैंडविथ कपैसिटी ज्यादा है। दोनों की कुल कपैसिटी 29,092 मिलियन GB है जबकि जियो की वोडाफोन आइडिया और एयरटेल के साथ मिलाकर 23,012 मिलियन GB।
रॉयटर्स के मुताबिक रिलायंस ने स्पेक्ट्रम नीलामी में $23B खर्च किए हैं और 15B GB डेटा हर महीने दिया है। वहीं, स्टारलिंक 18 मिलियन GB उतने ही कस्टमर बेस को टारगेट करेगा। स्टारलिंक की कीमतों को लेकर भी घरेलू कंपनियां परेशान रहती हैं। कंपनी अमेरिका में हर महीने $210 लेती है जबकि केन्या में महज $10/ महीने।
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