बिजनेस न्यूज़
3 min read | अपडेटेड May 16, 2025, 13:05 IST
सारांश
Gaganyaan Mission के लिए चुने गए भारतीय ऐस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला के साथ अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) पर पहली बार दो भारतीय बायोटेक्नॉलजी एक्सपेरिमेंट भी जाएंगे। शुभांशु जून में Axiom मिशन के साथ ISS पर जाएंगे। इस दौरान माइक्रोग्रैविटी में माइक्रोऐल्गे और सायनोबैक्टीरिया से जुड़े एक्सपेरिमेंट किए जाएंगे। इसी के साथ भारत अंतरिक्ष में ह्यूमन मिशन के दौरान जरूरी हालात टेस्ट करेगा।
भारतीय ऐस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला अगले महीने पर ISS पहुंचेंगे जहां उनके साथ भारत के बायोटेक एक्सपेरिमेंट भी होंगे। (तस्वीर: Axiom/Shutterstock)
शुभांशु शुक्ला भारत की ओर से ‘गगनयान’ मिशन के लिए चुने गए 4 ऐस्ट्रोनॉट्स में से एक हैं। गगनयान मिशन के साल 2027 में लॉन्च होने की उम्मीद की जा रही है लेकिन शुंभाशु अगले महीने AXIOM-4 मिशन पर अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन जाएंगे। वह ISS पर कदम रखने वाले पहले भारतीय भी बनेंगे।
इस मिशन के दौरान भारत भी अपनी टेक्नॉलजी का टेस्ट करेगा। भारत की ओर से भेजा जा रहा एक्सपेरिमेंट स्पेस में इंसानी जीवन की संभावनों को परखेगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्वॉलजी (DBT) ने NASA के साथ में ये एक्सपेरिमेंट डिजाइन किए हैं।
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया है कि इनमें से एक एक्सपेरिमेंट में ISS पर खाने वाली माइक्रोऐल्गे पर माइक्रो ग्रैविटी और स्पेस रेडिएशन के असर को स्टडी करेगा। माइक्रोऐल्गे लंबे समय के स्पेस मिशन के दौरान पोषण का एक असरदार स्रोत है। इसमें प्रटीन, लिपिड और बायोऐक्टिव तत्व होते हैं जो शरीर की जरूरतों को पूरा करते हैं।
माइक्रोऐल्गे की लाइफ साइकल बहुत छोटी होती है और कुछ प्रजाकियां 26 घंटे में ही बढ़ जाते हैं जिससे कम समय में ज्यादा उत्पादन किया जा सकता है। ये फोटोसिंथेसिस में बहुत असरदार होते हैं जिससे ये कार्बन डायऑक्साइड को सोखते हुए ऑक्सिजन भी तेजी से बनाते हैं। स्पेसक्राफ्ट के अंदर इससे ऐस्ट्रोनॉट्स को काफी बेहतर हालात मिल सकेंगे।
इसके अलावा ISS पर सायनोबैक्टीरिया जैसे स्पाइरुलिना और साइनेकोकस की ग्रोथ को माइक्रोग्रैविटी में स्टडी किया जाएगा। इसमें यूरिया और नाइट्रेट आधारित मीडिया का इस्तेमाल होगा। स्पाइरुलिना में प्रोटीन और विटामिन भारी मात्रा में होता है जिसके चलते इसे सुपरफूड कहते हैं।
सिंह ने स्पेस ट्रैवल के लिए कार्बन और नाइट्रोजन को रीसाइकल करने की जरूरत पर जोर दिया। इन एक्सपेरिमेंट्स को नई दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय सेंटर फॉर जेनेटिक इंजिनियरिंग ऐंड बायोटेक्नॉलजी के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर तैयार किया गया है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मे शुभांशु शुक्ला साल 2006 में भारतीय वायुसेना की फाइटर विंग में शामिल हुए थे। पिछले साल मार्च में ही वह ग्रुप कैप्टन बने हैं। उनके पास 2000 घंटों से ज्यादा का फ्लाइट एक्सपीरियंस है।
गगनयान मिशन की ट्रेनिंग के लिए उन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation, ISRO) ने 2019 में चुना था। शुक्ला ने रूस के मॉस्को, स्टार सिक्टी में स्थित युरू गगरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में एक साल तक जीतोड़ ट्रेनिंग की है।
वहीं, गगनयान मिशन को साल 2027 के शुरुआती महीनों में ‘गगनयान’ को लॉन्च किए जाने का प्लान है। पहली बार भारत का एक स्पेसक्राफ्ट 4 ऐस्ट्रोनॉट्स- प्रशांत नायर, अंगद प्रताप, अजीत कृष्णन और शुभांशु शुक्ला- को तीन दिन के लिए धरती से 400 किमी ऊपर लेकर जाएगा।
गगनयान मिशन की ट्रेनिंग के लिए उन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation, ISRO) ने 2019 में चुना था। शुक्ला ने रूस के मॉस्को, स्टार सिक्टी में स्थित युरू गगरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में एक साल तक जीतोड़ ट्रेनिंग की है।
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