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World Wildlife Day: गिर सफारी पर PM ने बताया 'हर प्राणी जरूरी', समझें क्या है इकॉनमिक वैल्यू

Shatakshi Asthana

5 min read | अपडेटेड March 03, 2025, 15:59 IST

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सारांश

World Wildlife Day: हर साल 3 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस होता है। इसी दिन 1973 में CITES पर साइन किया गया था जो दुर्लभ पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं के संरक्षण के लिए बना था। भारत भी 1976 में इससे जुड़ा था। वन्यजीवों का महत्व इकॉलजी के साथ-साथ इकॉनमी के लिए भी गहरा है और इसलिए इनका संरक्षण वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी अहम है।

वन्यजीव दिवस पर गिर में सफारी पर निकले थे पीएम नरेंद्र मोदी। (तस्वीर: X, @narendramodi)

वन्यजीव दिवस पर गिर में सफारी पर निकले थे पीएम नरेंद्र मोदी। (तस्वीर: X, @narendramodi)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंतरराष्ट्रीय वन्यजीव दिवस (World Wildlife Day) के मौके पर गुजरात के गिर में सफारी पर निकल पड़े। सिर्फ यहीं रहता है एशियाटिक लायन। पीएम ने बताया कि इसकी संख्या में हाल के समय में इजाफा हुआ है और इसके लिए उन्होंने स्थानीय आदिवासी समुदायों और महिलाओं को श्रेय दिया।

अंतरराष्ट्रीय वन्यजीव दिवस हर साल 3 मार्च को होता है। संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली में 2013 में इस दिन को चुना गया था क्योंकि उसके 40 साल पहले इसी दिन CITES (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora) को साइन किया गया था।

CITES एक ऐसा कन्वेन्शन है जिसके तहत दुर्लभ और खतरे में पड़े हुए जंगली जानवरों और पौधों की अहमियत को समझते हुए इनके अवैध कारोबार पर नकेल कसने की कोशिशें की जाती हैं। भारत भी 1976 से इससे जुड़ा हुआ है।

पीएम मोदी ने X (अब ट्विटर) पर वन्यजीवों और बायोडायवर्सिटी के संरक्षण के प्रण को दोहराया और भारत के इस दिशा में उठाए कदमों पर गर्व जताया। पीएम ने कहा कि हर एक प्राणी अहम है और हमें आने वाली पीढ़ियों तक उनके भविष्य को सुनिश्चित करना है।

Asiatic lion

क्यों जरूरी है वन्यजीव संरक्षण, अर्थव्यवस्था से कैसे जुड़ा?

पेड़-पौधों से लेकर जंगली जानवरों तक, मछलियों से लेकर मूंगे की चट्टानों तक, वन्यजीव संरक्षण एक विस्तृत कोशिश है। अकेले दवाइयों की बात करें तो एक तिहाई फार्मासूटिकल संसाधन पौधों से ही आते हैं। इनसे न सिर्फ एक इंडस्ट्री को मजबूती मिलती है बल्कि लोगों की अच्छी सेहत उन्हें वर्कफोर्स के लिए भी प्रोडक्टिव बनाकर रखती है।

इन पौधों से मलेरिया जैसी बीमारियों की दवाइयां तो आती ही हैं, ये छोटे-छोटे कीड़ों से लेकर विशाल जानवरों तक को ठिकाना भी देते हैं। जंगलों की घास की ऊंचाई, पत्ते की चौड़ाई वहां रहने वाले जानवरों की सेहत और सुरक्षा दोनों के लिए अहम होते हैं।

ऐसे ही जानवरों का ठिकाना हैं अफ्रीकी देश। पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका के देश दुनियाभर में ‘बिग-5’ के लिए मशहूर हैं- अफ्रीकी हाथी, केप बफलो, तेंदुआ, शेर और राइनॉसरस।

संयुक्त राष्ट्र विश्व व्यापार संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक अफ्रीका के 14 देशों में $14 करोड़ डॉलर सिर्फ सुरक्षित इलाकों में एंट्री फी के तौर पर ही कलेक्ट हो जाते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक विश्व पर्यटन का 7% हिस्सा अकेले वन्यजीव पर्यटन से आता है और यह सालाना 3% की दर से बढ़ रहा है।

African wildlife

वन्यजीव पर्यटन देश की अर्थव्यवस्था के लिए तो अहम है ही, स्थानीय समुदाय भी इस पर निर्भर करते हैं। केन्या के मसाई मारा कैंप किचवा तेंबो में सालाना $80 लाख के करीब कमाई होती है जिसमें से $15 लाख सीधे स्थानीय समुदायों को लीज फी, सैलरी और स्थानीय उत्पादों की बिक्री पर मिलते हैं।

वाइल्डलाइफ को खतरे से वित्तीय संकट कैसे?

दुनिया की आधी जीडीपी प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है। यानी इसे कोई खतरा पैदा होने पर एक बड़ा वित्तीय संकट भी पैदा हो सकता है। उदाहरण के लिए मत्स्यपालन कई देशों की जीडीपी का 10% तक का हिस्सा है।

ऐसे में मछलियों को जरूरत से ज्यादा पकड़ने पर, प्रदूषण के चलते पानी में संक्रमण, समुद्र का तापमान बढ़ने या बॉटम ट्रॉलर जैसी तकनीकों के इस्तेमाल से ना सिर्फ मछलियों की आबादी और विविधता, बल्कि इन देशों की अर्थव्यवस्था पर भी संकट पैदा होगा।

वन्यजीवों को प्राकृतिक और मानव-निर्मित कई जोखिम झेलने पड़ रहे हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण जलवायु परिवर्तन होने से पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं, सभी की लाइफसाइकल पर नकारत्मक असर पड़ता है। मछलियों के आर्कटिक क्षेत्र की ओर बढ़ने में इसके संकेत दिखते हैं।

इसी तरह पानी के प्रदूषित होने पर मूंगे की चट्टानों की ब्लीचिंग होती है और ये मरने लगती हैं जो ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ में देखा गया। जंगलों में कभी आग लगने से तो कभी बेलगाम कटाई होने से भी इनके घर उजड़ जाते हैं।

एक बड़ा खतरा शिकारियों और अवैध कारोबार का रहता है। इनकी काल, दांत, हड्डियों का कारोबार $20 अरब से ज्यादा का है। करीब 7000 हजार ऐसी प्रजातियां ऐसी हैं जिनका अवैध कारोबार होता है।

दुनिया के साथ जुटा है भारत

ऐसे ही खतरों को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर CITES जैसे कार्यक्रम पुरजोर कोशिशों में लगे हैं। संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals, SDG) 15.7 के तहत वन्यजीवों को शिकार से बचाना एक हिस्सा है।

कनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क के तहत तय किए गए ‘30 बाई 30’ के अंदर भी साल 2030 तक 30% जल और जमीन को बचाने में वहां रहने वाले जीवन को बचाना अभिन्न अंग माना गया है।

इस मामले में भारत भी शुरुआत से ही आगे रहा है। वन्यजीव संरक्षण कानून साल 1972 में ही आ गया था जब वैश्विक स्तर पर पर्यावरण के महत्व पर चर्चा ही चल रही थी। इसे CITES से जोड़ा भी गया है और वन्यजीवों को नुकसान होने पर कड़े ऐक्शन का प्रावधान भी है।

भारत ने भी 30X30 टारगेट अपनाया है और देश का 27% हिस्सा संरक्षण के अंदर आ भी चुका है। स्थानीय समुदायों को साथ लेकर चलने और कानून का कड़ाई से पालन करके इसे आसानी से हासिल भी किया जा सकेगा।

लेखकों के बारे में

Shatakshi Asthana
Shatakshi Asthana बिजनेस, एन्वायरन्मेंट और साइंस जर्नलिस्ट हैं। इंटरनैशनल अफेयर्स में भी रुचि रखती हैं। मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से लाइफ साइंसेज और दिल्ली के IIMC से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद अब वह जिंदगी के हर पहलू को इन्हीं नजरियों से देखती हैं।

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