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4 min read | अपडेटेड September 18, 2025, 17:44 IST
सारांश
China Auto Industry: चीन और भारत के बीच कारों की कीमतों का अंतर चौंकाने वाला है। भारत की तुलना में चीन में गाड़ियों की कीमत लगभग आधी हो चुकी है। इस स्टोरी में हमने बताया है कि आखिर चीन की ऑटो इंडस्ट्री में ऐसा क्या हो रहा है, जिसके चलते वहां गाड़ियां बेहद सस्ती हो गई है।
China Auto Industry: चीन और भारत के बीच कारों की कीमतों का अंतर चौंकाने वाला है।
जी हां, चीन और भारत के बीच कारों की कीमतों का अंतर चौंकाने वाला है। भारत की तुलना में चीन में गाड़ियों की कीमत लगभग आधी हो चुकी है। इस स्टोरी में हमने बताया है कि आखिर चीन की ऑटो इंडस्ट्री में ऐसा क्या हो रहा है, जिसके चलते वहां गाड़ियां बेहद सस्ती हो गई है।
दरअसल, रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक चीन के चेंगदू शहर के एक मॉल में बने शोरूम में लोगों को गाड़ियों पर हैरतअंगेज ऑफर मिल रहे हैं। यहां पर 5000 से ज्यादा गाड़ियां उपलब्ध हैं। ये ऑफर देने वाली कंपनी Zcar है, जो डीलरशिप और कंपनियों से गाड़ियां bulk में खरीदकर बेचती है।
ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि चीन में गाड़ियों की ओवरसप्लाई हो चुकी है। सरकार ने सालों तक ऑटो इंडस्ट्री को सब्सिडी दी और कंपनियों को प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया। इसका नतीजा यह हुआ कि आज चीन दुनिया का EV लीडर तो बन गया है, लेकिन गाड़ियों की संख्या खरीदारों से कहीं ज्यादा है।
चीन की ज्यादातर ऑटो कंपनियों के लिए प्रॉफिट कमाना मुश्किल हो गया है। चीन में इलेक्ट्रिक गाड़ियां 10,000 डॉलर (8 लाख रुपये) से भी कम कीमत पर शुरू हो जाती हैं। वहीं, अमेरिका में एंट्री-लेवल EVs 35,000 डॉलर (करीब 29 लाख रुपये) से ऊपर होती हैं। डीलरशिप्स की हालत भी खराब है। उनकी पार्किंग में गाड़ियां खड़ी-खड़ी जाम हो गई हैं। मजबूरी में वे गाड़ियों को नुकसान पर बेच रहे हैं।
बेची न जा सकी गाड़ियां ग्रे-मार्केट ट्रेडर्स जैसे Zcar को बेच दी जाती हैं। कुछ गाड़ियां सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर “फायर सेल” में निकल जाती हैं। कई कारों को “यूज्ड” टैग लगाकर विदेश भेजा जाता है, जबकि उनकी ओडोमीटर रीडिंग “0” रहती है। कुछ गाड़ियां तो सीधा कार ग्रेवयार्ड में छोड़ दी जाती हैं, जहां वे घास-फूस में सड़ती रहती हैं।
चीन में यह संकट सरकार की नीतियों की वजह से खड़ा हुआ है। वहां स्थानीय सरकारें ऑटो कंपनियों को सस्ती जमीन और सब्सिडी देती हैं, बदले में कंपनियों से प्रोडक्शन और टैक्स-रेवेन्यू का वादा लेती हैं। हर प्रांत चाहता है कि उसकी इमेज “ऑटो हब” के तौर पर बने, इसलिए वहां हर जगह कार फैक्ट्री लगाने की होड़ मच गई।
ऑटो सेक्टर और उससे जुड़ी इंडस्ट्री चीन की GDP का लगभग 10% हिस्सा हैं। अगर ये संकट गहराता है, तो इसका असर पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। 2009 में चीन ने EVs को बढ़ावा देने के लिए बड़ी सब्सिडी दी थी। 2017 में सरकार ने एक नया ब्लूप्रिंट बनाया जिसमें 2025 तक 35 मिलियन गाड़ियां बनाने का लक्ष्य रखा गया। इसने ऑटो सेक्टर को बूस्ट दिया। लोकल सरकारें कंपनियों को लुभाने लगीं।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि चीन की ऑटो इंडस्ट्री अब कंसॉलिडेशन की ओर जाएगी। अभी चीन में 129 EV और हाइब्रिड ब्रांड हैं, लेकिन 2030 तक सिर्फ 15 ही बच पाएंगे। कुछ कंपनियां पहले ही बंद होने लगी हैं। EV ब्रांड Neta ने हाल ही में कामकाज बंद कर दिया। Ji Yue Auto (Baidu और Geely की कंपनी) ने भी बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छंटनी की।
यह संकट सिर्फ लोकल कंपनियों को नहीं, बल्कि विदेशी कंपनियों को भी प्रभावित कर रहा है। 2020 में जहां चीन में विदेशी कंपनियों की हिस्सेदारी 62% थी, वहीं अब यह घटकर 31% रह गई है। यूरोप और अमेरिका पहले से ही चीन की सस्ती गाड़ियों के आयात से डरे हुए हैं। अमेरिका ने तो सुरक्षा और अनुचित प्रतिस्पर्धा का हवाला देकर चीनी गाड़ियों पर लगभग पूरी तरह बैन लगा रखा है।
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