return to news
  1. Rare Earth: चीन पर क्यों निर्भर भारत? देश में कहां-कितने रिजर्व? क्या है क्रिटिकल मिनरल मिशन? डीटेल में समझिए

बिजनेस न्यूज़

Rare Earth: चीन पर क्यों निर्भर भारत? देश में कहां-कितने रिजर्व? क्या है क्रिटिकल मिनरल मिशन? डीटेल में समझिए

Shatakshi Asthana

4 min read | अपडेटेड June 05, 2025, 17:00 IST

Twitter Page
Linkedin Page
Whatsapp Page

सारांश

REE Ban by China: चीन के रेयर अर्थ मिनरल्स पर लगाए गए प्रतिबंध से भारतीय उद्योगों पर भी असर की संभावना है। रेयर अर्थ मिनरल्स अडवांस्ड टेक्नॉलजी के लिए बेहद अहम हैं। चीन का इनके उत्पादन पर दबदबा रहा है और भारत उससे आयात पर निर्भरता को कम करने की कोशिश में है। इसके लिए नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन इस साल लॉन्च किया जा चुका है।

Rare Earth Elements इलेक्ट्रिक गाड़ियों, होम अप्लायंस से लेकर सुरक्षा उपकरण तैयार करने तक में काम आते हैं।

Rare Earth Elements इलेक्ट्रिक गाड़ियों, होम अप्लायंस से लेकर सुरक्षा उपकरण तैयार करने तक में काम आते हैं।

Rare Earth Elements: वैश्विक अर्थव्यवस्था को क्लीन एनर्जी और ग्रीन टेक्नॉलजी पर आधारित आकार देने में रेयर अर्थ मिनरल्स (Rare earth minerals) की बड़ी भूमिका है। 17 एलिमेंट्स के इस समूह को टेलिफोन से लेकर टर्बाइन तक और इलेक्ट्रिक गाड़ियों से लेकर सैन्य उपकरणों में इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में इनकी अहमियत व्यापार के लिए काफी ज्यादा है।

इस ग्रुप में शामिल सेरियम का इस्तेमाल कार एग्जॉस्ट सिस्टम्स के कैटेलिटिक कन्वर्टर्स में किया जाता है और गैसोलीन में मिलाया जाता, वहीं डिस्क ड्राइव और लाउडस्पीकर्स के सुपर मैग्नेट्स में जायस्पोरियम और नियोडायमियम का इस्तेमाल होता है। हाइब्रिड गाड़ियों की बैटरी और यहां तक कि फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए उर्वरक तक में इनका इस्तेमाल होता है।

तस्वीरों में देखें: क्या हैं रेयर अर्थ मिनरल्स?

रेयर अर्थ मिनरल्स धरती पर दुर्लभ नहीं हैं लेकिन इनका उत्पादन आर्थिक दृष्टि से ज्यादा फायदेमंद नहीं होता क्योंकि जहां ये पाए जाते हैं, उन खदानों से इन्हें अलग करने की कीमत इन्हें बेचने पर होने वाली कमाई से ज्यादा होती है। यहां बाजी मार ले जाता रहा है चीन जिसकी लंबे वक्त से इनके व्यापार पर मोनॉपली रही है।

दशकों से चीन का दबदबा

चीन की पर्ल नदी, जूलॉन्ग नदी, ल्याओहे नदी से लेकर पोयांग झील और डॉन्गटिंग झील तक में ये पाए जाते हैं। साल 2011 तक चीन रेयर अर्थ का 90% उत्पादन अकेले करता था। हालांकि, 2022 तक यह हिस्सेदारी 62.9% पर आ गई थी। चीन के बाद अमेरिका, म्यामां और ऑस्ट्रेलिया इनके उत्पादन में आगे हैं।

हाल ही में चीन ने फैसला किया कि वह अपने रेयर अर्थ एक्सपोर्ट पर कुछ प्रतिबंध लगाएगा तो इसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर का जवाब माना गया। हालांकि, चीन के ऐलान से अमेरिका ही नहीं, भारत समेत कई देशों की इंडस्ट्रीज में खलबली मच गई है। रेयर अर्थ मैग्नेट (REM) ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस, सेमीकंडक्टर, होम अप्लायंस जैसे उद्योगों के लिए बहुत अहम हैं और इनकी करीब 92% ग्लोबल सप्लाई चीन से होती है।

भारत पर क्या असर?

बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में EV ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चर्रस के पास 6 से 8 हफ्तों की REM सप्लाई बची है, वहीं CNBC-TV18 को टीवीएस मोटर के मैनेजिंग डायरेक्टर सुदर्शन वेणू ने बताया है कि चीन के प्रतिबंधों का असर जून या जुलाई के उत्पादन में देखने को मिल सकता है। अगर ऐसा होता है तो भारतीय EV उत्पादकों के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है।

भारत में कितने रिजर्व?

कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा समेत कई राज्यों में मौजूदगी के बल पर भारत के पास यूं तो दुनिया के रेयर अर्थ मेटल्स रिजर्व का ⅕ हिस्सा मौजूद है लेकिन इनका उत्पादन बेहद कम है। हमारे पास बड़े स्तर पर डाउनस्ट्रीम मैग्नेट कॉम्पोनेंट बनाने का इन्फ्रास्ट्रक्चर भी नहीं है। ऐसे में तेजी से बढ़ते भारत के EV उत्पादन को झटका लग सकता है।

भारत में REE के रिजर्व खोजने में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को हाल के सालों में कुछ सफलता मिलती है। FY22 और FY23 में GSI ने राजस्थान के भीलवाड़ा में नियोडायमियम समेत REEs के लिए सर्वे कया। वहीं, राजस्थान के ही बालोतरा से डिपार्टमेंट ऑफ अटॉमिक एनर्जी ने 1.11 लाख टन रेयर अर्थ एलिमेंट्स ऑक्साइड की खोज की है।

चीन से आयात पर निर्भर

रेयर अर्थ एलिमेंट्स के आयात के आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2019-20 में हम 1448 टन REE का आयात कर रहे थे जो 2023-24 तक 2270 टन पर पहुंच गया। FY24 में सबसे ज्यादा आयात चीन से किया गया जबकि हॉन्ग-कॉन्ग, जापान, मंगोलिया, यूके, कोरिया, अमेरिका और फ्रांस भी बड़े सप्लायर रहे।

देश में कितना उत्पादन?

भारत में 1963 से अटॉमिक एनर्जी विभाग के तहत रेयर अर्थ के उत्पादन का जिम्मा 1950 में बने IREL (India) को मिला है। इसका हेडक्वॉर्टर मुंबई में है। इसकी सालाना क्षमता 6 लाख टन की है। यह इल्मेनाइट, र्यूटाइल, जिरकॉन, सिलिमैनाइट और गार्नेट जैसे अहम मिनरल्स का उत्पादन करता है। इसका एक प्लांट ओडिशा में और रिफाइनिंग यूनिट केरल में है।

क्या है क्रिटिकल मिनरल मिशन?

इसी साल सरकार ने नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (National Critical Mineral Mission) लॉन्च किया है जो इन जरूरी मिनरल्स में आत्मनिर्भरता हासिल करने की ओर लक्षित है। इसके तहत GSI को FY25-FY31 तक 1200 एक्स्पलोरेशन प्रॉजेक्ट्स का टारगेट दिया गया है।

NCMM के तहत देश और विदेश में क्रिटिकल मिनरल्स ऐसेट्स को हासिल करने, वैल्यू चेन को मजबूत करने के लिए कौशल विकास, मिनरल प्रोसेसिंग पार्क, पेटेंट को बढ़ावा देने की कोशिश की जाएगी।

इस मिशन के 7 अहम हिस्से हैं-
  1. घरेलू उत्पादन को बढ़ाना
  2. विदेश में मिनरल ऐसेट्स हासिल करना
  3. क्रिटिकल मिनरल्स की रीसाइकलिंग
  4. इने व्यापार और बाजार को बढ़ावा
  5. वैज्ञानिक शोध और तकनीकी विकास
  6. मानव संसाधन का विकास
  7. फंडिंग और वित्तीय प्रोत्साहन बढ़ाना
मार्केट में हलचल?
स्मार्ट टूल्स के साथ आगे बढ़ें
promotion image

लेखकों के बारे में

Shatakshi Asthana
Shatakshi Asthana बिजनेस, एन्वायरन्मेंट और साइंस जर्नलिस्ट हैं। इंटरनैशनल अफेयर्स में भी रुचि रखती हैं। मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से लाइफ साइंसेज और दिल्ली के IIMC से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद अब वह जिंदगी के हर पहलू को इन्हीं नजरियों से देखती हैं।

अगला लेख