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भारत ने स्पेस रेस में खुद को एक ऐसे प्लेयर के तौर पर स्थापित किया है जो किफायती टेक्नॉलजी के दम पर आगे निकल रहा है।
हमारे चंद्रयान-3 मिशन ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग कर भारत को ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश बनाया।
हम सूरज से निकलने वाली फ्लेयर्स को स्टडी करने के लिए अपना आदित्य L1 मिशन पहले ही लॉन्च कर चुके हैं।
अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान सगंठन (ISRO) का लक्ष्य पहली बार भारतीयों को अंतरिक्ष में भेजने का है।
स्पेस रेस में आगे निकलते हुए हम सिर्फ इसी मील के पत्थर को नहीं पार करेंगे। यहां एक नजर डालते हैं अगले 15 साल के दौरान भारत के स्पेस मिशन्स पर…
साल 2027 तक भारत 4 ऐस्ट्रोनॉट्स को पृथ्वी से 400 किमी ऊपर अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी के आखिरी चरण में है।
LVM3 रॉकेट ‘गगनयान’ में इस क्रू को धरती की निचली कक्षा में लॉन्च करेगा जहां 3 दिन तक माइक्रोग्रैविटी में ये ऐस्ट्रोनॉट एक्सपेरिमेंट करेंगे।
चांद पर सफल लैंडिंग के बाद अब टेस्ट की जाएगी वहां से धरती पर वापसी के लिए जरूरी टेक्नॉलजी।
साल 2027 में लॉन्च होने वाला ये मिशन चांद की सतह से सैंपल कलेक्ट करेगा और पहले ह्यूमन मिशन के लिए जरूरी लैंडिंग, डॉकिंग, लॉन्च जैसी टेक्नॉलजी को टेस्ट करेगा।
मंगल का चक्कर काटने और चांद पर लैंडिंग के बाद हमारा अगला लक्ष्य होगा शुक्र ग्रह यानी वीनस जो धरती का सबसे करीबी ग्रह है।
साल 2028 में लॉन्च होने वाला ये एक ऑर्बिटर मिशन होगा जो सूरज के असर से धरती के ‘सिस्टर प्लैनेट’ पर पड़ने वाले असर को स्टडी करेगा।
साल 2035 तक भारत अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन लॉन्च करने की तैयारी में जुटा है। इसका पहला मॉड्यूल साल 2028 तक लॉन्च कर दिया जाएगा।
भारत का ये अंतरिक्ष स्टेशन धरती से 400 किमी ऊपर स्थित होगा जिसे ऐस्ट्रोनॉट्स के 3-6 महीने तक रुकने के लिए तैयार किया जाएगा।
भारत का सबसे महत्वाकांक्षी लक्ष्य है साल 2040 तक पहले भारतीयों को चांद पर उतारने का जिसकी नींव रखेंगे ‘गगनयान’ और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन।
उम्मीद की जा रही है कि यह मिशन खुद साल 2050 तक चांद पर भारत के एक पर्मानेंट बेस का पहला कदम होगा।
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