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क्लासिकल फिजिक्स ब्रह्मांड के उन नियमों के बारे में बताती है जिन्हें हम ऑब्जर्व कर सकते हैं।
ऐटम और सब-अटॉमिक लेवल पर मैटर और एनर्जी कैसे काम करती है, ये बताती है क्वॉन्टम फिजिक्स।
23 अप्रैल 1858 को जन्मे फिजिसिस्ट मैक प्लांक को क्वॉन्टम फिजिक्स का जनक कहा जाता है।
साल 1918 का नोबेल प्राइज पाने वाले प्लांक ने बताया था कि कैसे एनर्जी छोटे-छोटे पैकेट्स में ट्रैवल करती है।
प्लांक की थिअरी को ऐल्बर्ट आइंस्टाइन से लेकर जॉन स्टीवर्ट बेल ने आगे पहुंचाया और अब ये टेक्नॉलजी अहम का हिस्सा है।
यहां देखते हैं कि आज क्वॉन्टम फिजिक्स का इस्तेमाल कैसे किया जाता है...
एक ही वक्त पर अलग-अलग पोजिशन पर रहने वाली क्वॉन्टम बिट्स या क्यूबिट्स के इस्तेमाल से ये जटिल प्रॉब्लम्स तेजी और सटीकता के साथ सॉल्व करते हैं।
डेटा क्रिप्टोग्राफी में इस्तेमाल होने वाली ‘की’ या कोड की जगह ‘क्वॉन्टम की’ ज्यादा सुरक्षित होती है। ये फोटॉन के जरिए शेयर होती है, इसलिए आसानी से चुराई नहीं जा सकती।
मेडिकल डायग्नोसिस के लिए हाई रेजॉलूशन वाली इमेज तैयार करने में हाइड्रोजन ऐटम की क्वॉन्टम-मकैनिकल प्रॉपर्टीज का इस्तेमाल होता है।
दुनिया की सबसे सटीक अटॉमिक घड़ियां रेडिएशन की एक खास फ्रीक्वेंसी को मॉनिटर करती हैं जहां इलेक्ट्रॉन्स एनर्जी लेवल्स के बीच में ट्रांसफर होते हैं।
फ्लोरसेंट बल्ब के अंदर मौजूद मरकरी जब प्लाज्मा की स्टेट में पहुंचता है तो विजिबल लाइट स्पेक्ट्रम में आने वाली लाइट एमिट करता है जो हमें वाइट लाइट की तरह नजर आता है।
इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप रोशनी की जगह इलेक्ट्रॉन्स का इस्तेमाल करते हैं जिनका रेजॉलूशन कहीं ज्यादा सटीक होता है।
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