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सुकरात का मानना था कि खुशहाल जीवन और समाज के लिए धन से ज्यादा जरूरी है-सद्गुण, ज्ञान और संयम।
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सुकरात ने कहा कि एक समाज तभी समृद्ध बन सकता है जब उसके लोग न्यायप्रिय, समझदार और साहसी हों। लोगों के आचरण से समाज बेहतर बनता है।
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सुकरात ने समझाया कि इंसान को अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए। ज्यादा चाहत से असंतोष बढ़ता है और समाज में असमानता आती है।
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सुकरात के अनुसार असली अमीरी यह है कि इंसान कम में खुश रहे। जिसके पास बहुत कुछ है लेकिन संतोष नहीं, वह गरीब है। जो थोड़े में खुश है, वही अमीर है।
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सुकरात ने उन शिक्षकों की निंदा की जो पैसे के लिए ज्ञान बेचते थे। उन्होंने कहा कि असली ज्ञान बिक नहीं सकता। ज्ञान का उद्देश्य पैसा कमाना नहीं है।
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सुकरात के विचारों ने प्लेटो और अरस्तू जैसे दार्शनिकों को गहरा प्रभावित किया, जिन्होंने समाज और न्याय पर विचारों को आगे बढ़ाया।
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सुकरात ने सिखाया कि जीवन में धन से ज्यादा जरूरी है नैतिकता, आत्म-ज्ञान और संयम। यही सच्ची खुशी का रास्ता है।
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