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पैसे को लेकर अरस्तू के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। सिर्फ पैसे कमाना ही काफी नहीं, बल्कि उनका सही तरीके से इस्तेमाल भी जरूरी है।
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अरस्तू के अनुसार पैसा केवल एक साधन है, जीवन का उद्देश्य नहीं। पैसा होना जरूरी है, लेकिन खुशी और अच्छाई उससे कहीं ऊपर हैं।
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अरस्तू ने लोगों के वित्तीय व्यवहार को चार वर्गों में बांटा है- कंजूस, फिजूलखर्च, उदार और भव्य (magnificent)।
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जो लोग पैसा जमा करते हैं पर जरूरतमंदों की मदद नहीं करते, वे कंजूस होते हैं। ऐसे लोग धन को जरूरत से ज्यादा महत्व देते हैं।
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बिना सोचे खर्च करने वाले, जैसे कम कमाई पर भी जुआ खेलने वाले लोग, फिजूलखर्च कहे जाते हैं। ये अपनी बचत नहीं कर पाते।
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उदार लोग सोच-समझकर पैसा खर्च करते हैं। वे न जरूरत से ज्यादा उड़ाते हैं, न कंजूसी करते हैं। दूसरों की भलाई में खुशी पाते हैं।
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उदार बनने के लिए अमीर होना जरूरी नहीं। कमाने वाला भी अगर सोच-समझकर खर्च करे तो वह भी उदार कहलाता है।
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अरस्तू के अनुसार बहुत अमीर लोग समाज के लिए बड़े पैमाने पर खर्च करके महान कहलाते हैं, जैसे आज के दानदाता और समाजसेवी।
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अरस्तू का मानना है कि धन जीवन के लिए है, जीवन धन के लिए नहीं। पैसे का सही उपयोग ही असली समृद्धि है।
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