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1994 में गठित, 1997 में लागू। इसने सरकारी कर्मचारियों की सैलरी, ढांचे और कल्याण योजनाओं को लेकर अहम सिफारिशें दी थीं।
5वें वेतन आयोग के अध्यक्ष थे न्यायमूर्ति एस. रत्नवेल पांडियन। आयोग का मुख्य फोकस था: सैलरी सुधार और प्रशासन में आधुनिकता।
5वां वेतन आयोग 1 जनवरी 1996 से प्रभावी माना गया और इसकी सिफारिशें 1997 में लागू की गईं।
न्यूनतम वेतन 240% और अधिकतम वेतन 225% बढ़ा। पहले ₹750 था, जो बढ़कर ₹2550 हुआ। अधिकतम वेतन ₹8000 से बढ़कर ₹26000 हो गया।
यह अनुपात दिखाता है उच्चतम और न्यूनतम वेतन का अंतर। 5वें वेतन आयोग में यह घटकर 10.2 रह गया।
आयोग ने कल्याण योजनाओं पर जोर दिया। इसमें सरकारी कर्मचारियों की संख्या में कमी करने की सिफारिश भी की गई।
महंगाई भत्ते (DA) का 50% हिस्सा बेसिक वेतन में जोड़ने की सलाह दी गई। सरकारी कार्यालयों के आधुनिकीकरण पर भी फोकस किया गया।
हालांकि सैलरी बढ़ी, पर इससे सरकार का खर्च भी बढ़ा। फिर भी कर्मचारियों की संतुष्टि और काम की गुणवत्ता में सुधार हुआ।
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