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सरकार ने जून 1983 में पी.एन. सिंघल की अध्यक्षता में चौथा वेतन आयोग गठित किया, ताकि सरकारी कर्मचारियों के वेतन की समीक्षा हो सके।
इस आयोग ने अपनी सिफारिशें चार साल में तीन चरणों में दीं, जिनका मकसद वेतन में सुधार और पारदर्शिता लाना था। इससे केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन ढांचे में बड़ा बदलाव आया।
इस आयोग ने न्यूनतम वेतन ₹750 प्रतिमाह तय किया और अधिकतम वेतन ₹8000 रखा, जिससे वेतन का अंतर काफी कम हुआ।
न्यूनतम वेतन तीसरे आयोग के ₹196 से ₹750 हो गया। यानी इसमें 283% की भारी बढ़ोतरी हुई। अधिकतम वेतन ₹3500 से ₹8000 हुआ।
यह पहला मौका था जब सरकारी वेतन ढांचे में व्यापक और सुनियोजित सुधार किया गया, जिससे सभी स्तरों पर समानता बढ़ी।
आवास भत्ता (HRA) और यात्रा भत्ता (TA) बढ़ाने की भी सिफारिश की गई, जिससे कर्मचारियों को आर्थिक मदद मिली।
इस आयोग ने पहली बार प्रदर्शन के आधार पर वेतन (Performance-linked Pay) की व्यवस्था का सुझाव दिया।
कंप्रेशन रेशियो 10.7 रहा, यानी सचिव को मिलने वाला वेतन सबसे निचले कर्मचारी के वेतन से 10.7 गुना था।
हालांकि इससे वेतन में सुधार हुआ, लेकिन इसे लागू करने में देरी हुई, जिस पर कर्मचारियों और विशेषज्ञों ने नाराज़गी जताई।
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