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दूसरा वेतन आयोग अगस्त 1957 में गठित हुआ था। इसे भारत सरकार के कर्मचारियों के वेतन और लाभ में सुधार करने के लिए स्थापित किया गया था।
आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति जगन्नाथ दास थे। उन्होंने दो साल बाद 1959 में अपनी रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत की।
आयोग ने कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन ₹80 प्रति माह तय किया। इसमें ₹70 मूल वेतन और ₹10 महंगाई भत्ता शामिल था।
केंद्रीय सचिव का अधिकतम वेतन ₹3000 प्रति माह रखा गया। इससे उच्च पदों के कर्मचारियों के वेतन में भी संतुलन आया।
आयोग ने महंगाई भत्ते का 50% हिस्सा मूल वेतन में मिला दिया, जिससे कर्मचारियों को बढ़ी हुई महंगाई से राहत मिली।
आयोग ने वेतन में समानता की सिफारिश की और परिवार भत्ता व पेंशन जैसे लाभों को भी शामिल किया। इससे कर्मचारियों को आर्थिक सुरक्षा मिली।
इन सिफारिशों को लागू करने से सरकार पर ₹39.6 करोड़ का वित्तीय बोझ पड़ा, लेकिन कर्मचारियों की स्थिति में सुधार हुआ।
दूसरे वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद, 1960 में राघुरमैया समिति बनाई गई, जो सशस्त्र बलों के वेतन की समीक्षा करती थी।
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