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अब तक 7 वेतन आयोग आ चुके हैं, पहला 1946 में और सातवां 2014 में। 8वें वेतन आयोग को सरकार की मंजूरी मिल गई है। आइए जानते हैं पहले वेतन आयोग के बारे में।
जनवरी 1946 में भारत सरकार ने पहला वेतन आयोग बनाया। इसका काम था सरकारी कर्मचारियों की सैलरी और सुविधाओं की समीक्षा करना।
इस आयोग के अध्यक्ष थे श्रीनिवास वरदाचारियार। उन्होंने मई 1947 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी।
इस आयोग का मकसद था सभी कर्मचारियों को ऐसी सैलरी देना जिससे वे सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें, इसे कहते हैं "Living Wage"।
पहले वेतन आयोग ने ₹55 प्रति माह न्यूनतम वेतन तय किया। यह उस समय के सबसे निचले सरकारी पद के लिए था।
सरकारी सचिव जैसे उच्च पदों के लिए अधिकतम वेतन ₹2,000 प्रति माह रखा गया था।
सबसे ऊंचे और सबसे नीचे के पद के वेतन में 1:41 का अंतर था। यानी सचिव की सैलरी, चपरासी से 41 गुना ज्यादा थी।
इस आयोग ने समानता, जरूरत और सम्मानजनक जीवन पर जोर दिया। यह स्वतंत्र भारत में सैलरी सुधार की पहली ईमानदार कोशिश थी।
1st Pay Commission ने भविष्य की वेतन नीति की नींव रखी और यह साबित किया कि हर कर्मचारी एक बेहतर जीवन का हकदार है।
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