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भारत का वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है। लेकिन यह जनवरी-दिसंबर क्यों नहीं होता? यहां बताया गया है कि इसके ऐतिहासिक और आर्थिक कारण क्या हैं?
1867 में ब्रिटिश सरकार ने भारत के लिए वित्तीय वर्ष अप्रैल-मार्च तय किया। यह परंपरा आज भी जारी है, जिससे प्रशासनिक व्यवस्था सुगम बनी रही।
भारत एक कृषि प्रधान देश है। नई फसल की शुरुआत अप्रैल में होती है, जिससे सरकारी योजनाओं की प्लानिंग और रेवेन्यू कलेक्शन में आसानी होती है।
अप्रैल से शुरू होने वाला वित्तीय वर्ष सरकार के बजट, खर्च और नीतियों के क्रियान्वयन के लिए बेहतर साबित हुआ, जिससे अर्थव्यवस्था संतुलित रही।
सरकारी विभागों और कंपनियों के लिए अप्रैल-मार्च वित्तीय वर्ष सुविधाजनक है, क्योंकि इससे टैक्स कलेक्शन और ऑडिटिंग में एकरूपता बनी रहती है।
कुछ देशों ने जनवरी-दिसंबर वित्तीय वर्ष अपनाया है, लेकिन भारत में ऐसा करने से टैक्स और रिपोर्टिंग की प्रक्रियाएं अधिक जटिल हो सकती हैं।
2017 में सरकार ने वित्तीय वर्ष बदलने पर विचार किया, लेकिन इसे लागू नहीं किया क्योंकि इससे प्रशासनिक और कारोबारी ढांचे में बड़ा बदलाव आता।
इतिहास, प्रशासनिक जरूरतों और आर्थिक संतुलन को देखते हुए भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक ही रखा गया है, और यह आगे भी जारी रह सकता है।