कैपिटल, रेवेन्यू, डेफिसिट... समझें बजट की भाषा

28 जनवरी, 2025

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बजट में किसी काम के लिए अनुमानित फंड। इन्हें अप्रूव करने के लिए संसद वोट के जरिए करती है फैसला।

बजट एस्टिमेट

वित्त वर्ष के 6 महीने बीतने के बाद फंड्स के स्टेटस का रिव्यू किया जाता है। तब बनता है रिवाइज्ड एस्टिमेट। अगर और फंड्स की जरूरत हो तो फिर से संसद में पड़ते हैं वोट।

रिवाइज्ड एस्टिमेट

यह ऐसा अमाउंट होता है जो अलग-अलग विभाग और मंत्रालय संसद से आवंटित करने का आग्रह बजट के दौरान करते हैं।

डिमांड फॉर ग्रांट्स

यह ऐसा विधेयक होता है जिसमें यह ब्योरा दिया होता है कि सरकार कितना खर्च किस चीज पर करने वाली है। 

फाइनेंस बिल

यह ऐसा विधेयक है जिसके जरिए संसद सरकार को कंसॉलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया से अपने पैसे निकालने की इजाजत देती है।

अप्रोप्रिएशन बिल

ये ऐसी आमदनी और खर्च होते हैं जो बार-बार नहीं होते। 

कैपिटल रिसीट और खर्च

जैसे लोन लेकर या संपत्ति बेचकर आने वाली आमदनी कैपिटल रीसीट हो जाती है और ऐसेट खरीदने के लिए किया गया खर्च कैपिटल खर्च।

ये ऐसी आमदनी और खर्च होते हैं जो बार-बार होते हैं। 

रेवेन्यू रिसीट और खर्च

जैसे सरकार के लिए टैक्स कलेक्शन से आमदनी रेवेन्यू रीसीट होती है और सैलरी देने पर किया गया खर्च रेवेन्यू खर्च।

जब सरकार के रेवेन्यू खर्च उसकी रेवेन्यू आमदनी से ज्यादा हो जाते हैं तो इनके बीच के अंतर को रेवेन्यू डेफिसिट कहते हैं। 

रेवेन्यू डेफिसिट

यह सरकार के कुल खर्च और कुल आमदनी (कर्ज को छोड़कर) के बीच का अंतर होता है। 
इससे पता चलता है कि सरकार को खर्च पूरे करने के लिए कितना कर्ज लेना पड़ सकता है।

फिस्कल डेफिसिट

इन्फ्लेशन या मुद्रास्फीति या महंगाई दर वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में होने वाली बढ़ोतरी को कहते हैं।

इन्फ्लेशन

आपकी पूरी आमदनी पर टैक्स नहीं पड़ता है। उसमें से निवेश और जरूरी खर्च को अलग या डिडक्ट कर तय होती है टैक्सेबल इनकम।

टैक्सेबल इनकम

कुछ करदाताओं को टैक्स में छूट, जैसे डिडक्शन या रीफंड दिया जाता है। इससे उनके ऊपर टैक्स का भार कम होता है।

रिबेट

प्रत्यक्ष कर, जैसे आयकर एक वित्त वर्ष के अंदर कमाई गई आमदनी पर लगता है। 

डायरेक्ट टैक्स

इसे प्रोग्रेसिव टैक्स मानते हैं क्योंकि आमदनी बढ़ने के साथ टैक्स दर भी बढ़ जाता है।

अप्रत्यक्ष कर, जैसे वस्तु एवं सेवा कर या GST, चीजों और सेवाओं पर लगता है।

इनडायरेक्ट टैक्स

इसे रिग्रेसिव टैक्स कहते हैं क्योंकि किसी की आमदनी कितनी भी हो, उसे दूसरे के समान ही टैक्स देना होता है।

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